रविवार, 7 सितंबर 2014

असभ्य आचरण

**********आज दुनियाँ में मानवता को पीड़ा पहुँचाने वाले जितने भी कृत्य हो रहे हैं,वे सब के सब असभ्य आचरण की ऊपज हैं।चाहे यूक्रेन के ऊपर से उड़ रहे नागरिक विमान को प्रक्षेपास्त्र द्वारा बेधकर निर्दोष लोगों की हत्या हो ,गाजा में ऐसे लोगों का संहार हो जिन्हे यह पता न हो कि उन्हें क्यों मारा जा रहा है ,बच्चों के हाथ में बन्दूकें थमा उनसे निर्मम हत्या कराई जा रही हो ,धर्म के नाम पर अनेक देशों में हो रहे अधर्म हों अथवा रात -दिन हो रहे बलात्कार ,हत्या या अपहरण हों :-सब की सब आज की सभ्यता से उपजी असभ्यता हैं जिसमें समाज के हर वर्ग के लोगों का प्रत्यक्ष या परोक्ष योगदान है। अब दुनियाँ में घट रही इस तरह की घटनाएँ जब ग्यारह हजार वोल्ट का झटका मार रही हैं तो  मानवता बार -बार चीत्कार रही है और भीष्म पितामहों से पूछ रही है कि अब किस महाभारत की पृष्ठभूमि तैयार हो रही है। आचरण की असभ्यता से होने वाले अपराधों को केवल निन्दा,आलोचना, विरोध एवँ कठोर दण्ड से रोका जा सकता है। चूँकि ये दवाएँ आज के सभ्य समाज को कड़वी लगती हैं अतः तत्काल ऐसे लोगों को असभ्य बता उन्हें हासिए पर कर दिया जाता है।फलतः असभ्यता रूपी बीमारी बढ़ती जा रही है।
**********अतीत में सभी संस्कृतियों, धर्मों एवँ इनके आधार ग्रंथों में मानवता विरोधी कृत्यों को पाप मानते हुए उनकी सदैव निंदा की जाती थी  और कठोर वर्जना के प्रावधान थे। असभ्यता की परिस्थितियाँ पैदा ही न हों ;इसके लिए समाजसुधारक ,धर्माचार्य ,शिक्षक,आलोचक एवँ निंदक को समाज में सर्वोच्च सम्मान था और उनकी किसी भी टिप्पणी को शासन एवं समाज बहुत गंभीरता से लेता था।आहार -व्यवहार एवँ रहन -सहन के कुछ सर्वमान्य अनुशासन होते थे जो सबके लिए सुरक्षा कवच या लक्ष्मण रेखा का काम करते थे। तभी मानव सभ्यता विकास की ऊँचाइयों पर सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ती गई और आज अपने उत्कर्ष पर है।विश्व की सारी संस्कृतियों का भूमण्डलीकरण हो चुका है। जो चीजें कभी स्वर्ग के देवी -देवताओं के लिए कल्पित थीं या तपोबल से किसी विरले व्यक्ति को प्राप्त होती थीं -वे सब कुछ आज विज्ञान द्वारा आम आदमी को सुलभ  हैं। दूसरे छोर पर इस विकास के साथ समाज में विलासिता और स्वच्छंदता आई। इन्हें पाने एवँ भोगने की अभिलाषा ने हमें सभ्यता की छाया तले असभ्य बना दिया है।यही आज की विडम्बना है कि हम बाहर से सभ्य दिखने वाले अन्दर से असभ्यता पसन्द करते हैँ ,असभ्य आचरण करते हैं और विरोध के स्वर को क्षीण करते रहते हैं।
**********यह असभ्यता मानव जीवन के हर पहलू में घुस -पैठ कर चुकी है। यह वेश -भूषा में आधुनिका बन घूम रही है;नई पीढ़ी की जुबान पर आधुनिकता बन तैर रही है ;कर्म क्षेत्र में मेनका की भाँति विश्वामित्रों को पथभ्रष्ट कर रही है;मनोरंजन में अश्लील हो गई है और अध्यात्म में धनोपार्जन हो गई है।पश्चिमी सभ्यता ,सिनेमा ,टीवी ,इंटरनेट व सोशल नेटवर्किंग्स इस असभ्यता के प्रमुख उत्पादन केंद्र बन गए हैं।