रविवार, 5 अगस्त 2018

सोशल मिडिया पर प्रवचन -प्रलय

***************बात चौंकने की नहीं ,रंच समय देने व विचार करने की है। वर्षा ऋतु अपनी चढान पर है।पूरे भारत में जल या पानी -प्रलय से हाहाकार मचा हुआ है।समूचे पहाड़ी ,समुद्र तटीय और मैदानी राज्यों में सामान्य जन जीवन अस्त -व्यस्त है। सैकड़ों जनधन,हजारों पशुधन और अरबों की संपत्ति बीते बर्षों की भाँति इस पानी प्रलय को भेंट चढ़ रही हैं।इस प्रलय प्रहार से भारत ही नहीं चीन ,जापान इत्यादि देश भयावह रूप से प्रकोपित हैं।परन्तु यदि थोड़े दिन पहले ही बीते ग्रीष्म की बात करें तो सर्वत्र जल संकट ,गिरते भू जलस्तर और जल संचयन की चर्चा थी।दोनों स्थितियों का मिलान करें तो यही परिणाम मिलता है कि जलवायु और ऋतुएँ हमारे अनुकूल नहीं संचलित हो रही हैं या कि मानव जलवायु या ऋतुओं के विपरीत आचरण कर रहा है जिससे हम प्राकृतिक आपदाओं से आए दिन दो चार हो रहे हैं।आजकल लोग जल प्रलय जैसा ही एक और  प्रलय, जिसे प्रवचन प्रलय कह सकते हैं , व्हाट्सप्प ,फेसबुक ,मेसेंजर ,ट्वीटर, टीवी इत्यादि पर, झेल रहे हैं। प्रत्यक्ष तथा परोक्ष मित्रों की मुफ्त वाली शुभेच्छाओं एवँ अन्यार्थी संदेशों ने नाकों दम कर रक्खा है।जो इस प्रवचन प्रलय से मानसिक तौर पर सकुशल बचा रहे ,सच मानिए उसपर ईश्वर की असीम अनुकम्पा है।
***************साधारणतया लोग अपने मित्रों एवँ सम्बन्धियों को आत्मीयता या शुभेच्छा जताने अथवा  तत्काल सूचना पहुँच हेतु कविता, प्रवचन ,उद्धरण ,नीति वाक्य ,बधाई,श्रव्य और दृश्य सन्देश  इन नए द्रुतगामी माध्यमों से भेजते और प्राप्त करते हैं और आशा भी की जाती है कि विज्ञान प्रदत्त इन माध्यमों से समाज ,संस्कृति ,सभ्यता  और जन जीवन की आर्थिक एवँ चारित्रिक जीवन स्तर की बेहतरी होगी। परन्तु व्यवहार में ऐसा नहीं हो रहा है। मनुष्य दोहरा चरित्र जीने की ओर अग्रसर है ;एक तरफ वह सभ्य दिखने के सारे उपक्रम कर रहा है तो दूसरी तरफ उस सभ्यता के तले उसकी असभ्यता हिलोरें मार रही हैं जिससे हमारी स्वच्छ परम्पराओं के टीले एक एक कर ढहते जा रहे हैं। उदहारण के लिए व्हाट्सप्प जैसे सन्देश वाहक मंच पर गौर किया जा सकता है।इस मंच पर रात दिन प्रेषित हो रहे अधिकांश सन्देश मिथ्याचरण की पराकाष्ठा हैं।भ्रामक ,घृणास्पद ,द्वेषकारी ,स्वार्थप्रेरित या अंधविश्वास को बढ़ाने वाले सन्देश; शुभेच्छा के आवरण में इतर उद्देश्यों के साथ; व्हाट्सप्प पर इधर से उधर भेजे जा रहे हैं जो तत्काल वायरल हो कर समाज में दिग्भ्रम की स्थिति उत्पन्न कर रहे हैं। अब तो बात साईबर क्राइम की चल रही है क्योंकि ए माध्यम अपराध के कारण भी बन रहे हैं। तात्पर्यतः मित्रों ,सम्बन्धियों और किसी न किसी के माध्यम से परचित लोगों द्वारा आपसी संपर्क हेतु बनाए गए व्हाट्सएप्प - संजाल में आज अधिकांशतःपर उपदेश कुशल बहुतेरे वाले प्रवचन,धर्मभीरू बनाने वाले उपदेश,अधकचरी शुभेक्षाएँ, अनावश्यक सलाह और  भ्रमात्मक सूचनाएँ नदियों की बाढ़ की भाँति आपसी संवाद ,सूचना तथा कुशल क्षेम को रौंद रही हैं।
***************अब आमतौर पर लोगों द्वारा बनाए गए ग्रुप या समूह में कोई भी व्यक्ति श्रृंखलात्मक पहुँच द्वारा समूह के बाहर से ,कहीं से, किसी भी प्रकार का प्रवचन समूह अंदर तक अग्रसारित कर देता है और ए सन्देश बहुत ही ब्यापक स्तर पर जन -जन तक पहुँच जाते हैं। यहाँ तक कि एक ही सन्देश एक व्यक्ति को कई कई बार कई लोगों द्वारा अग्रसारित हो कर मिलता है और हर क्लिक पर वही बात देख या पढ़ कर अजीब सी खीझ होती है। हद तो तब हो जाती  है जब धार्मिक प्रताड़न भरे संदेशों की बाढ़ आती है यथा यदि यह संदेश अपने इतने मित्रों को अग्रसारित करें गे तो इनकी क़ृपा होगी अन्यथा यह अनिष्ट हो जाय गा।