बुधवार, 29 जनवरी 2014

भारतीय गणतंत्र की पैंसठवीं वर्षगाँठ

---------------बीते छब्बीस जनवरी को पूरे देश में यहाँ -वहाँ भारतीय गणतंत्र की पैंसठवीं वर्षगाँठ मनाई गई । जो लोग भारतीय तंत्र से सीधे या परोक्ष जुड़ें हैं वे इसे मनाने का चाक -चौबंद एवँ सफल उपक्रम किये । जो लोग इस तंत्र से सीधे या परोक्ष लाभार्थी हैं वे उत्सव का आनंद उठाए और अपना छबिप्रदर्शन भी किए । वर्षों से देखा गया है कि राष्ट्रीय पर्वों पर कर्मचारी बहुत आनंदित होते हैं जिन्हें पर्व के नाम पर एक दिन की छुट्टी मिल जाती है या वे लोग प्रसन्न होते हैं जिन्हें मिठाई खाने ,खेलने -कूदने या मौज-मस्ती का अवसर मिल जाता है । वे भी बहुत खुश होते हैं जिन्हें काफी प्रतीक्षा के बाद उस दिन केलिये व्यवस्था दायित्व निर्वहन के बदले छतिपूर्ति का भरपूर लाभ मिल जाता है । परन्तु गणतन्त्र चलाने वाले नेता और नौकरशाह रूपी तांत्रिकों के ख़ुशी एवं उमँग का क्या कहना जो ऐसे अवसरों पर सञ्चार माध्यमों से जनता को यह अनुभव कराते हैँ कि वे ही इस देश की सवा सौ करोड़ जनता के विधाता हैं । इन विशेष वर्गों से इतर शेष जन मानस से हमारे राष्ट्रीय पर्व भावनात्मक एवं ब्यवहारिक तौर पर जुड़ ( कनेक्ट ) नहीं पाये हैं । ढेर सारे कारणों में साफ़ दीखता कारण यह है कि गणतन्त्र चलाने वालों में जनता के प्रति कोई ईमानदार प्रतिबद्धता नहीं है और जनता में गणतंत्र चलाने वालोंके प्रति उनके नित नए कारनामों से उपजा घोर विकर्षण है।
---------------गणतांत्रिक देश बनने के बाद चौसठ वर्षों में अर्जित हमारी उपलब्धियों ने पूरी दुनियाँ का ध्यान खींचा है । परंतु चीन से विकास में अभी पीछे होने और विश्व शक्ति न बन पाने केलिए गणतंत्र चलाने वालों पर सदैव उँगली उठती रही है । गणतंत्र के उम्र का एक भारतीय नागरिक जब देश में ऊबड़ -खाबड़ ,गड्ढायुक्त ,धूल -गुबार भरी घटिया सडकों का संजाल देखता है , सड़क चौराहों पर पुलिस को अवैध वसूली करते पाता है ,कार्यालयों में किसी भी काम केलिए कर्मचारियों को सुविधा शुल्क माँगते पाता है या सरकारी अस्पतालों में स्वयँ अस्पताल को बीमार पड़ा देखता है तो वह निराश होकर गणतंत्र से डिस्कनेक्ट हो जाता है ।इसी वय का गंगा किनारे वसने वाला कोई दूसरा ब्यक्ति; जो लड़कपन में नित्य गंगा की धवल धारामेंतैराकी,स्नान,मज्जन एवं पान  का आनंद उठाया करता था ;आज जब उसी धाराविहीन और दुर्गंधयुक्त गंगा को मल- जल के साथ बहते देखता है तो उसे घोर निराशा होती है । ऋषियों -मुनियों की ब्यथा का तो कहना क्या । ऐसे ही एक कृषक अपनी उपेक्षा एवँ एक ब्यवसायी उसपर थोपी जानेवाली असुविधाओं के कारण डिस्कनेक्ट हो जाता है । डिसकनेक्सन  की ये सारी लड़ियां मिलकर जन को जनतंत्र से अलग कर दी हैं । फिर जन में जनतंत्र के लिए उत्साह कहाँ से आए ?
---------------इस निराशा के बीच पिछले एक -दो वर्षों से इन राष्ट्रीय पर्वों पर भागीदारी में कुछ अद्भुत बदलाव दिखने लगा है  जो मरुस्थल में किसी मरूद्यान सा प्यारा लगता है ।गली ,मुहल्ले में घूम -घूम कर सब्जी बेचने वाले अपनी रेहड़ी पर ,गाड़ी चालक अपने वाहन पर ,कुछ घरेलू लोग अपने घरों पर ,चाय -पानी वाले अपनी दुकानों पर ,यहाँ तक कि घुमन्तू लोग अपनी साइकिल पर छोटे -छोटे तिरंगे लहराते इन पर्वों पर प्रसन्न मन से कार्यशील दीखते हैं।सोने में सुहागा कि कुछ वर्ष पहले से हमारा तिरंगा भी सरकारी दायरे से आगे बढ़ कर जन -जन के हाथ पहुँचने का राह पा चुका है। यह परिदृश्य स्पष्ट संकेत देता है कि परिवर्तन की वयार चल पड़ी है और गणतंत्र का नया युग प्रारंभ हो रहा   है । नई पीढ़ी के युवा ही इस बदलाव के सूत्रधार एवं नायक हैं । इन युवकों में पुरानी पीढ़ी की अपेक्षा अधिकार और कर्तब्य की बेहतर समझ है । ये युवक भारत एवं इसके गणतंत्र को नई उँचाई देना शुरू कर दिए हैं । इन्हीं की उर्जाभरी सहभागिता से गणतंत्र चलाने वालों की सोच बदल रही है और जनता गणतंत्र से कनेक्ट हो रही है । जनता की आपसी विमर्श में तुरंत संपर्क माध्यम भी बड़ी भूमिका निभा रहे हैं । इन माध्यमों की सक्रियता ने भारत क्या पूरे विश्व में परंपरागत शासन प्रणाली को झकझोर दिया है ।आज का बदलाव कल के सुनहरे  भारत का शुभ संकेत है ।
---------------कितना अच्छा होता कि देश की निःस्वार्थ सेवा करने वाले अन्ना हजारे जी इस पर्व पर राजपथ पर विशिष्ट अतिथि के रूप दिखे होते या काले धन के विरुद्ध संघर्ष करने वाले बाबा रामदेव को इस अवसर पर पदमभूषण जैसा पुरस्कार दिया गया होता अथवा गणतंत्र को गंगा -यमुना बचाओ या जंगल और पर्यावरण बचाओ अभियान पर केंद्रित (फोकस )किया गया होता । निःसंदेह भारत एक दिन अनुकरणीय राष्ट्र बने गा जब हमारे सांस्कृतिक एवं धार्मिक पर्व राष्ट्रीय पर्व बन जाएँ गे और राष्ट्रीय पर्व सांस्कृतिक एवं धार्मिक बन जॉय गे । रिट्रीट का समय निकट है अतः बस । जय भारत ,जय गणतंत्र ।
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अंततः
अजीब लगता है जब "जो शहीद हुए हैं ,उनकी जरा याद करो कुर्बानी "जैसे कालजयी गाने की याद आते ही लता जी की ओर ध्यान चला जाता है परन्तु जिसकी अन्तःपीड़ा इस कविता के रूप में अवतरित हुई उस महान कवि प्रदीप को लोगों में याद कराना पड़ता है । उन्हें भारतरत्न देने वाले किस श्रेणी में रखते हैं ?
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दिनाँक 29 जनवरी 2014                                              mangal-veena.blogspot.com
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