असभ्य मनोरंजन, असभ्य हथकंडों से पारित करा कर विपणन की ब्यूहरचना द्वारा, समाज में परोसा जा रहा है और आक्रामक रणनीति अपनाते हुए कहा जाता है कि मनोरंजन में वही दिखाया जा रहा है जो लोग देखना पसन्द करते हैं।  वस्तुतः यह दुराचरण रूपी कालिया अपने अनेकानेक फनों से समाज रूपी यमुना में एक से बढ़ कर एक जघन्य अपराध रूपी विष का वमन कर रहा है और यमुना असह्य पीड़ा को झेलते हुए किसी कृष्ण की प्रतीक्षा कर रही है। आश्चर्य यह है कि कालिया अब अपने प्रमुख फन से हमारी बहनों ,बेटियों और महिलाओं को डसने लगा है।आए दिन दिल दहलाने वाले अपहरण ,बलात्कार एवँ हत्या की घटनाएँ हो रही हैं। एक की चर्चा हो रही होती है ,तबतक दूसरे तीसरे क्रूरतर कृत्य  ताजा मुख्य समाचार बन टीवी पर्दे पर उभरने लगते हैं।
**********यह भी सर्व विदित है कि हमारे देश की लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली में ऐसे क्रूर अपराधिओं को कठोरतम दण्ड देने के प्रावधान हैं और इसके लिए हमारे पास  विश्व की मानी -जानी न्याय ब्यवस्था है फिर भी शासन का भय न होने एवँ पुलिस के निष्पक्ष एवं द्रुत अनुसन्धानी न होने से जनता सशंकित रहती है।अतः उसे हो हल्ला या पुलिस प्रशासन और सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन करना पड़ता है। इलेक्ट्रानिक व प्रिंट मीडिया के लोग भी कूद पड़ते हैं।भारत में बुद्धजीविओं ,विशेषज्ञों एवँ नेताओं की प्रचुर सम्पदा है सो ये लोग भी विभिन्न चैनलों पर विराज जाते हैं और चैनलों पर शुरू हो जाता है अंतहीन बकवासी बहस। कहाँ किसी शिकार हुई बहन- बेटी की अंतहीन पीड़ा--- कहाँ बहस करने वालों का टीवी पर अपने को दिखाने का दम्भ--- और कहाँ चैनलों का समाचार परिधि से बाहर निकल कर चर्चा कराते हुए अपना टीआरपी बढ़ाने का प्रयास। सदमें में भी सबको अपनी पड़ी रहती है। इससे बड़ी सभ्यता से उपजी असभ्यता क्या हो सकती है ?
**********हद तो तब हो जाती है जब कोई वाजिब चिंतक ऐसे समय बहनों ,बेटिओं और महिलाओं केलिए कुछ ऐसा सुझाव दे देता है कि उन्हें रात में अकेले घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए ;या कि उत्तेजक वस्त्र पहन कर घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए; अथवा उन्हें स्कूल ,कालेज और कार्यालयों में साड़ी या सलवार -कुर्ता ही पहन कर जाना चाहिए।सुझाव आया नहीं कि महिला संगठनों व अन्य कोनों से आवाज उठी कि यह महिलाओं की स्वतंत्रता पर अंकुश है ,औरतों को पुरुषों जैसी आजादी क्यों नहीं इत्यादि ,इत्यादि। अंततः बात चिंतक महोदय द्वारा क्षमा याचना तक पहुँचती है। बड़ा अजीब है कि असभ्यता का अस्तित्व तो हम मिटा नहीं पाते हैं परन्तु महिलाओं की सुरक्षा एवँ प्रतिष्ठा की वास्तविक चिंता करने वालों को बिना सार्थक चिंतन  के नकार देते हैं। नहीं भूलना चाहिए कि अनुशासन स्वतंत्रता को सुरक्षा प्रदान करता है।
