गुरुवार, 11 फ़रवरी 2016

दवा का दर्द

***************भारत जैसे देश में शिक्षा ,स्वास्थ्य व सामाजिक सुरक्षा को सकारात्मक और जनहितसाधी बनाए रखना सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए परन्तु दुर्भाग्य से ये तीनों क्षेत्र भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं हो पा रहे हैं। ऐसे में सरकार को कम से कम ऐसे निर्णयों से बचना चाहिए जो इन क्षेत्रों में नकारात्मकता बढ़ाएँ।हाल ही में भारत सरकार ने गम्भीर रोगों में दी जाने वाली , विदेशों से आयातित, चौहत्तर दवाओं से आयत शुल्क छूट वापस लेकर एक ऐसा ही विपरीत कदम उठाया है जिसका औचित्य समझ से परे है। आयातित दवाएँ अपनी उत्तमता के कारण बाजार में हैं। अतः आर्थिक दबाव बढ़ा कर उन्हें बाजार से बाहर करना उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य के साथ अन्याय है।
***************प्रदूषित जलवायु ,आधुनिक जीवन शैली एवँ बढ़ते प्राकृतिक असंतुलन ने अनेकानेक गम्भीर बीमारियों का सौगात भी आज के समाज को सौंपा है। इन  फैलती  बीमारियों व बढ़ती चिकित्सकीय सुविधाओं के कारण  हर  घर -परिवार में आय का एक बड़ा हिस्सा दवा पर ब्यय हो रहा है। उन परिवारों की तो आर्थिक रीढ़ ही टूट जाती है जिनका  कोई सदस्य किसी गम्भीर एवँ लम्बी बीमारी की चपेट में आ जाता है ।ऐसे में किसी भी तर्क से  दवाओं की कीमते बढ़ा कर रोगियों के लिए दवा का दर्द बढ़ाना किसी भी दवा निर्माता या सरकार के लिए सराहनीय नहीं हो सकता है।हाल ही में कुछ गम्भीर बीमारिओं में प्रयोज्य आयातित दवाओं के दाम बढ़ने से वे रोगी तो कराह ही उठे हैं जो इन दवाओं से स्वास्थ्यलाभ पा रहे हैं। यह सभी जानते ,मानते और समझते हैं कि दक्षता के साथ-साथ चिकित्सक ,चित्कित्सालय व्,चिकित्सा  रोगी के विश्वास के विषय हैं। फिर विश्वास को आर्थिक दबाव से प्रभावित करना सरकार की संवेदनशीलता पर प्रश्नचिन्ह जड़ता है। अतः जिस सरकार के सर पर जनता के उम्मीदों की भारी गठरी है उसे देशी दवाओं के प्रोत्साहन के लिए, शुल्क छूट वापस लेकर आयतित दवाओं की कीमतें बढ़ा कर उनकी उम्मीदों पर पानी नहीं फेरना चाहिए।
*************** दवाओं के विषय में कोई निर्णय रोगियों के हित में होना चाहिए जिसे हमारे देश के अधिकार प्राप्त लोग समझने को तैयार नहीं हैं। वे अधिकांशतः अपने कर्तब्यों के प्रति असंवेदनशील हैं और ऐसा निर्णय ले रहे हैं कि लगता ही नहीं कि वे जनता  के लिए अधिकार संपन्न बनाये गए हैं। गाँधी के देश में नियन्ताओं को इतना भी यथेष्ठ क्यों नहीं लगता कि थोड़े समय केलिए स्वयं आम जन बन कर अनुभव करें कि उनका निर्णय उन्हें कैसा लग रहा है? स्वास्थ्य व्यवस्था को चुस्त -दुरुस्त, पारदर्शी एवँ आम आदमी केलिए सुलभ बनाने वाला प्रयास छोड़  उसे और दुसह बनाना सम्वेदना की किस कसौटी पर उचित माना जा रहा है?