इसी प्रकार घोर संसारी एवँ गृहस्थ लोग भी प्रवचन भेजने में बड़े बड़े योगी ,ऋषियों ,मुनियों ,दार्शनिकों व सरस्वती साधकों को मात दे रहे हैं। जिन्हे स्वयँ सुधरने की आवश्यकता है वे सोशल मीडिया पर प्रवचन की झड़ी लगा दूसरे को सुधार रहे हैं। नेताओं व अन्य गुरु घण्टालों के लोग उन्हें चमकाने व आगे बढ़ाने के लिए रात दिन अपने प्रवचन धकेल रहे हैं। रही सही कमी व्यवसाय व विज्ञापन वाले पूरा कर दे रहे हैं। अब स्मार्ट फोन ,टीवी और इन्टरनेट पर सकून तलाशने वाला ब्यक्ति इस प्रवचन वाले महा प्रलय से बचे तो बचे कैसे ?
*****************जब लोग इस प्रवचन प्रलय को झेलने को विवश ही हैं तो प्रवचनों के मन्तव्य,पूर्ण सत्य ,अर्ध सत्य और मिथ्य को तर्क की कसौटी पर भी कसना अपरिहार्य हो जाता है क्योंकि दुःख के प्रति समझ का बढ़ना ही दुःख का निवारण है।जहाँ तक मन्तब्य की बात है तो अधिकांश का जुड़ाव स्वार्थ या बाह्याडम्बर ,कुछ का परार्थ एवं नगण्य का परमार्थ(सत्य ) हेतु होता है।अतः अपने सीमित स्वार्थ या आवश्यकता से अधिक हमें सोशल मीडिया पर सक्रिय रहना ही नहीं चाहिए।पुनः आशा तो नहीं है कि प्रवचन प्रेषित करने वाले समझेंगे परन्तु क्षीर नीर भेद तो प्रवाचक बनने से पहले जान लेना चाहिए ही।वह यह है कि हम आप जो भी प्रवचनों की हेरा फेरी करते हैं वे अर्ध सत्य और मिथ्या के बीच के हमारे विचार हैं जो प्रथम दृष्ट्या प्रेषकों को प्रबुद्ध होने एवँ प्राप्तकर्ता को अनुगृहीत होने वाले छल हैं परन्तु तर्क पर वे वहम से ज्यादा कुछ नहीं होते हैं।अतः सोशल मीडिया पर सक्रिय लोगों से अपेक्षा है कि वे न ऐसे  भ्रम पालें ,न ऐसे भ्रम भेजें और न ऐसे भ्रम पाएँ।इसी प्रकार सोशल मीडिया पर चहक चहक कर बलात्कार व बलात्कारियों की चर्चा न हो ( यह अच्छा नहीं लगता है।) बल्कि यह बताया जाय कि कितने बलात्कारियों को फाँसी हुई ,कितने को आजीवन कारावास और कितनी जल्दी और कैसे। पुलिस और न्यायपालिका की सफलता की कहानी बताई जाय  । बलात्कार पर अपने आप लगाम लग जाएगी।जैसे ही इन माध्यमों का सार्थक उपयोग बढे गा ,प्रवचन प्रलय तिरोहित हो जाय गा और सोशल मीडिया हमारे लिए अमूल्य वरदान सिद्ध होने लगेगी। किसी के उस पल की प्रसन्नता की कल्पना करें जब फेस बुक या व्हाट्सएप्प उसे उसके किसी पुराने बिछड़े मित्र या संबंधी से संपर्क करा देता है। ----------------------------------------------------------------------------------मंगलवीणा
वाराणसी ,दिनाँक :5 अगस्त 2018
mangal-veena.blogspot.com
****************************************************************************************
अन्ततः
***************बात उन्नीस फरवरी वर्ष २०११ के सांध्य बेला की है जब मैं जीप द्वारा गोरखपुर से वाराणसी आ रहा था। सड़क थोड़ी खाली थी ,सो स्वभाववश चालक ने रफ़्तार भी बढ़ा दिया था। एक व एक हेड लाईट की रोशनी आगे चल रही ट्रक के पश्च भाग पर पड़ी। उस पर लिखे एक उद्धरण ने हमें चौका दिया। काफी देर तक ट्रक के पीछे चलते हुए मैं उस उद्धरण को बार बार पढ़ता रहा। उस दिन की वह घटना मेरे स्मृतिपटल पर अंकित हो गई ।तब ऐसा झटका लगा था कि मेरी दिन भर की थकान ही मिट गई थी। आज भी कभी कभी सोचता हूँ कि यह सत्य है या असत्य या कि अर्ध सत्य।आप भी सोचिये कि क्या ,"विश्वास केवल वहम है और सच्चाई मात्र झूठ। "? क्या कभी ऐसा नहीं लगता की जिस बात की स्थापना विजेता करे वह सत्य और जिसकी स्थापना पराजित करे वह झूठ वरन यह सच कैसे हो सकता है कि नेकी कर जूता खा।अधिक क्या,इन ट्रक वालों की महिमा भी अनन्त है।-------------------------------------------------------------------------------------------------------------- मंगलवीणा
वाराणसी ;श्रावण कृष्ण अष्टमी संवत २०७५
********************************************************************************************
                                     

शनिवार, 23 जून 2018

भ्रष्टाचारियों से पिटती नासमझ भाजपा

***************जो भारतीय जनता पार्टी चार वर्ष पूर्व जनाकांछा बन पूरे देश पर छा गई और अगले तीन वर्ष या उत्तर प्रदेश के विगत विधान सभा चुनाव तक अपने उत्कर्ष पर रही ,वह अब  बुरी तरह जनाक्रोश का शिकार होने लगी है। जनाक्रोश भी ऐसा की जनता उसे महा भ्रष्टाचारी नेताओं और उनके दलों से पिटवा रही है।किसी संस्कारी ,ईमानदार और राष्ट्रवादी पार्टी से यदि भाजपा पिटती तो ठीक ही होता परन्तु दुर्भाग्य कि यह पार्टी अब बेईमान , भ्रष्टाचारी और राष्ट्रद्रोही दलों से पिट रही है। यदि मारीच को मरना है तो रावण के हाथ मरना तो बद से बदतर होगा।अच्छा होता कि इस काम के लिए भारतीय राजनैतिक क्षितिज पर किसी बेहतर दल का अभ्युदय होता। परन्तु ऐसा हुआ नहीं और जनता प्रबल संकेत देने लगी है कि बस बहुत देख लिया ;अहितकर ईमानदारों से हितकर बेईमान भले।
***************आजकल पत्रकारिता ,सोशल मीडिया ,टीवी एवँ सामान्य जन में यत्र तत्र ,सर्वत्र बीजेपी के विरुद्ध जनमत एवँ विपक्षियों के ध्रुवीकरण की चर्चा है।उपचुनाओं में  जहाँ भी ऐसे प्रयोग प्रस्तुत हो रहे हैं ,अधिकांश स्थानों पर भाजपा पिट रही है।शनैः शनैः परिस्थितियाँ कुछ ऐसी बनने लगी हैं कि जनता के लिए किसी गैर भाजपाई को चुनने में गुण दोष नामक पैमाना भी अनावश्यक होता दिख रहा है।बिलकुल साधारण गणित काम कर रही है कि यदि सारे विपक्षी ध्रुवीकृत होकर जनता के सामने आएंगे तो जनता भी भाजपा के विरुद्ध उन्हें विजय श्री का हार पहनाए गी क्योंकि भाजपा से कोई उम्मीद नहीं बची है।सच ही कहा है कि कलियुगे शक्ति संघे। विपक्षियों के लिए यह सूत्र वाक्य निश्चित सफलता की कुँजी सिद्ध हो सकती है। संघ चाहे कुसंघ हो या सुसंघ ;इससे जातियों और उपजातियों में बँटी जनता में कोई अन्तर नहीं पड़ता।भुक्तभोगी जनता ने अनुभव किया है कि कुसंघियों (विपक्षी दलों ) के सत्ता में रहते जो कठिनाइयाँ थीं वे सुसंघियों (भाजपा)के शासन में भी यथावत या उससे बदतर बनी हुई हैं।
***************जब सरकार की लोकप्रियता इतनी तीब्रता से गिर रही हो तब लोकसभा चुनाव पूर्व भाजपा द्वारा जनता से किये गए वादों और उनके पूरा न होने के कारणों पर परिचर्चा  सामयिक हो जाती है और इसके लिए कुछ ज्वलंत उदहारण पर्याप्त हो सकते हैं जैसे यदि भ्रष्टाचार की बात करें तो भाजपा ने देश को भ्रष्टाचार मुक्त सरकार देने की बात की थी।लगता है कि उनके लिए इसका तात्पर्य मात्र भ्रष्टाचार मुक्त मंत्री व प्रधान मंत्री देना था। भुक्तभोगी जनता ने तो व्यवहार में यही पाया कि सरकारी तंत्र और बाबू तो जम कर उन्हें अब भी लूट रहे हैं और बिना भय के लूट रहे हैं। फिर मंत्री जी भ्रष्टाचरी नहीं हैं ;से जनता  को क्या राहत ?कोई चौराहा ,तिराहा , नुक्कड़ या कार्यालय नहीं जहाँ सरकार के निम्नतम पादन  के कर्मचारी ,सिपाही या होमगार्ड जनता को खुलेआम न लूट रहे हों।उनसे ऊपर मध्यम और उच्च पादन पर बैठे बाबुओं की रौबदार लूट का तो कहना ही क्या। ठेकेदारी व्यवस्था से मूलभूत संरचना का त्वरित विस्तार भी बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहा है। इस लूट के प्रतिफल में कानून के राज की धज्जियाँ उड़ रही हैं।
***************विगत लोकसभा चुनाव पूर्व भाजपा ने यह भी खूब उछाला था कि सत्ता में आने पर वर्षों से जनता व देश को लूट रहे नेता और बाबू सलाखों के पीछे होंगे ;परन्तु ऐसा हुआ नहीं। अब वे ही भाजपा वाले कहते हैं कि यह भ्रष्टाचार निरोधी एजेंसियों एवँ न्यायपालिका का काम है। काले धन पर चर्चा में अब वे विभिन्न देशों के साथ संयुक्त प्रयास की बात करते हैं जो बालू से तेल निकालने जैसा है।जब भी राम मन्दिर या कश्मीर की धारा तीन सौ सत्तर की बात होती है ये कछुए सी रणनीति अपनाते हैं ;कभी गर्दन बाहर तो कभी गर्दन भीतर।  यहाँ तक कि मध्यम वर्ग, जिसने इन्हें सत्ता पर बैठाया, उसके लिए कुछ करना तो दूर उलटे उन्हें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों से वर्ष दर वर्ष निराश करते गए।अरुण जेटली जैसे गैरजमिनी ,अप्रायोगिक और प्रत्याकर्षक नेताओं ने आम जन का  ध्यान रखे बिना  साल के बाद साल ऐसे ऐसे बजट प्रस्तुत किए कि जनता सोचती कि सोचती रह गई।
 ***************मँहगाई के मोर्चे पर पर भी पेट्रोल एवँ डीज़ल की बढ़ती कीमतों ने कोढ़ में खाज का काम किया है और घरेलू बाजार में महँगाई का पलीता लगने लगा है।पेट्रोलियम पदार्थों की महँगाई पर सरकार ऐसे मौन है मानो उनका इस गम्भीर समस्या से कोई सरोकार नहीं। शायद भाजपा अपनी यूएसपी ही भूल बैठी है।वर्तमान परिदृश्य जनता को ऐसे कुठाँव मारती जा रही है कि मोह भंग का रंग और पक्का बनता जा रहा है।