**********बीते पन्द्रह अगस्त को लालकिले की प्राचीर से देशवासियों को सम्बोधित करते हुए प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा आचरण की असभ्यता पर की गई सूक्ष्म टिप्पणी हर परिवार को झकझोर देने वाली है। क्या यह सच नहीं है कि हमारी  बहन ,बेटी या बहुएँ जब घर से बहार निकलती हैं तो हम लोग ;कहाँ जा रही हो ,कैसे जा रही हो ,कौन साथ में है ,कब तक लौटो गी ,जल्दी लौट आना ,मोबाइल पर लोकेशन बताते रहना ,इत्यादि इत्यादि प्रश्न और सुझाव अवश्य देते है।वहीँ घर के लडके जब बाहर निकलते हैं तो हम उनसे ऐसा कुछ नहीं पूछते। वे देर रात तक कहाँ गायब रहते हैं - इसका भी संज्ञान नहीं लेते।स्पष्ट है कि समाज में लडकियों के लिए बन्धन ,अनुशासन और  संस्कार याद कराए जाते हैं जबकि लड़कों के लिए  ऐसा कुछ नहीं बल्कि स्वच्छन्दता ही स्वच्छन्दता। यह स्वच्छन्दता असभ्यता की भी जननी है और असभ्य लोगों में अपराधी बनने की प्रबल सम्भावना होती है। यह भी सभ्य समाज की असभ्यता का ज्वलंत उदहारण ही है कि बेटियों ,बहुओं के लिए घरों में  यहाँ तक कि विद्यालयों में शौचालय तक  उपलब्ध नहीं हैं। इस असभ्यता के चलते ही भारत सरकार हर घर में शौचालय और हर विद्यालय में लड़कियों एवं लड़कों केलिए अलग शौचालय बनाने की बृहद योजना लागू करने जा रही है। इस कदम से महिलाओं के स्वास्थ्य ,सुरक्षा व सम्मान के प्रति संवेदनशीलता दिखा हमलोग  कम से कम असभ्यता का एक कलंक मिटा सकें गे।
**********इसमें कोई संशय नहीं कि असभ्यता सावन -भादों की रात जैसी सर्वत्र पसर गई है। वहीँ पश्चिम से संक्रमित हमारी पूरब की संस्कृति और सभ्यता जीर्ण -शीर्ण हो रही हैंऔर संस्कारशालाओं अर्थात परिवारों व विद्यालयों से संस्कार विहीन पीढ़ियाँ तैयार हो रही हैं। फिर भी अपने ही ढंग में मस्त और ब्यस्त युवक -युवतियाँ अपने आहार -ब्यवहार व शैली को ही उन्नत सभ्यता समझते हैं।पाइथागोरस का तर्क है कि पतन के बाद उत्थान अपरिहार्य है और यह सुखद है कि  हमारी  संस्कृति ,सभ्यता और संस्कार की बेहतर पुनर्स्थापना के संकेत समाज में मिलने लगे हैं।समय चाहता है कि हम हेलो ,हाय ,हॉट एन सेक्सी को जहाँ हैं जैसे हैं ,वहीँ छोड़ कर सौम्य अभिवादन एवँ सम्बोधन से अपनी दिनचर्या आगे बढ़ाएँ , भारत की सोचें ,भारतीयता में जिएं ,भारतीयता को आगे बढ़ाएं और एक महान परंपरा वाले राष्ट्र का नागरिक होने पर  गर्व करना प्रारंभ करें। असभ्यता स्वतः घुटने टेक देगी।
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अंततः
**********विद्यया ,वपुषा ,वाचा ,वस्त्रेण विभवेन च।
**********वकारैः पञ्चभिर्युक्तः नरः प्राप्नोति गौरवम्।
पाँच वकारों अर्थात विद्या ,भब्य शरीर ,वाणी ,वस्त्र और वैभव से युक्त पुरुष गौरव को प्राप्त होता है। अतः इन पाँच वकारों को प्राप्त करने के लिए सतत प्रयत्न करना चाहिए।
दिनाँक: 7 सितम्बर 2014 .                            Mangal-veena.blogspot.com@gmail.com                        
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