शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

अरे ! मुजफ्फरनगर में यह क्या हो रहा है ?

                                 मुजफ्फरनगर के दंगों ने अंतर्मन को झकझोर दिया है और एक बार पुनः सोचने को मजबूर किया है कि सोसल मीडिया ,मोबाइल और इंटरनेट जैसे युगांतकारी सम्पर्क माध्यमों के आगमन के बाद भी क्या हमारी सोच में कोई ब्यापक परिवर्तन हुआ है । युवाओं से बड़ी उम्मीद है कि वे इन संसाधनों द्वारा समाज की कुरीतिओं को समूल नष्ट कर एक तर्कसंगत ,वैज्ञानिक ,विकसित एवं समभाव समाज बनाने में सफल होंगे परन्तु ऐसा कोई मधुर परिणाम अभी तक सामने नहीं आया है। जब सम्पर्क और संचार के त्वरित साधन नहीं थे तो  दंगे हो जाया करते थे और अब जबकि त्वरित साधन हैं तो भी दंगे हो रहे हैं । स्पष्ट है कि संचार क्रान्ति का समाज को सकारात्मक लाभ मिलना शेष है । उल्टे इस सन्दर्भ में उंगलियाँ सोसल मिडिया के नकारात्मक भूमिका की ओर उठ रही हैं । अतः आज की सभ्यता माँग करती है कि सोसल मीडिया  जैसे ,फेसबुक,आरकुट और ट्वीटर के उपयोगकर्ता एवं अन्य संचार माध्यम समाज के प्रति अपनी -अपनी जिम्मेदारियों की समीक्षा करें ।
                               दंगा के आयाम बढाने वाले छोटे -बड़े कई कारक हो सकते हैं परन्तु दंगा होने के स्पष्ट कारण तो सतर्कता ,कानून एवं ब्यवस्था की असफलता ही हैं । यह उत्तर प्रदेश सरकार को बिना किसी हीला -हवाली के विनम्र भाव से स्वीकार कर लेना चाहिए । रही बात कानून ब्यवस्था की तो अंग्रेजों के समय से अब तक हमारे देश में हजारों कानून बने हैं और क़ानूनी कारखानों में हर समय नये -नये कानून बन रहे हैं जो न आम आदमी के संज्ञान में हैं न संज्ञान में लाने की सरकार के पास् कोई इच्छा है ।इसके बिपरीत हजारों वर्षों के संस्कार से हमें जो तार्किक या अतार्किक समाजी नियम /कानून मिले हैं वे अटूट आस्था के साथ जैसे के तैसे चल रहे हैं और दृढ़ता से उनका पालन भी हो रहा है ।इन्ही विरोधाभाष ने उथल -पुथल मचा रखा है और समाज उसका कुपरिणाम भुगत रहा है । दंगे तो हो गए । क्या कोई बता सकता है कि जो लोग दंगे में मारे गए उन्होंने किस कानून का उलंघन किया था और जिन्होंने मारा वे किस कानून का पालन कर रहे थे ।जिन लोगों ने दंगा भड़काया वे समाज की कौन सी भलाई किये और जो इन दंगों को रोंक न सकी वह सरकार किस  लिए है ।
                           संपत्ति एवं सम्मान की रक्षा के लिए झगड़े एवं लडाइयां होती रही हैं ,हो रही हैं और होती रहेंगी । यह किसी भी प्रभावित ब्यक्ति के लिए न्यायोचित माना गया है और ऐसी लडाइयां लोगों के समझ में भी आती हैं । परन्तु बिभिन्न धर्म या मजहब के लोग आपस में धर्म -द्वेष के कारण लड़ें- यह अधार्मिक एवं अमानवीय है। साथ ही धर्म के नासमझी की पराकाष्ठा है ।सभी धर्मग्रन्थ कहते हैं कि धर्म मनुष्य की जीवन -शैली है ; धर्म जीवन है; धर्म मनुष्यता है और धर्म सद्भाव है ।फिर किसी एक धर्म या संप्रदाय के लोग दूसरे धर्म या सम्प्रदाय वाले भाई से ईर्ष्या भी क्यों करें ?जिस धर्म से जीवन अनुप्राणित हो ,उसी धर्म की मंशा के बिपरीत  कोई ब्यक्ति आचरण कैसे कर सकता है ?
                          हमारे देश में ऐसी घटनाएँ, दुर्भाग्यवश, यत्र -तत्र सर उठाने लगी हैं । समाज में असहिष्णुता बढ़ रही है । अतः सोसल नेटवर्किंग से जुड़े करोड़ों युवक एवं युवतियों से यह अनुरोध करना अति प्रासंगिक है कि वे  केवल किसी घटना के लिए सपाट दर्पण न बनें । वे एक स्वर से भाई चारे एवँ मुहब्बत का सन्देश भी  दें । उन्हें आज के भारत को बेहतर और कल के भारत को  वैभवशाली बनाना है । निश्चय ही युवाओं ने इस राह पर कई मील के पत्थर गाड़ा है परन्तु उन्हें अभी लम्बी यात्रा तय करनी है ।
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दिनाँक 12 सितम्बर 2013
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अंततः
सद्भावना विहीन व्यक्ति समाज को तोड़ता है और सद्भावी जोड़ता है ।इसी सद्भाव को फेविकोल कहते हैं ।
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