यह वास्तविकता जन जन तक पहुँच गई है कि भाजपा के प्रधान मंत्री,मुख्य मंत्री तथा उनके मंत्रिमंडल के मंत्री ईमानदार होते हुए भी एक ईमानदार और सक्षम सरकार नहीं दे सकते हैं।पिछले सारे प्रयोग यही इंगित करते हैं कि इन्हें शासन करना आता ही नहीं।
 ***************ठीक है कि मोदी जी के नेतृत्व में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में भारत की साख और भूमिका बढ़ी है ;साथ ही एक उभरती अर्थव्यवस्था के रूप में अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी भी। विदेशों में बसे भारतीयों को भारतीय होने या कहने में अब गर्व का अनुभव होता है और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में उन्हें बड़े सम्मान से देखा जाने लगा है।बेहतर विदेशी निवेश के लिए वर्तमान सरकार सराहनीय कार्य कर रही है। परन्तु इनसे पूर्ववर्ती सरकारों की भाँति  पाकिस्तान रूपी महाव्याधि की कोई प्रभावी दवा इनके पास भी नहीं दिख रही है। दुर्भाग्य है कि पश्चिमी सीमा पर हमारे जवान जान गँवा रहे हैं परन्तु राजनैतिक अनिर्णय के कारण हम बांग्ला देश जैसा इतिहास नहीं रच पा रहे हैं।सरकार पड़ोसी पाकिस्तान से सठ के साथ सठ जैसा तत्कालिक व्यवहार कर रही है परन्तु स्थाई समाधान का  कोई अता पता नहीं।कश्मीर मुद्दे पर जनता को भाजपा से बहुत उम्मीद थी जिसपर यह सरकार पाकिस्तान परस्त श्रीमती महबूबा की पीडीपी के साथ मिल वहाँ राज्य सरकार बना कर पानी फेरती दीख रही थी।एक सर्जिकल स्ट्राइक को छोड़ ऐसा कोई चमत्कारी कार्य नहीं हुआ जिसके लिए भाजपा जानी जाती है और वह इतिहास की स्वर्णिम घटनाओं में सम्मिलित हो सके।(देर सही परन्तु दुरुस्त कि भाजपा ने पीडीपी से अपने को अलग कर लिया और कश्मीर में राज्यपाल शासन लागू हो गया। भाजपा के पास अब भी इस क्षति नियंत्रण के लिए पर्याप्त समय है।)
***************इन विपरीत परिस्थितिओं के होते हुए भी पूरी संभावना है कि आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा पुनः विपक्षिओं पर भारी पड़े गी और विपक्षियों को बुरी तरह पीटेगी। इसका सबसे बड़ा कारण प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी का राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उभरा सक्रिय,समर्पित, निष्कलंक एवँ जादुई व्यक्तित्व है जिसकी तुलना में विपक्ष का कोई नेता कहीं ठहरता ही नहीं।उतना ही या सबसे अहं कारण राष्ट्रवाद है जिस पर जनता  अन्य दलों की अपेक्षा भाजपा पर सर्वाधिक भरोसा करती है। अन्य कारणों में राममंदिर, धारा तीन सौ सत्तर,समान नागरिक संहिता भी ऐसे मुद्दे हैं जिनपर भाजपा के अतिरिक्त किसी भी  विपक्षी दल से देश को कोई उम्मीद नहीं है।आज भारत वर्ष में वास्तविक धर्मनिरपेक्षता की ध्वजावाहक भी मात्र भाजपा ही है जब कि शेष विपक्षी दल धर्मनिरपेक्षता के नाम पर कुछ धर्म और जातियों की तुष्टिकरण पर्याय हैं। जनता विपक्षियों द्वारा सत्ता के बन्दरबाँट से भी सचेत है जिसके चलते भाजपा एक स्वाभाविक चयन है।जाति ,धर्म ,भाषा,परिवारवाद ,भ्रष्टाचार और क्षेत्रियता पर खड़ी पार्टियां सत्ता के लिए एक गठबंधन बना कर चुनाव लड़ पाएं गी ;यह तो गधे को सींग जैसी घटना लगती है।
***************अतएव भाजपा आगामी चुनाव में भी विपक्षी गठबंधन से पिटे गी; यह उन द्वारा देखा जाने वाला दिवा स्वप्न है।इस बीच यदि एक भी ऊपर उल्लिखित मुद्दा भाजपा के पक्ष में क्लिक (खड़क )कर गया तो जनता फिर भाजपा को भारी बहुमत से सर आँखों पर बैठाए गी और परिवारवादी विपक्षी भ्रष्टाचारी पार्टियाँ हमेशा के लिए धराशाई हो जायँगी।ऐसा होने पर संभावना है कि चुनाव बाद भाजपा के सामने एक नए शिष्ट एवँ ईमानदार राष्ट्रीय दल का उदय हो।अन्यथा दूसरी स्थिति में भाजपा कठिनाई से केंद्र में  सरकार बना पाए गी।तीसरी स्थिति में भाजपा की  लगातार लोक प्रियता घटने पर सत्ता का विपक्षियों में बन्दर बाँट होगा जिससे केंद्र सरकार कमजोर होगी और विभिन्न प्रांतों में क्षेत्रीय क्षत्रप निरंकुशता के साथ केंद्र का हाथ मरोड़े गे। यह स्थिति देश की उभरती अर्थ व्यवस्था एवं अखण्डता के लिए अहितकर होगी। आदर्श और सर्वाधिक संभाव्य स्थिति यही है और होगी कि भाजपा को आगामी  लोक सभा चुनाव में जनता बहुमत दे ताकि वह अपने अच्छे वादों को पूरा कर पाए।तब तक कई राज्यों में होने वाले विधान सभा चुनाव इसे शीर्ष चर्चा का विषय बनाये रखें गे।----- मंगलवीणा
***********************************************************************************************
 दिनाँक :२४ जून २०१८ ,वाराणसी------------------------- mangal-veena.blogspot.com
***********************************************************************************************




