गुरुवार, 4 जून 2015

दस में कितने नम्बर

***************इन दिनों देश के विभिन्न शैक्षिक बोर्ड धड़ाधड़ दसवीं एवँ बारहवीं के परिणाम घोषित कर रहे हैं । बोर्ड चलाने वाले और परीक्षा देने वाले --दोनों ही नये -नए कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं। आँकड़ों की मानी जाय तो शिक्षा में युगान्तकारी सुधार हो रहा है और हम सौ प्रति सौ प्राप्ति के सन्निकट हैं। इसी दिन के लिए हमने अध्ययन -अध्यापन को बदला ,प्रश्नपत्रों को लम्बा कर उत्तर पुस्तिकाओं का आकर घटाया और हम उस आयाम को समाप्त कर रहे हैं कि किसी विषय पर कितना भी लिख़ दिया जाय ;उससे अधिक एवँ  बेहतर लेखन की संभावना सदैव बनी रहती है अतः पूर्णांक मिलना दुष्कर है। इन्हीं प्रयासों से शिक्षा के नए दिन आये हैं और शिक्षा की नई कालिदास-प्रणाली लागू हुई है। फलस्वरूप सफल छात्रों एवँ कीर्तिमान स्थापित करनेवालों की सर्वत्र प्रसंशा हो रही है। साथ ही परीक्षा उत्तीर्ण हुए लाखों  छात्र एवँ उनके अभिभावक जहाँ उत्साहित एवँ भविष्य के प्रति आशान्वित हैं वहीँ अनुत्तीर्ण छात्र और उनसे सहानुभूति रखने वाले लोग शिक्षकों ,परीक्षकों व शिक्षा की वर्तमान दशा को कोस रहे हैं।असफल परीक्षार्थियों को यहीं नहीं रुकना चाहिये बल्कि बीती परीक्षा से निराश न होते हुए आत्मचिंतन करना चाहिए और अगले अवसर को बड़ी सफलता में बदलने के लिए कटिबद्ध होना चाहिए।
***************ऐसे समय इसे सुयोग ही कहा जायगा कि बीते छब्बीस मई को केंद्र में सत्तासीन मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल का एक वर्ष पूरा कर लिया और नई प्रथा के अनुरूप उसने भी टीवी ,मिडिया ,समाचारपत्र व जन संपर्क माध्यमों से अपनी एक वर्ष की उपलब्धि  का लेखा -जोखा जनता के समक्ष रखना प्रारंभ कर दिया।फिर क्या ;वाच्य हो ,दृश्य हो या श्रव्य -अहर्निश यही चर्चा कि मोदी सरकार को दस में कितने नम्बर ?सत्ताच्युत विरोधी नेता तो जैसे मूर्छा से जाग उठे हैं। उनके हाई कमान और कार्यकर्ता सरकार को दस में शून्य देने पर उतर आये हैं।उन्हें एक साथ कई लाभ जैसे टीवी चैनलों पर पुनः अवतरण ,भविष्य में सत्तासुख की आस ,हाई कमान की कृपा इत्यादि दिखने लगे हैं। यह तो भला हो आज  के ट्रेंड -सेटर (प्रथा -स्थापक )टीवी चैनलों का जो ऋणात्मक नंबरिंग नहीं करा रहे हैं वरन सरकार के प्राप्तांक को अपनी पूर्ववर्ती सरकार से पीछे धकेल देते। वैसे सभी भारतीय जानें या न जानें ,टीवी चैनल वाले मौलिक रूप से जानते हैं कि सरकार सबकी है। अतः वे सरकार के काम-काज का मूल्यांकन किसी से भी करा सकते हैं। वे चैनल का हित साधते हुए किसी को परीक्षक बनने का सुअवसर दे रहे हैं और उनसे पूछ रहे हैं कि आप मोदी सरकार को कितने नम्बर देंगे। इक्के -दुक्के धर्मगुरुओं ,अध्यापकों ,विश्लेषकों ,नौकरशाहों ,व्यवसायिओं , वकीलों ,डाक्टरों ,किसानों ,टॅक्सीचालकों, मजदूरों इत्यादि की तो बन आई है। टीवी के पैनलिस्टों की तो बात ही और है। मिडिया सौजन्य से इन सबके  अच्छे दिन चल रहे हैं।आम के आम ,गुठलियों के दाम - वे परीक्षक बनने के कल्पनातीत अवसर के साथ टीवी पर सुशोभित हो समाज में विशिष्ठ होने का रौब भी पा रहे हैं। जहाँ तक नम्बर की बात है वह तो चैनल वाले जो चाहते हैं दिला ही देते हैं। चूँकि चैनल दर्शकों से दर्शकों के लिए चलाये जा रहे हैं ,अतः पक्ष -प्रतिपक्ष की खिंचाई कराते समय वे दर्शकों का पूरा ख्याल भी रख रहे हैँ।इस नम्बर के खेल में मिडिया ने, सत्तारूढ़ केंद्र सरकार से राज्य सरकारों तक तथा विभिन्न राष्ट्रीय से स्थानीय प्रतिपक्षी दलों तक, सबको ऊपर -नीचे वाले ढेकुल झूले पर चढ़ा दिया है जिससे ये कभी आसमान में हुलस रहे हैं तो कभी धरती पर धूल फाँकते दिख रहे हैं।निःसंदेह चौथा स्तंभ अपने उत्कर्ष पर है।
***************सावन से भादों दूबर ?मोदी सरकार मिडिया पर छायेंऔर केजरीवाल राष्ट्रीय रंगमंच से ओझल हों ;यह आज के भारत में हो ही नहीं सकता।अतः वे भी अपनी सौ दिन में हल की गई उत्तरपुस्तिका ले कर मिडिया पर चढ़ गए और शंख नाद करने लगे कि उनके लिए दस में दस क्या ,हजार -लाख भी कम। लोग उन्हें ऐसे उछालते हैं मानो मोदी सरकार के बाद देश में कोई सत्ता है तो वह केजरीवाल ही हैं। केजरीवाल को लेकर मिडिया की आतुरता  एवँ उनके समाचार चयन के मापदण्ड पर आम जनता सशंकित हो रही है। यह तो नकारा नहीं जा सकता कि दिल्ली जैसे  कई महानगर इस देश में हैं जिनको वहाँ की महानगर पलिकाएँ एवँ स्थानीय प्रशासन चला रहे हैं; वह भी बिना केंद्र शासित राज्य दिल्ली जैसी प्राप्त सुविधाओं के।ऐसे में दिल्ली का प्रदेश होना समझ में आए या न आए  परन्तु केजरीवाल का मुख्य मंत्री होना और लेफ्टिनेंट गवर्नर साहब पर कीचड़ की फेंका -फेंकी खूब समझ में आ रही है।टीवी चैनल वालों के सामने टीआरपी की समस्या हैऔर ज्वलंत मुद्दों के पिछले पादान पर खिसकाने केँ उनके अपने तर्क भी हैं।  
***************परन्तु अपनी -अपनी ढफली अपना -अपना राग के बीच भी यह जो जनता है -सब जानती है। उसे पूरी बहस में ईमानदारी व निष्पक्षता बहुत ही रंच दिखाई दे रही है। जनता ने मोदी जी द्वारा सरकार बनाने के क्रम में उन्हें एक अनुमोदित प्रश्नपत्र या अपेक्षा  सूची सौंपी थी ,वह मूल्यांकन के समय लुप्त है। सत्ता ,विपक्ष और कुछ विश्लेषक  स्वयं को भाने वाले अपने -अपने गढंत प्रश्नपत्र व कल्पना सृजित उत्तरपुस्तिका या उपलब्धि लेकर धमा -चौकड़ी मचाए हुए हैं जैसे शूट -बूट वनाम शूट्केस की सरकार।    भाषा से ठेंठ न बना जाय ;समय आने पर जनता सत्ता ही नहीं विपक्ष का  भी यथेष्ट मूल्यांकन कर देगी। रही बात आज की तो दस में कितने नंबर वालों को सौ में कितने नंबर वालों से सीख लेनी चाहिए कि वहाँ लाखों परीक्षार्थी एक प्रश्न पत्र का उत्तर देते हैं।
***************सारांशतः दस में कितने नम्बर वाले परिवेश में सौ में कितने नम्बर वालों की प्रासंगिक वरीयता धूमिल होना भारत की सुनहरी यात्रा में एक गतिरोध सा होगा।ये लाखों की नई पीढ़ी कल देश को आगे बढ़ाने एवँ इसे सँवारने की जिम्मेदारी सँभालने वाली है। अतः उन्हें हर विशेषज्ञ परामर्श व मार्गदर्शन , व्यापक स्तर पर, मिलनी चाहिए।वर्तमान को भविष्य की अनदेखी नहीं करनी चाहिए। इस प्रसंग में प्रधान मंत्री ने अपनी पिछली मन की बात में  परीक्षार्थिओं को बधाई एवँ उत्साह वर्धन कर एक सराहनीय कार्य किया। इन बातों को टीवी ,मिडिया व अन्य सञ्चार माध्यमों को और आगे बढ़ाना होगा। यदि घुमक्कड़ी माने तो शिक्षा वही है जिससे व्यक्ति अपने जीवन के हर पहलू में शिक्षित लगे और सरकार की उपलब्धि वही जो बिना बताए ही जनता को दिखे।बिना तन्मय संघर्ष के परीक्षार्थी हों या  सरकारें मात्र नम्बर के सहारे अपने लक्ष्य को नहीं बेध पायें गे। --------------------------------------मंगलवीना
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अंततः
                                              विश्व - पर्यावरण -दिवस 
************आज पर्यावण दिवस पर हम पृथ्वीवासिओं को, पिछले तीन महीनों के, प्रकृति प्रदत्त संदेशों का
  स्मरण करना चाहिए। रबी कटाई के समय  तूफानी वरसात ,हिमालय की गोंद में एक से एक भूकम्प के झटके,पानी के लिए मचा हाहाकार एवँ आंध्र से पूरे उत्तर भारत में गर्मी का चल रहा  प्रलयंकरी ताण्डव जैसे प्राकृतिक उपहार पर्यावरण से छेड़ -छाड़ के रिटर्न -गिफ्ट हैं। यदि ऐसे रिटर्न -गिफ्ट नहीं चाहिए तो मानव जाति पचास वर्ष पहले का पर्यावरण धरती को लौटा दे वरन हम याचना करें गे -"हे प्रभु !अच्छे दिन तो बाद में देना ,ठण्डे दिन पहले दे दो। भूख तो मिटती रहेगी,प्यास तो पहले मिटा दो। "  -------------------मंगलवीना  
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पर्यावरण दिवस :दिनाँक 5 जून 2015 --वाराणसी।
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