शुक्रवार, 2 जून 2017

एक अशिष्ठता का अवसान

***************सच है भारत बदल रहा है।आदत के विपरीत सडकों पर बदला -बदला सा माहौल व यातायात की थोड़ी बढ़ी सुगमता अच्छी लगने के साथ अजीब लग रही है। ऐसा लगता है कि साहबों और सरकारों का रेला कहीं बाहर गया है।फिर याद आता है कि कर्मयोगी एवं योगी के सरकारों ने लाल ,नीली बत्ती और हूटरबाजी बन्द करा दिया है ;यह उसी का परिणाम है ! भला हो भारतीय जनता पार्टी के  सरकारों की , कि वे जनता द्वारा सत्ता सौंपे जाने पर जनता सी व्यवहार करते दीख रही हैं।सरकारें व उनके लोग लाल- नीली बत्ती व हूटर का त्याग कर जनता के सीने पर कोदो दरना बन्द कर दिए हैं ,यह मोदी सरकार के तीन वर्ष की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि है। इसके लिए वह शत प्रतिशत अंक पाने की हक़दार है।सिवा निर्णय के सरकार को कुछ खर्च करना नहीं पड़ा ,परन्तु इस निर्णय ने जनता के दिल को छू लिया। इसे कहते हैं हर्रे लगी न फिटकिरी ,रंग चोखा।
 *************** जिस लाल बत्ती को  नेता ,नौकरशाह या ओहदेदार अपनी हनक मानते रहे हैं और आम भारतवासी उनकी अशिष्ठता ;अंततः उनके अवसान की पटकथा लिख दी गई।हमारे देश में स्वार्थ सिध्यार्थी नेता और नौकरशाह जो हर अच्छे - बुरे हथकंडे अपना कर विशिष्ठ  होने का परम सुख पाते रहे हैं,वे जल के अभाव में मछली वाली तड़प की पास आती आहट सुनने लगे हैं। ये लोग आम आदमी सा होने की कल्पना मात्र से घबरा रहे हैं। इन्हें कौन समझाए कि इनकी  जीविका एवँ प्रत्यक्ष और परोक्ष  सुविधाएँ जनता से प्राप्त विभिन्न राजस्व से प्राप्त  होती हैं।अतः जनता उनसे सेवक सी भूमिका की अपेक्षा करती है न कि स्वामी सी।इससे बड़ी राष्ट्रीय विडम्बना क्या हो सकती है कि  स्वतंत्रता प्राप्ति से  आज तक ये अंग्रेजों के देशी संस्करण वाले लोग स्वामित्व का सिकंजा कसते हुए वीआईपी वाली रौब तले देश को लूटते गए जब कि आम जनता इनसे बेहद घृणा करते हुए भी इनकी चरणपादुका ढोने को मजबूर होती रही। इस उलट आचरण और मानसिकता वाले मिथक को तोड़ने में सात दसाब्दी बीत गए ,तब  कहीं जा कर यह अति  विशिष्ठ या स्वामी भाव वाली अहंकारी दीवाल दरकी है।याद रखना होगा कि यह मात्र शुभारंभ है न कि शुभांत।  इसे पूर्ण रूप से ध्वस्त होने में सुधार वाले ढेर सारे हथौड़ों की आवश्यकता होगी जब कि वीआईपी होने का सुख लूटने वाले इसे आसानी से ढहने नहीं देंगे।
***************यह सर्व विदित है कि भारत में दुनियाँ के किसी भी देश से अधिक वीआईपी हैं जिनकी सुरक्षा एवँ सुविधाएँ राजाओं जैसी हैं। देश से राजशाही तो सरदार पटेल के सौजन्य से चली गई परन्तु अनुवादित अति विशिष्ठवाद  ने अपनी जड़ें और जमा लीं। संसाधन, सुरक्षा , सुविधाओं एवँ विकास पर पहला हक़ इनका बन गया और जो शेष बच गया वह जनता का।इस नवोदित राजशाही के चलते ही लोकतंत्र में लोक उपहास का भारत अप्रतिम उदहारण बना और इसके चलते ही देश का अपेक्षित विकास सदैव वाधित रहा।