शुक्रवार, 26 दिसंबर 2014

भारतीयता के दरकते कगार

************भारत के इतिहास में सन दो हजार चौदह कुछ विशेष उपलब्धियों के लिए सदैव अविस्मरणीय रहे गा। इस वर्ष अंतरिक्ष क्षेत्र में छलाँग लगाते हुए मंगल ग्रह पर पहुँच भारत ने विश्व में अपना डंका बजाया। वंशवाद ,जातिवाद एवँ क्षेत्रवाद की तिकड़ी तोड़ते हुए एक बहुमत वाली सरकार के नेतृत्व में हमारा लोकतंत्र विकास की ओर अग्रसर हुआ। धर्मनिरपेक्षता की छद्म व्याख्या ध्वस्त हुई। भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के लिए देश की जनता ने यह देश हुआ बेगाना की धुन सुनाई।  अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उभरते भारत के सशक्त प्रतिनिधित्व के लिए प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी को देश ही नहीं पूरे विश्व में अपार लोकप्रियता मिली।श्री मोदी के पहल पर ही संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व में प्रति वर्ष योग -दिवस मनाने का निर्णय लिया।देश की झोली में शान्ति के लिए एक नोबेल पुरस्कार आया तो देश के योग्यतम पूर्व प्रधानमन्त्रियों में अग्रणी श्री बाजपेई एवँ स्वनामधन्य स्व महामना मालवीय को भारतरत्न से अलंकृत किया गया।इतना ही नहीं भारतीय संस्कृति की झोली में कोच्चि की सडकों से किस ऑफ़ लव का खुला प्रदर्शन भी आया।अधिकतर उपलब्धियों से भारत खुश हुआ.. .  परन्तु इस किस ऑफ़ लव ने विवाद ही नहीं खड़ा किया बल्कि समाज को असहज करते हुए भारतीय संस्कृति के एक कगार को ढहा दिया।
************जब कोच्चि में युवाओं ने विरोध या प्रदर्शन का यह अभिनव प्रयोग किया तो समझ में नहीं आया कि हमारी संस्कृति विकासोन्मुखी फ़ैलाव ले रही है अथवा बाहरी संस्कृतियों के दबाव से संक्रमित होती जा रही है। घटना हुई तो पुलिस उनपर कार्यवाही करती दिखी। वहाँ के उच्च न्यायलय को उसमें हस्तक्षेप करने जैसा कुछ नहीं दिखाई दिया। मीडिया ने पुलिस के मॉरल पुलिसिंग के अधिकार पर बहस करा दिया। भारतीय संस्कृति के परम्परावादियों ने इसे संस्कृति को नष्ट करने  वाला कुत्सित प्रयास माना जबकि आयोजन करने वाले एवँ उन जैसे युवा स्वतन्त्र सोच वाले लोगों ने इसे अपना अधिकार बताया।बताएं भी क्यों न। हमारी संस्कृति को इस पड़ाव तक लाने में सिनेमा ,टीवी एवँ आधुनिक सञ्चार जगत के साथ -साथ इन लोगों ने पचासों वर्षों से भगीरथ प्रयास किया है।इनके योगदान द्वारा ही हम लोग पूर्ण भारतीय परिधान से न्यूनतम परिधान ,एकान्तिक प्यार व्यवस्था से कहीं भी प्यार व्यवहार,दूत सन्देशन से फेस बुक ,एसएमएस इत्यादि सन्देशन ,वात्सल्य चुम्बन से उन्मुक्त श्रृंगारिक चुम्बन ही नहीं अपितु स्वच्छ और शालीन मनोरंजन विधाओं से आगे बढ़ अभद्र एवँ हिंसा फ़ैलाने वाले चलचित्रों व धारावाहिकों  तक पहुँचे हैं।यह उन्हीं की कर्षण शक्ति है जो युवतियों को पबों तक ले जाती है या किसी मेरठ के पार्क में अपने प्रेमी के साथ युगल जोडी बन बैठाती है। फिर सांस्कृतिक विकर्षण से प्रेरित हो श्री राम सेना वाले पब पर टूट पड़ते हैं या पुलिस वाले ऑपरेशन मजनू चला प्रेमी युगलों को पीट देते हैं। संभावना है कि भविष्य में पूर्ण नग्न प्रदर्शन सशक्त विरोध का माध्यम बने और अवरोधक शक्तियाँ व्यवस्था ,तर्क ,निर्णय और समर्थन के समक्ष घुटनें टेक दें। परन्तु इसे कोई नकार नहीं सकता की पार्श्व प्रभाव भारतीय समाज केलिए बहुत ही पीड़ादायी होगा।
************आगे बढ़ती सभ्यता के साथ सांस्कृतिक बदलाव एवँ परिष्करण अवश्यमेव होते रहते हैं। आबाल बृद्ध पूरे  समाज के लिए सहजता के कारण ये बदलाव आत्मसात भी हुए हैं जिससे हमारी अद्भुत संस्कृति अविरल विस्तार पा रही है।