मंगलवार, 30 जून 2015

मैगी को वापस लाओ

************मैगी को वापस लाओ। मॉड्यूलर किचेन सूने पड़े हैं। आधुनिक माताएँ अपने बच्चों पर मैगी रूपी ममता नहीं उड़ेल पा रही हैं। नेस्ले वालों ने भारत से मैगी को बाहर कर लिया किन्तु आधुनिकाओं के साथ -साथ अकेले घर से दूर रहकर पढने -पढाने  और  नौकरी करने वाले  नवयुवकों एवँ युवतियों के भी बुरे हाल हो रहे हैं। बाजार में उपलब्ध  स्थानापन्न द्रुत भोज्य जैसे नोर ,टॉप रमेन,  मैक्रोनी,आईटीसी की यिप्पी या अन्य ब्राण्ड नूडल्स में वह दम -ख़म व लोकप्रियता कहाँ जो मैगी को भुलवा सकें।वैसे ये भी एक के बाद एक बाजार से निष्कासित हो रहे हैं।मैगी से प्राप्त बाकी सुविधाओं या फ्लेवर को छोड़ भी दें तो बतरस का आनन्द कहाँ से आये।मैगी नहीं; तो  चर्चा में प्रीती जिंटा ,माधुरी दीक्षित और अमिताभ बच्चन को कैसे लायें।मामला एक रस का नहीं  कई रसों का है अन्यथा शीघ्रता एवँ पौष्टिकता में तो पारम्परिक खिचड़ी भी किसी से कम नहीं। कुल मिला कर इस नूडल्स के बाजार से बाहर होने पर आधुनिक स्मार्टनेस को एक करारा झटका लगा है।
************सारे फसाद की जड़ में कोई चाणक्य प्रण वाला बाराबंकी का खाद्य निरीक्षक लगता है जिसने मैगी की जड़ में मंठा डाल दिया वरन कौन साधारण मनुज जनता था कि दूषित आबोहवा , मिलावटी दूध ,जहर घुले फल -सब्जी ,कंकड़ -पत्थर मिले खाद्यान्न या नकली दवाओं से भारतीयों को बचाने के लिए कुछ तंत्र ,नियमित विभाग या मंत्रालय भी हैं जो यदा -कदा समाचारों में आ जाते हैं।ऐसा ही एक विभाग है -भारतीय खाद्य संरक्षा एवँ मानक प्राधिकरण जो इस प्रकरण में नाम धन्य हो गया। यह भी पता चला कि इनकी अपनी प्रयोगशालाएँ हैं और राज्यों में इनके खाद्य आयुक्त एवँ अन्य खाद्य अधिकारी भी तैनात हैं जो हमें शुद्ध और स्वास्थ्यवर्धक खाद्य पदार्थों की गारण्टी देते हैं।परन्तु जनता की सेहत की क्या बात की जाय ,इस विभाग के पूर्व अधिकारी कह रहे हैं कि  विभाग की स्वयँ की ही सेहत बहुत ख़राब है। अपनी चिन्ता छोड़ अब सबलोग यह जानने को उत्सुक हैं कि विभाग के अधिकारिओं का माली स्वास्थ्य कैसा है। बिना किसी प्रयोजन के हानिकारक मिलावट एवँ ऐसे सरकारी विभाग, दूध और पानी की भाँति, वर्षों से मित्रवत सामंजस्य में नहीँ बने रहते।लोग हजम नहीं कर पा रहे हैं कि मैगी में मानक स्तर से ज्यादा पाये गए लेड व एमएसजी क्या हमारे हाजमे के लिए अन्य नित्य झेले जा रहे मिलावटों से ज्यादा घातक हैं।पहरेदारों से कौन पूछे कि ये हानिकारक नूडल्स भारतीय बाजार में कैसे घुसे।
************लोगों को यह बात और हैरान -परेशान कर रही है कि जिन खाद्य पदार्थों की शान में हमारे फ़िल्मी सितारे रात दिन विज्ञापनों द्वारा टीवी पर कसीदे काढ़ते हैं क्या वे भी स्वास्थ्य नाशक हो सकते हैं। ये वे लोग हैं जो हमारी आधुनिकता के मानक हैं और नई पीढ़ी की युवक एवँ युवतियों की चर्या में हर पल अनुकरणीय हैं।ये ब्रांड अम्बेसडर हैं जो  नैतिकता की परिभाषा भी स्वयँ गढ़ते हैं अन्यथा ब्राण्डिंग द्वारा करोड़ों कमाने से पहले वे अपने स्तर से यह सुनिश्चित अवश्य करते कि, जिसने उन्हें सितारा बनाया ,अपार संपत्ति स्वामी बनाया और अगाध स्नेह दिया ,उस जनता को विज्ञापन द्वारा परोसी जा रही वस्तु वास्तव में हानिकारक नहीं है।रही बात गलती मानने और क्षमा माँगने की तो ये चीजें बड़े लोगों के धर्माचरण में आती ही कहाँ हैं।काना -फूसी होती रहे ,करोड़ों की कमाई कर शांत बैठने में क्या बुराई है। अभी लू से देश में हजारों लोग मरे हैं  तो ताप की क्या जवाबदेही ?यही तो ताप का प्रताप है।
************हमारे जनतंत्र की धारिता है कि जवाबदेही तो बनती है। फिर इस प्रकरण में ज्वार आने पर खाद्य एवँ उपभोक्ता , रसायन एवँ उर्वरक तथा आयुष विभाग के मंत्री भी सामने आये हैं और उपभोक्ता हित एवँ अधिनियमों की बात कर रहे हैं परन्तु ब्राण्ड अम्बेसडरों की जबाबदेही विषय पर ये लोग भाटे की प्रतीक्षा करते दीख रहे हैं।नेताओं ,अभिनेताओं और बाबुओं को तो दृढ विश्वास है कि हर समस्या या विवाद की एक जिंदगी होती है और वह इस समय सीमा बाद स्वतः समाप्त हो जाती है।परन्तु विश्वास के विपरीत मैगी विवाद की जिन्दगी तो बढ़ती जा रही है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य संगठन द्वारा गठित एक समिति ने रिपोर्ट दिया है कि मोनो सोडियम ग्लूटामेट मात्र एक चोखा फ्लेवर है और यह स्वास्थ्य केलिए बिलकुल हानिकारक नहीं है। अब किसकी मानें किसकी न मानें। कहीं नई पीढ़ी के प्रिय मैगी को उनसे छीनने एवँ उनपर खिचड़ी थोपने का कोई दुष्चक्र तो नहीं। दूध का दूध और पानी का पानी करने के लिए सीबीआई जाँच तो बनती है।------- सीबीआई से इस लिए कि अन्य किसी जाँच संस्था पर कोई भरोसा ही नहीं करता।
************दूसरी ओर हर संकट या समस्या अपने साथ नए अवसर भी लाती हैं ,यह खिचड़ी के लिए सर्वथा उपयुक्त समय है कि आधुनिक पीढ़ी में यह अपनी पैठ बढ़ाए और दुनियाँ का सबसे चोखा फटाफट भोज्य बने। इसके लिए यदि इसे मुँह बिदका देने वाला खिचड़ी नाम बदलना पड़े तो बदले ,जिन लोगों के नाम माँ -बाप ने खिचड़ू या खिचड़ी रख दिए है और वे, शर्मिंदगी के कारण, हमेशा अपना नाम अंग्रेजी के शार्ट रूप में लेते हैं,उनको नए जमाने के धाँसू नाम दिए जाँय।साथ ही दुनियाँ में फैले भारतीय दूतावासों में इस भोज्य को अनिवार्य कर दिया जाय।यह भी सुखद संयोग है कि भोजन में खिचड़ी हमारे प्रधान मंत्री जी की पहली पसंद है और  विश्व पटल पर भारत के लिए यह अनुकूल समय है।अतः योग दिवस की भाँति चौदह जनवरी को, संयुक्त राष्ट्र संघ से, अंतर्राष्ट्रीय खिचड़ी दिवस घोषित कराने का प्रयास हो। यदि सफलता मिली तो सरकार की यह दूसरी बड़ी उपलब्धि होगी और चौदह जनवरी को हमारा उत्साह बुलंदिओं पर।
******************************आश्चर्य !देखते ही देखते रोटी ,कपड़ा,मकान और स्वास्थ्य ,शिक्षा      ,सड़क, बिजली,भ्रष्टाचार वाली समस्याएँ नेपथ्य में जा रही हैं और सरकार जनता से झाड़ू लगवाती ,बैंक खाते खुलवाती ,योग कराती, बेटी के साथ सेल्फ़ी खिंचवाती,देशी मिलावटों पर कान बहरा करती और मैगीको भगाती रंगमंच पर पर अवतरित हो रही है ।इसे कहते हैं पैराडाइम शिफ्ट (Paradigm Shift) । जो हो रहा है होने दो ;फटाफट भूख मिटाने को मैगी वापस लाओ।नेस्ले वालोँ को तो भारतीय बाज़ारमें घुसने का पूर्व अनुभव है ही। पावस आ चुकी है ,स्कूल खुल गए हैं और सबको जल्दी पड़ी है। ज्यादा क्या लिखूँ।----------------------------------------------- मंगलवीणा
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वाराणसी :दिनाँक 30 जून 2015
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गुरुवार, 4 जून 2015

दस में कितने नम्बर

***************इन दिनों देश के विभिन्न शैक्षिक बोर्ड धड़ाधड़ दसवीं एवँ बारहवीं के परिणाम घोषित कर रहे हैं । बोर्ड चलाने वाले और परीक्षा देने वाले --दोनों ही नये -नए कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं। आँकड़ों की मानी जाय तो शिक्षा में युगान्तकारी सुधार हो रहा है और हम सौ प्रति सौ प्राप्ति के सन्निकट हैं। इसी दिन के लिए हमने अध्ययन -अध्यापन को बदला ,प्रश्नपत्रों को लम्बा कर उत्तर पुस्तिकाओं का आकर घटाया और हम उस आयाम को समाप्त कर रहे हैं कि किसी विषय पर कितना भी लिख़ दिया जाय ;उससे अधिक एवँ  बेहतर लेखन की संभावना सदैव बनी रहती है अतः पूर्णांक मिलना दुष्कर है। इन्हीं प्रयासों से शिक्षा के नए दिन आये हैं और शिक्षा की नई कालिदास-प्रणाली लागू हुई है। फलस्वरूप सफल छात्रों एवँ कीर्तिमान स्थापित करनेवालों की सर्वत्र प्रसंशा हो रही है। साथ ही परीक्षा उत्तीर्ण हुए लाखों  छात्र एवँ उनके अभिभावक जहाँ उत्साहित एवँ भविष्य के प्रति आशान्वित हैं वहीँ अनुत्तीर्ण छात्र और उनसे सहानुभूति रखने वाले लोग शिक्षकों ,परीक्षकों व शिक्षा की वर्तमान दशा को कोस रहे हैं।असफल परीक्षार्थियों को यहीं नहीं रुकना चाहिये बल्कि बीती परीक्षा से निराश न होते हुए आत्मचिंतन करना चाहिए और अगले अवसर को बड़ी सफलता में बदलने के लिए कटिबद्ध होना चाहिए।
***************ऐसे समय इसे सुयोग ही कहा जायगा कि बीते छब्बीस मई को केंद्र में सत्तासीन मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल का एक वर्ष पूरा कर लिया और नई प्रथा के अनुरूप उसने भी टीवी ,मिडिया ,समाचारपत्र व जन संपर्क माध्यमों से अपनी एक वर्ष की उपलब्धि  का लेखा -जोखा जनता के समक्ष रखना प्रारंभ कर दिया।फिर क्या ;वाच्य हो ,दृश्य हो या श्रव्य -अहर्निश यही चर्चा कि मोदी सरकार को दस में कितने नम्बर ?सत्ताच्युत विरोधी नेता तो जैसे मूर्छा से जाग उठे हैं। उनके हाई कमान और कार्यकर्ता सरकार को दस में शून्य देने पर उतर आये हैं।