सोमवार, 15 दिसंबर 2014

ये माफ़ी-वाफी क्या है

************इन दिनों माफ़ी की माँग करने वालों ने देश एवं संसद को सर पर उठा रखा है। विशेषकर माननीयों के ऐसे अमाननीय आचरण पर नागरिक स्तब्ध हैं।प्रतिनिधियों की ऊर्जा रचनात्मक कार्यों से इतर संकीर्ण प्रयोजनों में बर्बाद हो रही है और शालीनता तार -तार ---। धन्य हैं हमारे जनप्रतिनिधि कि लोकसभा की अध्यक्ष महोदया को उनसे पूछना पड़ा कि क्या क्षमा माँगने केलिए नियमित रूप से संसद में एक समय निर्धारित कर दिया जाय। हंगामा करनेवालों को पता है कि वे गांधी की विचारधारा को सर्वाधिक हानि पहुँचा रहे हैं फिर भी अपने  कृत्य केलिए उन्हीं की दुहाई भी। महात्मा की विचारधारा तो यह सिखाती है कि विवादस्पद वक्तव्य देने वाले से पुनर्विचार का आग्रह तो किया जा सकता है परन्तु हठ या बल प्रयोग से उसकी विचारधारा को जीता नहीं  जा सकता।
************किसी व्यक्ति का स्टेटमेंट ,वक्तव्य ,बयान या उद्गार उसके विचार या चिंतन की  धारा का सारांश होता है। जब अनचाही गलती या भूल होती है तो व्यक्ति स्वतः संज्ञान लेता है और अपराधबोध से मुक्ति के लिए माफ़ी माँग लेता है परन्तु जब किसी के वक्तव्य का विपरीत विचारधारा वाले संज्ञान लेते हैं और क्षमा याचना का दबाव बनाते हैं तब वे भूल जाते हैं कि येन केन प्रकारेण क्षमा मँगवाना किसी की विचारधारा को दबाने का बलात प्रयास है। माफ़ी मँगवाने से अहम की संतुष्टि हो सकती है परन्तु माफ़ी माँगनेवाले के ह्रदय परिवर्तन की कोई गारण्टी नहीं।प्रयोग के तौर पर जिन लोगों ने क्षमा याचना किया है ,उनका झूठ पकड़ यंत्र से जाँच करा कर देखा जा सकता है कि उनका ह्रदय परिवर्तन हुआ क्या। गौतम बुद्ध ने अंगुलिमाल से उसकी विचारधारा पर पुनर्विचार का ही मात्र आग्रह किया था परन्तु परिणाम ऐसा कि लोगों के सामने वह दुर्दांत डाकू एक सद्पुरुष के रूप में सामने आया।गांधी जी के सत्य एवँ अहिंसा का यही आग्रह पूरी दूनियाँ में पूजा जाता है।देश की दशा एवँ दिशा में धनात्मक बढ़त एवँ सद्भावना के लिए विपरीत बयानोँ का आग्रहपूर्वक पुरजोर विरोध होना चाहिए। ऐसे विरोध का स्वागत भी होना चाहिए परन्तु विरोध केलिए विरोध अभिब्यक्ति की स्वतंत्रता पर कुठाराघात  है।
************गांधीवाद भारत की एक परमपूज्य विचारधारा है जिसने भारत को स्वतंत्रता ही नहीं दिलाई ;पूरी दुनियाँ को एक नई दार्शनिक सोच दी जिसके समक्ष आधुनिक सभ्यता भी नतमस्तक है। परन्तु भारत के शत प्रतिशत लोग गाँधीवादी ही हों-ऐसा न तो गांधी के समय था ,न आज है न कल होगा। हर भारतीय की गांधी में श्रद्धा निर्विवाद रूप से होनी चाहिए परन्तु विश्वास की अनिवार्यता कदापि नहीं। सन 1944 में जिन लोगों ने सेवा ग्राम पहुँच कर जिन्ना से गाँधी के प्रस्तावित बैठक का उनके सामने विरोध किया था ,वे लोग भी महात्मा में श्रद्धा रखते हुए अन्य सोच के साथ देश के लिए चिंता कर रहे थे।महात्मा गाँधी की हत्या की याद आते ही नाथूराम के लिए मन घृणा से भर जाता है  परन्तु उसपर चर्चा या विमर्श को नकारना क्यों ?किसी न किसी विचारधारा से वह भी प्रेरित एवँ उद्द्वेलित रहा होगा। 