चूँकि भूमण्डलीकरण के इस दौर में विश्व की सभी संस्कृतियाँ एक दूसरी से प्रभावित हो रहीं हैं,हर भारतीय का यह कर्तव्य है कि वह अपनी संस्कृति की मूल आत्मा एवँ विशिष्ठता को अछुण्ण रखते हुए इसे और सुन्दर व सरस बनायें। किसी भी नए प्रयोग या कृत्य से यदि समाज असहज हो तो निश्चय ही हम अपने प्रयोग पर पुनर्विचार करें कि अपनी संस्कृति को कहीं उथला तो नहीं कर रहे हैं। जौहर प्रथा ,बाल विवाह ,बहु विवाह ,स्पृश्यता ,पशु बलि इत्यादि  ऐसी  प्रथाएँ थीं जिन्हें हमारी संस्कृति ने असहजता के कारण अतीत में बाहर का रास्ता दिखाया और अपनी समृद्धि बढ़ाई।आज को देखें तो कल तक श्रद्धा और स्नेह से अभिसिंचित रही चरण स्पर्श की आदर्श प्रथा आज चाटुकारिता एवँ स्वार्थपूर्ति की एक विधा बन कर हमें असहज कर रही है। जब कोई पुलिस अधिकारी सैफई महोत्सव में मुलायम परिवार के किसी सदस्य के चरण के पास झुक बैठता है ,कोई पुलिस कर्मी किसी डीआईजी के चरण पकड़ उसके जूते का फीता बाँध रहा होता है या कोई प्रशासनिक अधिकारी किसी मन्त्री का चरण पकड़ते दिखता है तो हम भारतीय असहज हो जाते हैं। अतःपरिष्करण के क्रम में अपनी ही संस्कृति से उपजी इस अपसंस्कृति को समाप्त करने का समय हो चुका है।
************हो सकता है कि नए प्रयोग करने वालों को शंका हो कि उनके कृत्य में गलत क्या है। हमारे धार्मिक ग्रन्थ गीता में जब करने योग्य कर्म और न करने योग्य कर्म के विषय में अर्जुन को संशय हुआ तो कृष्ण ने निर्णय के लिए शास्त्र को प्रमाण मनाने की बात कही।  यथा -
------[तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्यकार्यव्यवस्थितौ। ज्ञात्वा शास्त्रविधानोक्तम् कर्म कर्तुमिहार्हसि।]
अतः हर भारतीय संस्कृति धर्मी, प्रश्न चिन्हित कार्य में शास्त्रों को प्रमाण मानते हुए, विकास एवं नए प्रयोगों की ऊँचाइयाँ छुए जिससे सहज रहते हुए समाज अग्रगामी हो सके। समय रहते आत्ममंथन करने से ज्यादा सुसंस्कृत एवँ विकासोन्मुखी नई पीढ़ी सामने आएगी। कल का दायित्व आज पर है।दूसरों की सहजता को दृष्टिगत रखते हुए यदि प्रदर्शन करने वाले ,फिल्मबनाने वाले ,धारावाहिक गढ़ने वाले ,व्यवस्था सुनिश्चित करने वाले ,मीडिया के लोग ,साहित्यकार ,संगीतकार ,वैज्ञानिक ,कलाकार व अन्य सभी वर्गों के लोग नए -नए अनछुए विकासोन्मुखी कार्य समाजहित मे करेंगे तो दो हजार चौदह की भाँति हर नया वर्ष अभूतपूर्व उपलब्धियों से भारत को गौरवान्वित करता रहे गा। रग -रग में भारतीयता दौड़े गी तब हर भारतीय के आभामण्डल से विश्व चमत्कृत होगा ही ।  इति।
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अंततः
ब्लॉग के सभी सुधी पाठकों ,टिप्पणीकारों ,जागरण जंक्शन परिवार के साथियों और अपने शुभेक्षुओं को देहरी तक आ पहुँचे नव वर्ष के लिए मैं शुभ कामनाएँ प्रेषित करता हूँ। वर्ष दो हजार पन्द्रह के भाग्य विधाता से याचना करता हूँ कि वे आप सबको स्वास्थ्य ,समृद्धि ,सहजता एवँ सरसता से ओतप्रोत रखें और पंद्रह चौदह से बेहतर हो। सहकारिता के लिए अपने परिवार को भी कृत्यज्ञता ज्ञापित करता हूँ तथा नववर्ष में उनके साथ और जुड़ाव एवँ सहभागिता का संकल्प लेता हूँ।शुभमस्तु।    ... मंगला सिंह
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वाराणसी दिनाँक 27 . 12 . 2014                               mangal-veena.blogspot@gmail.com
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