उन्हें एक साथ कई लाभ जैसे टीवी चैनलों पर पुनः अवतरण ,भविष्य में सत्तासुख की आस ,हाई कमान की कृपा इत्यादि दिखने लगे हैं। यह तो भला हो आज  के ट्रेंड -सेटर (प्रथा -स्थापक )टीवी चैनलों का जो ऋणात्मक नंबरिंग नहीं करा रहे हैं वरन सरकार के प्राप्तांक को अपनी पूर्ववर्ती सरकार से पीछे धकेल देते। वैसे सभी भारतीय जानें या न जानें ,टीवी चैनल वाले मौलिक रूप से जानते हैं कि सरकार सबकी है। अतः वे सरकार के काम-काज का मूल्यांकन किसी से भी करा सकते हैं। वे चैनल का हित साधते हुए किसी को परीक्षक बनने का सुअवसर दे रहे हैं और उनसे पूछ रहे हैं कि आप मोदी सरकार को कितने नम्बर देंगे। इक्के -दुक्के धर्मगुरुओं ,अध्यापकों ,विश्लेषकों ,नौकरशाहों ,व्यवसायिओं , वकीलों ,डाक्टरों ,किसानों ,टॅक्सीचालकों, मजदूरों इत्यादि की तो बन आई है। टीवी के पैनलिस्टों की तो बात ही और है। मिडिया सौजन्य से इन सबके  अच्छे दिन चल रहे हैं।आम के आम ,गुठलियों के दाम - वे परीक्षक बनने के कल्पनातीत अवसर के साथ टीवी पर सुशोभित हो समाज में विशिष्ठ होने का रौब भी पा रहे हैं। जहाँ तक नम्बर की बात है वह तो चैनल वाले जो चाहते हैं दिला ही देते हैं। चूँकि चैनल दर्शकों से दर्शकों के लिए चलाये जा रहे हैं ,अतः पक्ष -प्रतिपक्ष की खिंचाई कराते समय वे दर्शकों का पूरा ख्याल भी रख रहे हैँ।इस नम्बर के खेल में मिडिया ने, सत्तारूढ़ केंद्र सरकार से राज्य सरकारों तक तथा विभिन्न राष्ट्रीय से स्थानीय प्रतिपक्षी दलों तक, सबको ऊपर -नीचे वाले ढेकुल झूले पर चढ़ा दिया है जिससे ये कभी आसमान में हुलस रहे हैं तो कभी धरती पर धूल फाँकते दिख रहे हैं।निःसंदेह चौथा स्तंभ अपने उत्कर्ष पर है।
***************सावन से भादों दूबर ?मोदी सरकार मिडिया पर छायेंऔर केजरीवाल राष्ट्रीय रंगमंच से ओझल हों ;यह आज के भारत में हो ही नहीं सकता।अतः वे भी अपनी सौ दिन में हल की गई उत्तरपुस्तिका ले कर मिडिया पर चढ़ गए और शंख नाद करने लगे कि उनके लिए दस में दस क्या ,हजार -लाख भी कम। लोग उन्हें ऐसे उछालते हैं मानो मोदी सरकार के बाद देश में कोई सत्ता है तो वह केजरीवाल ही हैं। केजरीवाल को लेकर मिडिया की आतुरता  एवँ उनके समाचार चयन के मापदण्ड पर आम जनता सशंकित हो रही है। यह तो नकारा नहीं जा सकता कि दिल्ली जैसे  कई महानगर इस देश में हैं जिनको वहाँ की महानगर पलिकाएँ एवँ स्थानीय प्रशासन चला रहे हैं; वह भी बिना केंद्र शासित राज्य दिल्ली जैसी प्राप्त सुविधाओं के।ऐसे में दिल्ली का प्रदेश होना समझ में आए या न आए  परन्तु केजरीवाल का मुख्य मंत्री होना और लेफ्टिनेंट गवर्नर साहब पर कीचड़ की फेंका -फेंकी खूब समझ में आ रही है।टीवी चैनल वालों के सामने टीआरपी की समस्या हैऔर ज्वलंत मुद्दों के पिछले पादान पर खिसकाने केँ उनके अपने तर्क भी हैं।  
