सोमवार, 30 दिसंबर 2013

नववर्ष मंगलमय रहे


आकलन की बात हो तो कुछ सुखद दीखता नहीं ।
फिर भी प्रभु से प्रार्थना , नववर्ष मंगलमय रहे । (1)
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जानता हूँ ‘विश' का , कोई मायने होता नहीं ।
पर शुभेच्छा चाहती , नववर्ष मंगलमय रहे । (2)
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तरणि तरना चाहती , झंझावतों पर वश नहीं ।
नाविक नदी से चाहता , कि पार सब होते रहें । (3)
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रश्मिओं को क्या पता , बादल घनेरे छा रहे ।
लहरें तो दिल से चाहतीं, अठखेलियाँ होती रहें ।  (4)
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उम्र ढलती जा रही , इस पर हमारा वश नहीं । 
पर सदा यह कामना,हम चिर युवा दिखते रहें । (5)
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समय सब कुछ देखता,है बढ़ रहा निज राह पर।
आज इतना खुश रहें, कि कल हमारी बात हो।  (6)
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पुष्प की क्या उम्र हो ,माली इतर है सोचता।
पवन जब पाए सुरभि , सारी धरा मस्ती में हो। (7)
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कर्म करते हैं सभी , "कर्तव्य क्या"  सोचा नहीं ।
रात दिन उलझे रहे ,"जो चाह थी" पाया नहीं (8)
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बहुत हल्ला कर लिया,वर्तन हुआ कुछ भी नहीं ।
भ्रष्ट  रिश्वतख़ोर  हँसते , और हम घुटते रहे ।  (9)
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उठो मिलकर थाम लें, उल्टी हवा के वेग को ।
स्वर्ग हो अपनी धरा,हर जन यहाँ खुशहाल हो।  (10)
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यदि कैलेंडर जादुई,मिल जाय इस नव वर्ष में ?
टाँग दूँ घर घर पहुँच , सारा जहाँ खुशहाल हो।  (11)
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करणीय या करने योग्य कर्म को कर्तब्य या धर्म कहते हैं।
----------------------------------------------------------------- मंगलवीणा
वाराणसी  Mangal-veena.Blogspot.com
दिनाँक 30.12.2013
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बुधवार, 20 नवंबर 2013

भारतरत्नगर्भा वसुन्धरा

 ************  इस धरती पर कभी खनिज विशेष के रूप में तो कभी व्यक्ति विशेष के रूप में रत्न अवतरित होते रहते हैं । खनिज या पत्थर वाले रत्न परीक्षण के तो शतप्रतिशत परिभाषित मानक  हैं परन्तु ब्यक्ति के परीक्षण हेतु ,कम से कम भारत में ,कोई स्पष्ट मानक नहीं हैं । फिर भी जो मानक उपलब्ध हैं ;उनके परिपेक्ष्य में जब कोई व्यक्ति कुछ एक भारत रत्नों के लिटमस जाँच का प्रयास करता है ,उसकी शंका घटने के वजाय बढ़ती जाती है । हाल में सचिन तेंदुलकर एवं प्रो सीएनआर राव को भारतरत्न दिए जाने के बाद पूरे देश में इसके मानकों पर एक बार फिर ऐसी ही चर्चा होने लगी है और भारतरत्न के मानक ही लड़खड़ाते दिख रहे हैं । हम भारतीयों की विशेषता है कि हम किसी भी निर्णय के लिये बहुत ही लचीला एवं धुँधला मानक बनाते हैं ताकि निर्णय को गलत या सही ठहराने में इन  दो शब्दों का लाभ उठाया जा सके ।थक हार क़र एक मानक को सर्वोपरि मानना पड़ता है कि सरकार जिसे भारतरत्न की उपाधि देदे वह भारतरत्न पाने की योग्यता रखता है । अन्यथा नहीं ।
************अभी हाल में जिन दो महानुभावों को भारतरत्न दिया गया ;निःसंदेह उनमें से एक विज्ञानं जगत का सितारा है तो दूसरा क्रिकेट का । इन्हें यह सम्मान मिलने से इनके प्रसंशकों में ख़ुशी की लहर है और बधाइयों का ताँता । यह और भी अच्छी बात रही कि बीते सप्ताह ये दोनों भारतरत्न विशेषकर तेंदुलकर महँगाई ,भ्रष्टाचार एवं जनता के तमाम घावों पर भारी पड़े ।यदि ऐसा ही कुछ हमारी सरकारें सप्ताह दर सप्ताह करती रहें तो भूखी जनता ख़ुशी मनाते मरेगी और उनके कराह की आहट भी नहीं लगेगी ।मीडिया को भी ब्यस्त होने का मसाला मिल जायगा । इस घोषणा हेतु चुने गए समय केलिए भी भारतरत्न चयन समिति के सदस्य और भारत सरकार सभी बधाई के योग्य हैं । सोने में सुहागा यह कि सप्ताह जाते -जाते इस अलंकरण ने एक नया एवं बड़ा बहस का विषय खड़ा कर दिया कि सचिन को भारतरत्न तो अटल विहारी बाजपेयी को क्यों नहीं । यह विषय भी दर्द निवारक की तरह थोड़े दिन जनता को राहत देते दिख सकता है ।
************रही बात भारत के पूर्व प्रधान मंत्री बाजपेयी की । उन्हें भारतरत्न न देने में मानक अड़चन हैं ही नहीं ।मूल में अड़चन तो राजनीति है वरन मानकों की निष्पक्ष कसौटी पर वे सबसे पहले और सबसे ऊपर खरे उतरते हैं । उन्हें यह सम्मान देने से सम्मान भी सम्मानित होता । यदि श्रेष्ठता की चर्चा हो तो यह सच्चाई है कि समान कार्यक्षेत्र में योगदान देने वालों में ही तुलना हो सकती है। अतः सचिन की तुलना किसी खिलाड़ी से , प्रो राव की किसी वैज्ञानिक से एवं अटल विहारी बाजपेयी की किसी राजनेता या राष्ट्रनायक से ही सटीक हो सकती है ।चूँकि प्रो राव पर कोई विवाद नहीं है , अतः मानकों के विश्लेषण हेतु  हम सचिन को भरपूर सम्मान देते हुए , उपलब्धियों के रूप में उनके योगदान को स्मरण कर सकते हैं ।
 ************ उनका कार्यक्षेत्र क्रिकेट का खेल रहा है जो दुनियाँ के मात्र आठ -दस देशों में खेला जाता है ।  यह खेल न तो विश्व स्तर का है न ही ओलम्पिक में सम्मिलित है ।भारत में इस खेल का दायित्व एक गैर सरकारी संस्था ,जिसका नाम भारतीय क्रिकेट कन्ट्रोल बोर्ड है ,निभाती है । यही संस्था खिलाड़ियों का चयन कर उन्हें अनुबन्धित करती है और इन्हीं आठ -दस देशों में मैच आयोजित कर करा करा कर अपने और खिलाड़ियों के लिए पैसे कमाती है । चूँकि भारत में यह खेल बहुत ज्यादा लोकप्रिय एवं धन संपन्न है इस लिए क्रिकेट खेल एवं इसके खिलाड़ियों  की आभा भी  चकाचौंध करने वाली बन चुकी है । आंकड़ों की ढेर सारी रोमांचक विविधताओं से भरी इसी क्रिकेट में सचिन ने सैकड़ों का सैकड़ा बनाया ,सर्वाधिक रन बनाया ,सर्वाधिक मैच खेला ,सर्वाधिक समय तक क्रिकेट खेला ,सभी प्रारूप में भारत को विजय दिलाया ,इत्यादि इत्यादि ।बदले  में तेंदुलकर ने बोर्ड एवं विज्ञापन से अरबों रूपया कमाया और शोहरत के शिखर पर पहुँच गए ।क्रिकेट में वर्षों तक खेलते हुए सचिन ने आंकड़ों के अनेक कीर्तिमान बनाने के अलावा खेल को ऐसा कोई योगदान नहीं दिया जिससे वह पूरे विश्व में खेला जाने लगा हो या खेल भावना की कोई सांस्कृतिक लहर चल पड़ी हो । पैसा एवं सोहरत से इतर उनकी दृष्टि ,सोच ,कृतित्व एवं प्रतिबद्धता में कोई करिश्मा भी अबतक नहीं दिखा है जो समाज के लिए एक चालन -शक्ति (driving -force )का काम करे । अब कोई अन्य खिलाडी किसी अन्य खेल या क्रिकेट में ऐसी ही परिस्थितियों में इस तरह के आँकड़े बनाए तो क्या सचिन के लिए बनाये गए मानक उसे भारत रत्न दिलाएं गे ?शायद नहीं । खेल को योगदान के मापदण्ड पर मेजर ध्यानचन्द ,कपिल देव या पी टी उषा उनसे किसी भी प्रकार पीछे नहीं रहे । फिर यही यक्ष प्रश्न कि इन सितारों को भी भारतरत्न क्यों नहीं ।
************निर्विवाद सचिन ने करोड़ों भारतीयों का वर्षों तक बेजोड़ मनोरंजन किया । इसके लिए उन्हें साधुवाद । भारतीय समाज एवं राजनीतिज्ञों को उन्होंने ऐसा बल्ला और गेंद भी पकड़ा दिया कि वे भविष्य   में वाद-विवाद रूपी  विषम बैट -बाल का खेल खेलते रहेंगे ।इस योगदान के लिए भी उन्हें याद किया जायगा ।        भारतरत्न चयन समिति को चाहिए कि अपनी भूल ठीक करते हुए ,आज की स्थिति में पहुँच चुके मानकों के सन्दर्भ में ,श्री अटल विहारी बाजपेयी ,स्व ध्यान चन्द व अन्य ऐसे विशिष्ट ब्यक्तियों को फटाफट भारत रत्न देदे ताकि वर्तमान विवाद को विराम लगे । भारतीयों को आवश्यक और अनावश्यक बोझ ढोने की आदत है । वे सभी भारतरत्नों को याद करेंगे और अपना सामान्य ज्ञान बढ़ाएंगे । जब मानकों की बात उठेगी ,भारत के भाग्य विधाता लोग इतिहास -भूगोल बदलने की बात उठा देंगे । परन्तु किसी को नहीं भूलना चाहिए कि मानकों का क्षरण समाज के लिए घातक है । यदि माप -तौल के मानकों को क्षरण से बचाने के लिए वैज्ञानिक एक से बढ़ कर एक त्रुटिहीन ब्यवस्था कर रहे हैं तो हम भारतीय अपने सर्वोच्च सम्मान के क्षरण पर गंभीर क्यों नहीं ?सम्मान वही जो मानकों पर खरा उतरे और सर्व स्वीकृति पाये ।
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अंततः
           जिस पुरुष या नारी को सम्मान देने से सम्मान स्वयं सम्मानित हो
          ,वही पुरुष या नारी उस सम्मान के लिए सुपात्र है ।
दिनाँक 21 नवम्बर 2013   वाराणसी                                Mangal-Veena.Blogspot.com
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मंगलवार, 22 अक्तूबर 2013

पारदर्शिता में पिछड़ती भाजपा

                               जैसे -जैसे काँग्रेस से जनता की उम्मीदें चकनाचूर हो रही हैं वैसे -वैसे जनता भाजपा के हर कदम पर सावधान निगाहें रख रही है। दूध का जला छाछ भी फूँक कर पीता है। भारतीय  जनता पार्टी पर उम्मीदें भी टिकी हैं और शंकाएँ भी क्योंकि अलग चाल ,चरित्र और चेहरा वाली पार्टी इन्ही सन्दर्भों में कहीं -कहीं बिलकुल काँग्रेस सी दिखती है। अभी हाल में जब दागी सांसदों एवं विधायकों से संवंधित उच्चतम न्यायलय के फैसले को पलटने का प्रकरण चल रहा था ,भाजपा द्वारा भी इस मुद्दे पर परोसी जा रही थाली जनता को पसन्द नहीं आ रही थी। जब राजनीतिक पार्टियों के आमदनी श्रोत उजागर करने की बात आई तो वह काँग्रेस जैसी दिखी और अपने को जनता से छिपाती नजर आई। वैसे ही जब मंत्रियों एवं जनप्रतिनिधियों के संपत्ति विवरण की बात आती है तो भाजपा की आक्रामकता भोथरी नजर आती है। जब नेताओं की महत्वाकान्छा की बात होती है तो अनुशासन की बात करने वाली पार्टी के लोग मर्यादा को धता बताते नजर आते हैं और राष्ट्रवाद की बात करने वाले नेता अपनी महत्वाकान्छा के लिए लड़ पड़ते हैं। पारदर्शिता पर बल न देने के कारण ही जनता के मन में  भाजपा के विरोध और विचारधारा पर शंका के बादल उठते रहते हैं।