क्या किसी एच आई वी ,किडनी ,कैंसर ,दिल ,यकृत ,मधुमेह जैसी गम्भीर बीमारी से पीड़ित ब्यक्ति ,जो इन दवाओं के सहारे जिंदगी की जंग लड़ रहा है ,के प्रति सरकार का यही कर्तव्य बोध है? शायद ही ऐसे निर्णयों से भारत स्वस्थ भारत बने।
***************आयत शुल्क की छूट वापसी केलिए सरकार ने देशी दवा की कम्पनियों को बढ़ावा देने का तर्क दिया है जिससे प्रमाणित होता है कि देशी दवा उत्पादकों का सरकार पर दबाव है। परन्तु इससे यह प्रमाणित नहीं होता कि क्या सरकार का भी इन देशी  निर्माताओं पर कोई नियंत्रण है ?देश में निर्मित  दवाओं की गुणवत्ता से मूल्य तक ,जाँचशुल्क से डाक्टरों की फ़ीस तक सब कुछ अपारदर्शिता से आच्छादित हैं जिससे उपभोक्ता ,सरकारें व् अखिल भारतीय मेडिकल एसोसिएशन सभी विज्ञ हैं। फिर भी कुछ अदृश्य कारण हैं जिससे उबरने की इच्छाशक्ति न सरकार बना पा रही है न संगठन।
***************विसंगतियों को समाप्त करने के नाम  पर लोग अपनी लोक प्रियता बटोर लेते हैं और अपना हित भी साध लेते हैं पर उपभोक्ता ठगे से जहाँ के तहाँ रह जाते हैं। आज भी आमिर खान साहब की सत्यमेव जयते वाली धारावाहिक याद है जिसमें दवा क्षेत्र वाली कड़ी ने खूब वाहवाही बटोरी थी।सस्ती जेनरिक दवाओं की भी खूब ढोल पीटी गई। आस पास के किसी मेडिकल स्टोर पर जाइए,नहीं मिलती हैं। स्वच्छ भारत -स्वस्थ भारत वाले देश में यदि कहीं सबसे अस्वच्छ भारत दिखता है तो सरकारी अस्पतालों में जिनके कन्धों पर स्वस्थ भारत का दायित्व है।हो हल्ला सुनते रहिए परन्तु परिणाम- ढाक के तीन पात।सजग सरकार से अपेक्षा है कि उपभोक्ता हित में इस क्षेत्र के सभी खिलाडियों को समान सतह पर स्वस्थ एवँ पारदर्शी प्रतिद्वंदिता का अवसर प्रदान करे ताकि भारत स्वस्थ एवँ स्वच्छ रहे। तभी तो देवगण भी भारत भूमि में जन्म लेकर अपने को धन्यभागी मानें गे।---------------------------------------------------------------------------------मंगलवीणा
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वाराणसी ,दिनाँक 14.02 .2016                                 mangal-veena.blogspot.com
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अन्ततः
आज के त्योहार पर संत वेलेंटाइन यदि इस धरा पर होते तो ख़ुशी से झूम उठते कि उनको मानने वाले पूरी दुनियाँ में फ़ैल चुके हैं;यहाँ तक कि भारतीय सुसंस्कृति का भी चीर हरण करने लगे हैं।वेलेन्टाइन महोदय को शायद पता था कि लगभग इसी समय भारत में बसंत आगमन के साथ मदन महीप जी  का स्वागत होता है। अतः यहाँ भी हैप्पी  वेलेंटाइन डे लोगों के सर चढ़ कर बोले गा।भारतीय संस्कृति के हितैषी इस युवा भारत को क्या समझाएँ।अच्छा है कि लहरों को अपनी मस्ती में लहराने दिया जाय। संत वेलेंटाइन की जय हो। सभी सुधी पाठकों को  हैप्पी  वेलेंटाइन डे।------मंगलवीणा
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