परन्तु हर आम भारतीय के लिए आदर्श सत्य यह है कि लोकमत से इतर यह संस्कृति हर रूप में अशिष्ठ एवँ भ्रष्ट है। एक उदहारण से इसे समझा जा सकता है कि जब आम आदमी के साथ कोई घटना घट जाती है तो पुलिस को मात्र  घटना स्थल तक  पहुँचने  में घंटों लग जाते हैं जब कि दर्जनों की संख्या में ये पुलिस वाले हर वीआईपी को सुरक्षा देने के लिए उन्हें चौबीस घण्टे घेरे रहते हैं।यह मान्यताप्राप्त भ्रष्टाचार और अशिष्ठता नहीं तो और क्या है। ऐसी ही अनगिनत सुविधाएँ हैं जो सरकारों ने इनके कदमों में बिछा रखी हैं और हर नई सरकार इनके लिए कुछ न कुछ नई सुविधा बढ़ा जाती है।
***************ज्यादा दिन बीते नहीं हैं ;नई सरकार के केंद्र में सत्तारूढ़ होने के बाद डीजीसीए ने प्राइवेट एयरलाइन्स द्वारा वीआईपी को विशेष आतिथ्य एवँ सुविधा देने का एक निर्देश निर्गत किया था। चूँकि निजी एयरलाइन्स सभी टिकट धारकों को सामान शिष्टाचार व सामान व्यवहार देती रही,इसलिए उन्हें अति विशिष्ठों के सामने एयर इंडिया के महाराजा की भाँति झुकना आवश्यक था।अतएव निर्देशित किया गया कि जब कोई सांसद यात्री रूप में आयें उन्हें द्रुत गति से सुरक्षा जाँच ,लाउन्ज पहुँच ,फ्रिल नहीं ,चाय -कॉफी और प्रोटोकॉल के अनुसार सौहार्द सुलभ कराया जाय ताकि वहाँ भी इन आधुनिक सामंतों के शान -शौकत एवँ रुतबे का प्रदर्शन शेष यात्रियों एवँ उपस्थित कर्मियों के बीच हो सके।वरन जब सभी यात्रियों के पास  यात्रा टिकट है ,निर्धारित  सीट संख्या है और सबको यात्रा में दी जाने वाली सुविधाएँ निर्धारित हैं फिर विशिष्ठता क्यों।बात नेताओं तक ही नहीं है। नौकरशाहों के लिए तो ये एयर लाइनें या अन्य जन सम्पत्तियाँ  उनकी निजी संपत्ति सी हैं। कभी किसी सम्बन्धित कर्मी से बात कर ये आतंरिक बातें जानी जा सकती हैं।
***************तीसरा उदहारण लें। गरमी का दिन और पानी की कमी है। लोग विधायक ,सांसद के पास उनके कोटे से एक  हैण्डपम्प पाने के लिए दौड़ रहे हैं। यह भिखारी बनाने वाली  बात ही तो है।ये नेता, नेता निधि और फरियाद क्यों ?केवल अति विशिष्ठवाद। इच्छा शक्ति हो तो  इन कार्यों के लिए एक विशिष्ठता और चाटुकारिता विहीन सुन्दर माँग व्यवस्था बनाई जा सकती है।कमाल है पैसा जनता का और निधि सांसदों एवँ विधायकों की।वस्तुतः यह विशिष्ठवाद से उपजी आम जन की व्यथा कहानी अन्तहीन है।राम चरित मानस में सीताहरण के बाद अशोक वाटिका में निरुद्ध जानकी की  मनोदशा का वर्णन ,सीता माता का पता लगा कर लौटे। हनुमान ने प्रभु राम से यह कह कर किया था "सीता कै अति बिपति विसाला। बिनहि कहे भलि दीनदयाला। "आज भी स्थिति हूबहू वैसी ही है।  हम जिसे आम जन कहते हैं उनके अंतहीन कष्ट का तथा जिन्हे हम वीआईपी कहते हैं उनकी अशिष्टता , भ्रष्टाचारिता  एवँ  विलासिता का वर्णन कठिन है।यही कारण है कि मोदी सरकार द्वारा वीआईपी संस्कृति के विरुद्ध उठाये पहले कदम की जनता भूरि -भूरि प्रसंशा कर रही है और इस संस्कृति के समूल नाश की आशा बाँध रही है।
***************आशाएं नहीं मरीं। हमारी न्यायपालिका को इसका सर्वाधिक श्रेय जाता है।समय समय पर वह सरकारों व अति विशिष्ठ जनों को लोकतंत्र का आईना दिखाती रही है और अन्यायपूर्ण कृत्यों के विरुद्ध निर्णय तथा लताड़ देती रही है।इसके विपरीत दूसरी ओर सरकारों व विशिष्ठ जनों के घालमेल से अति विशिष्ठता के नए नए आयाम और रास्ते भी बनते रहे हैं।समय अनुकूलता का शुभ संकेत दे रहा है कि जनता और सरकारों का घालमेल बढ़ रहा है। जो जनता है वही सरकार है। फिर अति विशिष्ठ कौन ,क्यों और किस लिए ?एक झटके में अति विशिष्ठता रूपी सामाजिक अशिष्ठता एवं भ्रष्टाचारिता का अवसान करना होगा। चाहे राष्ट्रपति हों या प्रधान मंत्री ,सांसद हों या विधायक ,भारतीय प्रशासनिक सेवा के हों या राज्य सेवा के ,इतर कर्मी हों या चतुर्थश्रेणी के ,सबको जनता और देश सेवा में उनके योगदान के सापेक्ष सुवधाएँ ,सुरक्षा व सम्मान मिलना चाहिए।  जब कर्तव्यनिष्ठ सेवकों द्वारा  देश और जन की हो रही सेवा का पारदर्शी समानुपातिक संबन्ध उन्हें दी जाने वाली सुविधाओं से बना दिया जाय गा,तब एक भारत एवं विश्वश्रेष्ठ भारत दुनियाँ के सामने होगा। जनता मालिक होगी और उसे अपने सेवकों पर गर्व होगा।अपसंस्कृति से मोहभंग करते हुए जनहितकारी कठोर निर्णय का समय है ताकि एक सभ्य समाज का उदय हो। सही समय पर सही निर्णय न लेने पर संदर्भित समय त्रुटियों वाले  काल खण्ड की सूची में चला जाता है।इतिहास का यही चक्र है। -------------------------------------------------------------------------------------------मंगलवीणा
वाराणसी ,दिनाँक 7 जून 2017------------------------mangal-veena.blogspot.com
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अंततः
उफ़ गर्मी।
 इस ग्रीष्म ऋतु में प्रलयंकरी गर्मी ने सर्वत्र हाहाकार मचा दिया है। नदी ,बाँध ,तालाब ,कुँए सभी पानी के लिए तरस रहे हैं ,फिर आदमी ,जीव -जन्तु व पंछियों की प्यास  कैसे बुझे ?बिन पानी सब सून। समाचार पत्रों और इलेक्ट्रानिक मिडिया के माध्यम से मौसम विज्ञानी ग्रीष्म की निष्ठुरता व उसके कारणों की नित्य जानकारी दे रहे हैं।अब आइए कुछ हिंदी कवियों की दृष्टि से इस ताप को देखा जाय। यथा -
जाने क्या हुआ कि सूरज इतना लाल हुआ
प्यासी हवा हाँफती फिर -फिर पानी खोज रही
सूखे कण्ठ कोकिला ,मीठी बानी खोज रही
नीम द्वार का छाया खोजे, पीपल गाछ तलाशें
नदी खोजती धार, कूल कब से बैठे हैं प्यासे
पानी पानी रटे रात -दिन, ऐसा ताल हुआ। जाने क्या हुआ ----डा.जगदीश ब्योम
ग्रीष्म की लय में बढ़ते हुए अब बदलाव की प्रतीक्षा करनी चाहिए। अश्विन गाँधी के शब्दों में -

यह सब कुछ याद रहे
मौसम का साथ रहे
ग्रीष्म ऋतु भी जाएगी
फिर रहे गी प्रतीक्षा 

अगले मौसम की----- 
बहार की-------
***************तब तक हम सबका सर्वोच्च कर्तव्य है कि पानी बचाएँ और प्यासों को पानी उपलब्ध कराएँ।एक प्यासे पँछी को भी यदि हम पानी पिला पाए तो यह सृष्टि की बड़ी सेवा होगी।---------------------------------------------------------------------------------------------------- मंगलवीणा
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