   

रविवार, 13 मई 2018

श्रवणकुमारों ,तुम्हें नमन

***************बीते मदर्स डे के समापन पर करोड़ों भाइयों ,बहनों और बच्चों , जिनके पास माँ हैं ,को यह सौभाग्य बने रहने की शुभ कामनाएँ तथा हजारों भाई बहनों को कोटिशः नमन जो अपने माँ और बाप के लिए तीन सौ पैंसठ दिन श्रवणकुमार की भूमिका में हैं। हमने मात्र हजारों का अंकन इस लिए किया क्योंकि ऐसे देव एवँ देवी तुल्य लोग इस धरा पर दुर्लभ होते जा रहे हैं।
*******************पिछले दिनों व्हाट्सअप तथा फेसबुक पर मदर्स डे के उपलक्ष्य पर सैकड़ों सन्देश मिले।टीवी और समाचार पत्रों ने भी अपनी पहुँच तक सबको व्यापारिक मातृभावना से ओतप्रोत कर दिया। ऐसा लगा कि सतयुग ने भारत भूमि पर दस्तक दे दिया है। पर जब भ्रम से उबरे तथा इनमें से कुछ लोगों के पारिवारिक पटल पर विहंगम दृष्टि डाला तो बड़ी निराशा हाथ आई।काहे के माँ -बाप ;काहे का उत्सव। अपने परिवार के लिए अहर्निश जूझती अधिकांश माताअों को तो इस उत्सव की भनक तक नहीं।यदि भनक है भी इसका उनसे कोई सम्बन्ध नहीं। उनकी पीड़ा तो उनके अंतर्मन में यथावत ही दबी हैं।ऐसे में मदर्स डे पर युग द्रष्टा गोस्वामी जी को भी श्रद्धा सुमन अर्पित करना ही चाहिए जिन्होंने हमारे आचरण का पूर्वानुमान यूँ किया -
-----सुत मानहि मातु पिता तब लौं। अबलानन दीख नहीं जब लौं ।
-----ससुरारि पिआरि लगी जब तें । रिपु रूप कुटुम्ब भए तब तें । रामचरितमानस
****************अंततः विदेश की वह संस्कृति भी वधाई की अधिकारिणी है जिसने माँ के लिए तीन सौ पैंसठ दिनों में कम से कम एक दिन आरक्षित तो किया।अच्छा होता कि मदर्स डे के स्थान पर हर दिन कुछ घण्टों के लिए मदर्स आवर होता।थोड़ी देर केलिए नित्य इनके मुखारविंद पर मृदुल मुस्कान होती और हमारे लिए आशीष वर्षा। मानवता साक्षात् दर्शन पाती कि इस धरती पर कहीं स्वर्ग है तो वह माँ के आँचल तले।
***************काश ऐसा होता। फिर भी जो है उस बीच, हमारी  सबसे  विनम्र विनती है कि शेष तीन सौ चौंसठ दिनों के लिए माताओं को उनके  नियति , सामाजिक परिस्थियों एवँ जिह्वा सेवादारों पर न छोड़ें क्योंकि हमारे अस्तित्व की कर्ता और कारण वहीँ हैं।माँ तुम्हें नमन। इस अवसर पर अपनी स्वर्गीय माता श्री को भी श्रद्धानत  निर्मल स्मृति गुच्छ अर्पित करता हूँ।------------------मंगलवीणा
वाराणसी।;दिनाँक 14 मई 2018---------------------- mangal-veena.blogspot.com
*********************************************************************************************
   