30 जनवरी 1948 से पहले के नाथूराम के व्यक्तित्व एवँ कृतित्व के मूल्यांकन की चर्चा प्रासंगिक तो हो ही सकती है।तात्पर्य यह कि नाथूराम के नाम पर उत्तेजित हो उठना किसी उत्कृष्ठता का परिचय नहीं  देता।हमारी संस्कृति तो इतनी शालीन है कि हम रावण व कंस को भी गुनते हैं।
***********मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की अयोध्या में उनकी  जन्मस्थली पर मंदिर निर्माण भी एक ऐसा विषय है जिसकी पक्षधर विचारधारा पर किसी का वक्तव्य आते ही पहाड़ टूट पड़ता है।यह जानते हुए भी कि सिक्ख ,इस्लाम , ईसाई ,बौद्ध इत्यादि सभी धर्मों से अति प्राचीन धर्म हिंदुत्व है और उसमें भी श्री राम प्रथम पूज्य अवतार हैं ;यदि कोई कह दे कि हम सभी राम के वंशज हैं तो समझिए कि उसने कोई गंभीर अपराध कर दिया।प्रभु के जन्मस्थान पर भव्य मन्दिर बनाने की बात कर दी तो उससे भी बड़ा अपराध।  न्यायालय से जल्दी निर्णय की अपेक्षा कर दे तो न्यायिक प्रक्रिया का बाधक बने और उससे आगे कोई आग्रह हो तो वैमनष्यता का वाहक।संभवतः वोट की राजनीति के कारण विरोध उगलने वाले झुठलाना चाहते हैं कि धर्म के सन्दर्भ में विभिन्न धर्मावलम्बी लोग श्री राम को मानें या न मानें परन्तु हर धर्म के अनुयाई और सारे देशवासी उनमें तथा उनमें स्थापित आदर्शों में अपार श्रद्धा तो रखते ही हैं। यह जानते हुए कि सद्भावना भारतीय जनमानस की आत्मा है; कुछ राजनीति एवँ धर्म के ठेकेदार भृगु ऋषि की भाँति उसकी छाती पर पांव मार रहे हैं और जनाकांछा वाली समस्या के समाधान की बात करने वालों को घसीट रहे हैं। जनता इन्हें पाठ पढ़ाई है और यदि समझ में नहीं आ रहा है तो और स्पष्ट पढ़ाएगी।
************भारतीय संविधान के प्रति शपथबद्ध हर नागरिक को अभिब्यक्ति की स्वतंत्रता है। अभिब्यक्ति यदि शालीनता से विभूषित हो तो सोने में सुगंध।समाज के हित में मन ,वाणी तथा शरीर से चिंतनशील लोगों को दुराग्रह रहित होकर शालीनता से अपना वक्तब्य देते रहना चाहिए।इससे समाज अग्रगामी होता है। विरोध भी तभी गरिमामयी होगा जब वह आग्रह का अनुगामी होगा।जनता तो सब समझती है। ये देश चलानेवाले और देश  चलाने केलिए छटपटानेवाले माननीय लोग क्यों नहीं समझ पा रहे हैं। अरे भाई !ये माफ़ी -वाफी क्या  है।
++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
************चिन्तन श्रोत :साध्वी निरंजन ज्योति सांसद फतेहपुर ,स्वामी साक्षी महराज सांसद उन्नाव ,योगी आदित्य नाथ सांसद गोरखपुर एवँ माननीय श्री राम नाइक राज्यपाल उत्तर प्रदेश के हाल के वक्तव्य और संसद तथा उसके बाहर विरोधी दल के माननीय सांसदों एवँ नेताओँ द्वारा मचाया गया शोर -शराबा।
++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
अंततः
************"महाजनों येन गतः स पन्थाः" का तात्पर्य यह भी है कि जिसके चलने से पथ
************ या रास्ते का निर्माण न हो वह महाजन या बड़ा आदमी नहीं हो सकता।।।।।।
दिनाँक 14 . 12 . 2014                                 mangal-veena.blogspot.com@gmail.com
++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें