गुरुवार, 17 अप्रैल 2014

गुजराती गौरव -एक चुनावी चर्चा

तीन -चार दिन पहले कच्छ गुजरात निवासी मेरे एक चिर परचित मित्र  का देर रात फोन आया । चूँकि रात में आने वाले फोन थोड़ा चौंकते हैं ,अतः झट उठकर मोबाइल सँभाला और हेलो बोल पड़ा ।
उधर से आवाज आई -साब जी नमस्ते । मैं नरायन भाई कच्छ से बोल रहा हूँ ।  देर रात में फोन करने से आप बिचलित तो नहीं हुए ।
बिल्कुल नहीं भाई ,नमस्ते । तुम कैसे हो ?घर -परिवार एवँ कच्छ का कुशल -छेम बताओ ।
सब भलो ।आप लोग कैसे हैं ?बनारस में नरेंद्र भाई मोदी का चुनाव अभियान कैसा चल रहा है ?
बहुत बढ़िया । फिरहाल मोदी जी की स्थिति सर्वोत्तम चल रही है । वे बनारस से चुनाव जीत सकते हैं । ऐसी प्रबल सम्भावना है । परन्तु तुम तो काँग्रेसी नेता एवँ ओहदेदार हो। फिर तुम्हें मोदी जी से सहानुभूति क्यों ?
दूसरी ओर से आवाज आती है "सा --ब जी !हमारे लिए भारतीय होना सर्वाधिक गौरव एवँ गुजराती होना प्रथम गौरव की बात है। मेरा काँग्रेसी होना तो बाद की बात है । आज नरेंद्र भाई हम गुजरातिओं के लिए गुजरात का गौरव हैं। हम सबकी शुभेक्षा है कि नरेन्द्र भाई देश के प्रधान मंत्री बनें ।
परन्तु तुम सरीखे काँग्रेसी मोदी जी को प्रधान मंत्री बनाने में क्या योगदान कर सकते हैं ?
अरे सा -ब जी !समझने का प्रयास करिए । राज की नीति को राजनीति कहते हैं । हम लोग भी अपने ढंग से काम कर रहे हैं ।अभी -अभी होटल वापस लौटे हैं । मस्तिष्क में कौंध हुई "होटल "
तुरन्त सवाल दागा -भाई तुम इस समय कहाँ से बात कर रहे हो ?
मैं इस समय दिल्ली हूँ और अभी एकाध सप्ताह यहीं रहूँ गा । हो सकता है कि बनारस आने का भी कार्यक्रम बनाऊँ । रात बहुत हो चुकी है । फिर किसी दिन चर्चा करें गे । जय भारत ।
नमस्ते भाई । ऐसा लगा कि लाइन कट चुकी है । मेरी नींद गायब थी । एक क्षण राज ---नीति का ध्यान आता तो दूसरे क्षण "जिसको न निज गौरव तथा निज देश पर अभिमान हो "का ध्यान आता । मुझे लगा कि कच्छ के लिए काशी का हाथ बढ़ाने का समय आ गया है ।
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अंततः -एक लघु कहानी
-----------------------------------------------रजाई वाला रमैया  -----------------------------------
**********रमैया अपने परिवार के साथ समाज के अन्य जंगल पर आश्रित परिवारों की भाँति जीवन यापन कर रहा था । कभी जाड़े में लकड़ी की बेच से उसे थोड़ी अच्छी कमाई हो गई ।  उसने मन ही मन सोचा कि बड़े लोग जाड़े में रजाई ओढ़ते हैं । उन्हें बड़ा मजा आता होगा । हमारी भी कोई जिन्दगी है ?पूरी सर्दी पुआल एवं कथरी में लिपटे बीत जाती है । उसने अपने को धिक्कारा कि पिछले साल भी उसने अपने बच्चों द्वारा इकठ्ठा किये गए सेमर की रुई को नून- तेल के चक्कर में महाजन को भेंट कर दिया था। न जाने कहाँ से हौसला बढ़ा ,झटपट बाजार की ओर बढ़ गया और एक नई रजाई खरीद कर ख़ुशी -ख़ुशी घर आया ।
**********पूरे परिवार में खुशियों की बाढ़ आ गई । पत्नी ने त्योहारी खाना बनाने का उपक्रम किया । तभी रमैया के साले साहब बहन का हाल समाचार लेने आ धमके । फिर क्या था । भोजन के बाद नई रजाई का  पहला आनन्द साले साहब उठाये । जब तक साले जी बहनोई के घर से विदा हुए ,पूरे समाज एवं रिश्तेदारों में यह बात जंगल की आग की तरह फ़ैल गई कि रमैया ने नई रजाई खरीदी है  ।जहाँ समाज में किसी के पास एक साबुत ओढ़ना नहीं वहाँ रमैया के पास नई रजाई ।आश्चर्य । फिर शुरू हुआ रमैया के यहाँ एक रिश्तेदार का आना तो दूसरे का जाना । वीटो वाले रिश्तेदार तो पांच- छः दिन से पहले हिलने का नाम न लिए । इस प्रकार जाड़ा बीतने को आया परन्तु रमैया और उसको बच्चों  को अपनी नयी रजाई ओढने का सौभाग्य न मिला । उलटे रिश्तेदारों के आव- भगत में पूरा घर बेहाल हो गया और गाँव के महाजन का क़र्ज़ भी उसपर बढ़ता चला गया ।
**********जिस रजाई को रमैया  बड़ी नियामत समझ कर घर लाया था उस  रजाई ने उसका सुकून छीन लिया । अब वह रात दिन उस रजाई से छुटकारा पाने की तरकीब  सोचने लगा  । एक अल -सुबह जब फूफा महोदय रजाई छोड़ कर बहार सैर पर निकले ,रमैया ने झट कौड़ा जलाया और रजाई को अग्नि के हवाले कर दिया।सारी बात समझते ही फूफा भी खिसक लिए ।रमैया के जाड़े एवं कष्ट का एक साथ अंत हो गया ।
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दिनाँक 17.04.2014                                    Mangal-Veena.blogspot.com@Gmail.com
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1 टिप्पणी:

  1. लघु कहानी अत्यंत सारगर्भित है। उपरोक्त संस्मरण के कथ्य का दिशा सूचक प्रतीत होता जान पड़ता है.

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