सोमवार, 16 अप्रैल 2018

बजट ,तूँ मारेसि मोहि कुठाँव

***************हमारे देश में निम्न मध्यम आय वाले नौकरी पेशेवर बेहद तन्मयता से बजट की प्रतीक्षा करते हैं , उनकी वैसी तन्मयता शायद ही किसी अन्य वस्तु की चाहत में दिखती है। देश में एक और महत्वपूर्ण वर्ग है जो कुछ ऐसे ही या यूँ कहें कि प्यासे चकोर की भाँति केंद्रीय बजट की बाट जोहता है और वह है मध्यम आय वाली महिलाओं का वर्ग।केंद्रीय सत्ता में बैठा कोई भी योजनाकार यदि इन दोनों वर्ग की पीड़ा को नहीं जानता या जानते हुए उनकी उपेक्षा करता है तो मानिए कि वह हिंदुस्तान को नहीं जानता या  उसे प्रफुल्लित नहीं देखना चाहता।आशा तो नहीं थी कि मोदी युग में ऐसा होगा परन्तु दुर्भाग्य कि ऐसा ही हो रहा है।इस वर्ष के केंद्रीय बजट द्वारा वित्त मंत्री ने फिर परिलक्षित कर दिया है कि इनके शोषण पर ही हमारा लोकतंत्र खड़ा है।रोटी ,कपड़ा, मकान , महँगाई ,शिक्षा ,स्वास्थ्य,सुरक्षा,भ्रष्टाचार,राजस्व व राजतन्त्र सभी इनका बेहिचक शोषण कर रहे हैं।आर्थिक तथा सामाजिक लाभ मे अहर्निश हमारे देश में अनुसूचितों और पिछड़ों की बात होती है ,लुटेरे अमीरों की बात होती है,देश को वर्वाद करने वाले निरंकुश नेताओं के विशेषाधिकार व आय बढ़ोत्तरी की बात होती है परन्तु दो पाटन के बीच पिसती इन खालिस वासिंदों की कहीं गिनती नहीं।इन्हें मात्र श्रोत और साधन माना जाता है।
 ***************आज करोड़ों कर्मचारी परिवारों के साथ साथ मध्यम आय वर्ग की  महिलाएँ भी ठगी सी निहार रही हैं कि उनके सपनों की सरकार को किसकी बुरी नजर लग गई।उन्हें तो बताया गया था कि जीएसटी के बाद रोजमर्रा उपयोग की जींस सस्ती हो जाँय गी परन्तु हुआ ठीक उसका उलट।बताया गया था कि बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य तक सबकी सहनीय पहुँच सुनिश्चित की जाय गी परन्तु ये दोनों ही आवश्यकताएँ दुष्प्राप्य एवँ दिवालिया बनाने वाली सिद्ध हो रही हैं।इस  वर्ग पर तीसरी सर्वाधिक प्रभाव डालने वाली वस्तु पेट्रोलियम एवँ पेट्रोलियम उत्पाद की तो पूछिए मत जिनकी कीमतें सरकारें मनमाने ढंग से बढ़ा रही हैं और अब वे आसमान से बातें कर रही हैं।आमदनी की बात हो तो सातवें वेतन आयोग की सस्तुतियाँ न तो समय सापेक्ष उनकी चाहत के अनुरूप आईं  न कर्मचारी संगठनों की माँग पर सरकार गम्भीर हुई। इस निराशा और बढ़ती बेरोजगारी का परोक्ष प्रभाव निजी क्षेत्र में काम करने वाले पेशेवरों पर भी पड़ा जिससे उनकी वेतन बढ़ोत्तरी पर बुरा प्रभाव पड़ा है;ऊपर से आयकर की क्रूर कैंची साल दर साल उनकी आय को कतरती जा रही है।भ्रष्टाचार मिटाने की पुरजोर शंखध्वनि हुई थी परन्तु आकण्ठ भ्रष्टाचार में डूबी संस्थाएँ व व्यवस्था पहले से ज्यादा पल्लवित ,पुष्पित हो रही हैं और इस बड़े उपभोक्ता वर्ग को अपनी आय का कुछ अंश यदा कदा रिश्वत मद में  भी  ब्यय करने केलिए विवश कर रही हैं।इस प्रकार मध्यम वर्ग की घटती क्षमता और उनपर बढ़ते बोझ का सरकार द्वारा आकलन और समायोजन न कर पाना भविष्य में गम्भीर सामाजिक समस्याओं को जन्म दे सकता है।
*************** सरकारों के राजस्व में सर्वाधिक योगदान इसी वर्ग का है। फिर सरकार के ध्यान पर भी इसी वर्ग का सर्वाधिक हक़ बनता है। परन्तु सरकारों का कृतित्व अक्षरशः इसके विपरीत है।प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में चालू वित्त वर्ष के लिए केन्द्र सरकार के  आय व्यय विवरण का अनुशीलन पर्याप्त है।उदहारण चाहिए तो सरकार की राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना पर ध्यान दिया जा सकता है।सरकार पचास करोड़ गरीब लोगों को पाँच लाख प्रति परिवार स्वास्थ्य बीमा देने जा रही है।अब इनसे कौन पूछे कि मध्यम वर्ग को क्यों नहीं ?क्या वित्त मन्त्री इतना अनभिज्ञ हो सकते हैं कि उन्हें ज्ञात न हो कि एक मध्यम वर्ग का परिवार किसी बीमारी पर पाँच लाख रुपये खर्च करने के बाद निम्न आय वर्ग में फिसल सकता है।अतः उन्हें भी ऐसी सुविधाएं मिलती रहें जो कम से कम उन्हें मध्यम वर्ग में बनाए रखें।बजट व योजना वही बने जिससे सबका लाभ और विकास हो परन्तु राम राज्य की बातें करने वाले उसे धरातल पर उतारने के लिए कुछ भी करते हुए नहीं दीख रहे हैं।रामराज्य का निदेश है ---
_______________मुखिया मुख सो चाहिए खान पान कहुँ एक ।
______________पालइ पोषइ सकल अँग तुलसी सहित बिबेक ।
____राजधरम सरबसु एतनोई। जिमि मन माहँ मनोरथ गोई।(रामचरितमानस )
फिर क्यों न ऐसी धारणा बने कि सरकार सकल अंग का तात्पर्य सांसद ,विधायक ,गरीब ,निम्न वर्ग ,आरक्षित वर्ग ही समझती है और इसके लिए ये लोग ही साध्य हैं ;शेष  मध्यम वर्ग के लोग साधन।
***************कमियों को उजागर करना यदि लेखन दायित्व है तो उन कमियों को दूर करने के लिए व्यक्तिगत सुझाव देना भी वांछनीय लेखन धर्म।उदाहरण पर उतरें तो चुनाव के समय जिन भ्रष्टाचारी नेताओं को नित्य याद किया जाता था ,उन्हें कारागारों में पहुँच जाना चाहिए था।विदेशों में छिपाया धन देश वापस लाना चाहिए था और उसकी त्रैमासिक प्रगति दरबार -ए -आम में नियमित पढ़ी जानी चाहिए थी। प्रचारित किया गया था कि जी एस टी से रोजमर्रा उपयोग की चीजें सस्ती होंगी तो बजट में परिलक्षित होना चाहिए था और धरातल पर ऐसा ही दिखना चाहिए था।पेट्रोलियम पदार्थों को जी एस टी से बाहर रखने से तो  सरकार की नीयत ही कठघरे में खड़ी हो गई है क्योंकि यही एक वस्तु है जो सस्ती होने पर सस्ताई और महँगी  होने पर पूरे अर्थ व्यवस्था में महँगाई लाती है।इसकी कीमतें नियंत्रित कर रसोई घरों की रौनक बढ़ाई जा सकती थी। देश और अपनी पार्टी की  भलाई चाहने वाली सरकार को अब भी चाहिए कि वचनवद्धता एवँ पारदर्शिता को अविलम्ब पुनः  गले का हार बना ले।दिशा निर्देशों के बल पर सांसद और विधायक चाहे माननीय कहला लें या संवैधानिक शक्तियों से अपना वेतन भत्ता कल्पना की हद से परे तक बढ़ा लें , आम लोग इन्हें अनुज्ञाप्राप्त लुटेरा , अति निंदनीय प्राणी और योग्यता की कसौटी पर सरकारी ढांचे के न्यूनतम वेतन के लिए भी अयोग्य मानते हैं। अतः आम आदमी से जुटाए राजस्व को इनके ऊपर इस हद तक लुटाना जनता को बहुत चुभने लगा है। इस विषय पर युवा भारत की सोच को सांसद वरुण गाँधी ने आवाज देने का प्रयास किया परन्तु इन सर्व शक्तिमान लोगों को लूट पर मुहर लगवाने से वे नहीं रोक पाए।भारतीय संविधान आम आदमी के सब्र को ऐसे कब तक बाँध रखे गा; यह भारत भाग्य विधाता ही जानें।हमें भी पता है ,सरकार को भी पता है कि आज पाँच लाख रुपये वार्षिक आय से एक  परिवार का पालन पोषण कितना दुष्कर है फिर भी ऐसे लोगों को आयकर में घसीटा जा रहा है। आवश्यकता थी कि उन्हें इस बन्धन से मुक्त किया जाता और दस लाख की सीमा तक कर देयता दस प्रतिशत कर दी गई होती।सबके साथ सामान व्यवहार के आधार पर कृषि क्षेत्र को कर के दायरे में लाना चाहिए था।सर्वोपरि बात है कि हम सभी भारतीय कर देते हैं। अतः सभी का सरकारी  सुविधाओं पर  यथेष्ठ अधिकार है और वह हमें मिलना ही चाहिए।बहुत हो चुका असमान वितरण। अब नहीं चले गा।
***************वर्ष दो हजार चौदह में हुए लोकसभा चुनाव की पूरी दुनियाँ साक्षी बनी जब हमारे देश में  शासन की राष्ट्रपति प्रणाली न होने पर भी यह चुनाव हूबहू वैसे ही श्री नरेंद्र मोदी के लिए लड़ा गया और भाजपा अच्छी खासी बहुमत के साथ श्री मोदी जी नेतृत्व में सत्तारूढ़ हुई। जन जन ने उनके 'सबका साथ ,सबका विकास 'पर विश्वास किया। परन्तु जैसे जैसे समय बीतता गया, सरकार अपने वादों से दूरतर होती पाई गई।सरकार नित्य नए विचार व क्रियान्वयन के साथ जनता के बीच आती रही और चुनावी वादे व उनके क्रियान्वयन पीछे छूटते रहे। मोदी जी उत्तम किस्म के राजनीतिज्ञ होते हुए भी उसी प्रकार आधारहीन चाटुकार नेताओं से घिर गए जैसे कभी कांग्रेस का नेतृत्व घिरा रहता था। यदि मोदी जी जन धन की चौकीदारी ही सुनिश्चित कर दिए होते तो उन्हें आमजन को कुठाँव न मारना पड़ता।निःसंदेह जनता में अब भी मोदी जी की लोकप्रियता किसी भी अन्य नेता से अधिक बनी हुई है और सरकारी गाड़ियों से अति विशिष्ठता दर्शाने वाली लाल- नीली बत्ती  पर प्रतिबंध या स्वच्छता अभियान की भूरि भूरि प्रसंशा भी हुई है परन्तु यह तय है कि जनता आगामी चुनाव के समय उनसे सबके विकास ,चौकीदारी ,काले धन ,भ्रष्टाचार ,पारदर्शिता ,खुशहाली सूचकांक , स्वच्छ प्रशासन ,धारा तीन सौ सत्तर ,राम मन्दिर ,रोजगार इत्यादि पर प्रगति आख्या  माँगे गी।यह और रोचक होगा जब माननीयों की आर्थिक दीनता की चर्चा होगी क्योंकि सरकार की दृष्टि में वे ही गाँधी जी द्वारा रेखांकित पंक्ति में सबसे पीछे खड़े नजर आए हैं।सरकार के लिए गंभीर सोच का विषय है कि जिनसे देश बनता है ,समाज बनता है ,संस्कृति बनती है और सरकारें बनती हैं उनके साथ कैसा व्यवहार होना चाहिए। आज  मध्यम वर्ग आर्थिक चोट से घायल है और मोदी जी से निराश।------------------------------------------------------------------------------------------------------------मंगलवीणा
वाराणसी ;दिनाँक 16 अप्रैल 2018.                              mangal-veena.blogspot.com
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------
अंततःऋतु चर्चा
बसन्त को परास्त कर ग्रीष्म ऋतु ने अपने आगमन की भेरी बजवा दी है। भूमि जलस्तर, जलसंरक्षण,वृक्ष लगाओ ,वृक्ष बचाओ ,पर्यावरण इत्यादि पर कागजी और मीडिया वाली मौखिक परिचर्चाएँ भी प्रारम्भ हो चुकी हैं। इस बीच संयुक्त राज्य अमेरिका में कार्यरत मेरे जेष्ठ बेटे ने चार अप्रैल को व्हाट्सएप्प पर एक बड़ा ही मर्मभेदी सन्देश भेजा जिसे मैं प्रासंगिकतावश आप सभी के अनुशीलन हेतु प्रस्तुत कर रहा हूँ। कृपया देखें ," आम ,नीम ,पीपल और बरगद के पेड़ काटकर घर में मनी प्लांट लगाने वाले बुद्धिजीवियों को  भीषण गर्मी की शुभ कामना। "और फिर भारतेन्दु जी की इन पंक्तियों को गुनगुनायें ,"हम क्या थे ,क्या हो गए और क्या होंगे अभी ?
ग्रीष्म सबके लिए मंगलमय हो। इस शुभेच्छा के साथ ---------------------------------मंगलवीणा
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------