***************परन्तु अपनी -अपनी ढफली अपना -अपना राग के बीच भी यह जो जनता है -सब जानती है। उसे पूरी बहस में ईमानदारी व निष्पक्षता बहुत ही रंच दिखाई दे रही है। जनता ने मोदी जी द्वारा सरकार बनाने के क्रम में उन्हें एक अनुमोदित प्रश्नपत्र या अपेक्षा  सूची सौंपी थी ,वह मूल्यांकन के समय लुप्त है। सत्ता ,विपक्ष और कुछ विश्लेषक  स्वयं को भाने वाले अपने -अपने गढंत प्रश्नपत्र व कल्पना सृजित उत्तरपुस्तिका या उपलब्धि लेकर धमा -चौकड़ी मचाए हुए हैं जैसे शूट -बूट वनाम शूट्केस की सरकार।    भाषा से ठेंठ न बना जाय ;समय आने पर जनता सत्ता ही नहीं विपक्ष का  भी यथेष्ट मूल्यांकन कर देगी। रही बात आज की तो दस में कितने नंबर वालों को सौ में कितने नंबर वालों से सीख लेनी चाहिए कि वहाँ लाखों परीक्षार्थी एक प्रश्न पत्र का उत्तर देते हैं।
***************सारांशतः दस में कितने नम्बर वाले परिवेश में सौ में कितने नम्बर वालों की प्रासंगिक वरीयता धूमिल होना भारत की सुनहरी यात्रा में एक गतिरोध सा होगा।ये लाखों की नई पीढ़ी कल देश को आगे बढ़ाने एवँ इसे सँवारने की जिम्मेदारी सँभालने वाली है। अतः उन्हें हर विशेषज्ञ परामर्श व मार्गदर्शन , व्यापक स्तर पर, मिलनी चाहिए।वर्तमान को भविष्य की अनदेखी नहीं करनी चाहिए। इस प्रसंग में प्रधान मंत्री ने अपनी पिछली मन की बात में  परीक्षार्थिओं को बधाई एवँ उत्साह वर्धन कर एक सराहनीय कार्य किया। इन बातों को टीवी ,मिडिया व अन्य सञ्चार माध्यमों को और आगे बढ़ाना होगा। यदि घुमक्कड़ी माने तो शिक्षा वही है जिससे व्यक्ति अपने जीवन के हर पहलू में शिक्षित लगे और सरकार की उपलब्धि वही जो बिना बताए ही जनता को दिखे।बिना तन्मय संघर्ष के परीक्षार्थी हों या  सरकारें मात्र नम्बर के सहारे अपने लक्ष्य को नहीं बेध पायें गे। --------------------------------------मंगलवीना
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अंततः
                                              विश्व - पर्यावरण -दिवस 
************आज पर्यावण दिवस पर हम पृथ्वीवासिओं को, पिछले तीन महीनों के, प्रकृति प्रदत्त संदेशों का
  स्मरण करना चाहिए। रबी कटाई के समय  तूफानी वरसात ,हिमालय की गोंद में एक से एक भूकम्प के झटके,पानी के लिए मचा हाहाकार एवँ आंध्र से पूरे उत्तर भारत में गर्मी का चल रहा  प्रलयंकरी ताण्डव जैसे प्राकृतिक उपहार पर्यावरण से छेड़ -छाड़ के रिटर्न -गिफ्ट हैं। यदि ऐसे रिटर्न -गिफ्ट नहीं चाहिए तो मानव जाति पचास वर्ष पहले का पर्यावरण धरती को लौटा दे वरन हम याचना करें गे -"हे प्रभु !अच्छे दिन तो बाद में देना ,ठण्डे दिन पहले दे दो। भूख तो मिटती रहेगी,प्यास तो पहले मिटा दो। "  -------------------मंगलवीना  
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पर्यावरण दिवस :दिनाँक 5 जून 2015 --वाराणसी।
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