बुधवार, 7 मार्च 2018

महिला दिवस

महिला दिवस ,आठ मार्च 2018
***************महिला का प्रथम नाम शक्ति ,दूसरा महिला नारी वुमन ,तीसरा अबला इत्यादि व चौथा आधुनिक अनेक नाम हैं जो आज के चलचित्रों व टीवी के कार्यक्रमों में दिखाई दे रहे हैं।यह भी निर्विवाद है कि हमारे सामाजिक ताने -बाने में शक्ति का सन्तुलन सदैव महिलाओं के पक्ष में रहा है परन्तु इस शक्ति का महिला समाज में समान वितरण नहीं रहा है।इसी कारण महिला के अनेक उचित, अनुचित पर्याय बनते गए। क्या यह सच नहीं है कि महिलाओं के कुछ रूप, शक्ति सम्पन्नता के कारण, स्वामिनी जैसे हो जाते हैं तो कुछ ,शक्ति विपन्नता के कारण, दासी जैसे। गौर करने के लिए सास -बहू ,सधवा -विधवा ,मालकिन -धाय ,कुल बधू -नगर बधू  के उदहारण पर्याप्त होंगे।आप हमेशा भाई चारा की बात सुनते होंगे परन्तु महिलाओं में  बहिनत्व या बहिन चारे की बात कभी नहीं। कभी सपने में सुन भी लिए होंगे तो देखना तो गधे की सींग जैसी घटना होगी।
***************महिला दिवस पर महिलाओं को एक दूसरे को शक्ति के समतल पर लाने का प्रण करना चाहिए और बहिनत्व का नारा बुलन्द करना चाहिए। सच ही कहा गया है कि हम बदलें गे --युग बदले गा।जहाँ तक पुरुष की बात है ,वह महिला की संस्कारशाला से ही निकला उन्ही के साथ उन्हीं के लिए व्यवस्थाधीन जीने वाला प्राणी है और यदि कभी कोई पुरुष महिलाओं के साथ अभद्र होता है तो फिर ध्यान संस्कार की ओर ही जाता है।हाँ , पुरुषों का  परम कर्तव्य है कि वह महिलाओं में श्रद्धा भाव सदैव व प्रति पल रखे। छायावादी महा रचनाकार स्व जय शंकर प्रसाद जी ने भी कामायनी में यही कहा है कि ----
नारी तुम केवल श्रद्धा हो ही,
विश्वास रजत नग  पद तल में।
पियूष श्रोत सी बहा करो,
जीवन के सुन्दर समतल में।
***************आज महिलाओं को ध्यान देना होगा कि वे न तो अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी बनें और न ही तू चीज बड़ी है -- बनें।उन्हें अपनी प्रगति के वर्तमान दौर में उपभोक्तावाद संस्कृति से सावधान रहते हुए अपनी गरिमा बनाए रखना होगा।श्रद्धा के लिए आचरण की योग्यता रखना महिलाओं का सर्वोपरि दायित्व है। यदि महिलाओं में यह योग्यता नहीं होगी तो वे आज की अपसंस्कृति की शिकार होती रहें गी। अतः आदरणीया या श्रद्ध्येया  को सत्यशः आदरणीया या श्रद्ध्येया ही बने रहना चाहिए।
***************यद्यपि आज महिलाएं जीवन के हर क्षेत्र जैसे विज्ञान ,अंतरिक्ष ,कला ,साहित्य ,शिक्षा ,खेलकूद ,राजनीति ,नौकरी ,उद्यमिता इत्यादि में आसमान छूने छूने लगी हैं ;फिर भी उनकी सहभागिता सँख्या ऊँट के मुँह में जीरा जैसी ही है। समाज अपवाद की उन्नति से नहीं बनता है, समाज सामान्य की उन्नति से बनता है और यह तभी सम्भव होगा जब महिलाएं स्वयँ बढे गी और बहिनत्व भाव से अन्य महिलाओं को आगे बढ़ाएं गी।नारी शक्ति के प्रति श्रद्धा भाव जताते हुए आज हम उन्हें उनकी शक्ति का सादर स्मरण कराते हैं।  ----- मंगलवीणा
वाराणसी ;दिनाँक 08 . 03 . 2018
------------------------------------------------------------------------------------------------

अपनी बात भी -
***************वर्षों से आज का दिन मेरे लिए तो  अविस्मरणीय रहा है क्योंकि तैंतालीस वर्ष पूर्व  सन 1975 में आज के दिन ही मैं अपनी पत्नी वीणा सिंह के साथ परिणय सूत्र में बँधा था। जीवन में इस संयोग के लिए मैं अपने को बहुत ही भाग्यशाली मानता हूँ।मेरी धर्म पत्नी जी एक सशक्त महिला हैं और हमारे परिवार संचालन में अपनी सशक्त भूमिका निभा रही हैं।सहमति- असहमति, प्रेम- तकरार,उतार -चढ़ाव के बीच हम दोनों  अच्छे सहयात्री हैं और अपनी नई पीढ़ी को सँवारने में ब्यस्त हैं। यह मंगलवीणा ब्लॉग जो वर्षों से आप स्नेही पाठकों एवँ मित्रों के समक्ष प्रस्तुत हो रहा है , हम दोनों के नाम युग्म का ही पुष्प गुच्छा है।अंततः महिला दिवस पर दुनियाँ की समस्त महिलाओं का सादर अभिनन्दन एवँ इस सुखद संयोग का आभार।-----------------------------------मंगला सिंह
-----------------------------------------------------------------------------------------------
-