                               काँग्रेस पार्टी कहती है कि उसने जनता को सूचना का अधिकार दिया जिससे शासन और ब्यवस्था में पारदर्शिता आई परन्तु सबको पता है कि शासन करने वाली राजनीतिक पार्टियाँ एवं केंद्र और राज्य की सरकारें सूचना के अधिकार के प्रति कितनी ईमानदार और संवेदनशील हैं।यह भी पता है कि अन्ना हजारे जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं को सूचना अधिकार केलिए क्यों और कितना संघर्ष करना पड़ा था। शर्म की बात है कि इस लोकतान्त्रिक देश में बहुत कुछ जनता से छिपाया जाता है या कि नहीं बताया जाता है जिसे जानने के लिए उसे सूचना के अधिकार रूपी हथियार से लड़ना पड़ता है। जहाँ इस हथियार को और प्रभावी बनाने की आवश्यकता थी वहीँ इसे दिनोंदिन निष्प्रभावी बनाने के लिए अनेकानेक अपवाद बनाये जा रहे हैं और इसके दायरे सीमित किए जा रहे हैं। बहुत अजीब लगा जब काँग्रेस एवं अन्य पार्टियों के साथ भाजपा भी खड़ी हो गई कि राजनीतिक पार्टियों के श्रोत एवं ब्यय विवरण नहीं दिए जा सकते क्योंकि पार्टियाँ कोई सरकारी या लोक इकाई नहीं हैं। यही है अंधी पारदर्शिता कि भाजपा भी जनता से चन्दा लेगी लेकिन जनता को इसका हिसाब नहीं देगी। फिर जनता सोच में है कि राष्ट्रवादी भाजपा पर अन्य मुद्दों के सन्दर्भ में किस दिशा में और कितना भरोसा किया जा सकता है।यह जानना सबकी बेहतरी में है कि बीसीसीआई के तर्ज पर विभिन्न दलों द्वारा दिखाया जा रहा बल्ले और गेंद का मनोरंजन महँगाई और भ्रष्टाचार की मारी जनता को शूल की तरह साल रहा है।
                             अभी उन्नीस अक्टूबर को भाजपा के प्रधान मंत्री पद के दावेदार नरेन्द्र मोदी की कानपुर में एक भीड़ भरी जन सभा हुई जिसमें मोदीजी बहुत ही मार्मिक एवं तार्किक ढंग से अपनी बात जनसमूह के समक्ष प्रस्तुत किए। यहाँ तक कि वे सेक्युलरिस्म की एक अच्छी परिभाषा भी दे डाले कि हिन्दू अच्छा हिंदू बने ,मुसलमान अच्छा मुसलमान बने ,सिक्ख अच्छा सिक्ख बने और इसाई अच्छा इसाई बने -फिर हमसब मिलकर बेहतर राष्ट्र बनायें गे। यहाँ वे यह भी उल्लेख कर सकते थे कि भाजपा अच्छी सरकार बनाये गी और फिर सब मिल कर देश को बेहतर बनायें गे। फिर अच्छी सरकार के विजन पत्र की बात होती कि उनकी सरकार कराहती जनता को महँगाई और भ्रष्टाचार से बाहर निकाल कर उन्हें कैसे खुशहाल बनाने की सोच रखती है।यह अच्छा होना ही वह  ब्रह्मास्त्र  है जो भाजपा केलिए  काँग्रेस की बुराइयों पर विजय दिला सकता है। संभव है कि काँग्रेस को नकारने के लिए लोग भाजपा को चुनें परन्तु जब लोग अच्छाइयों के लिए भाजपा को बहुमत केसाथ सत्ता पर बैठाएं तभी उसे  सर्वोत्तम राष्ट्रवादी पार्टी होने का गौरव प्राप्त होगा।
                             राजनेताओं द्वारा बार -बार ठगी गई जनता के लिए आज किसी पार्टी के अच्छा होने का सबसे बड़ा मापदंड उसकी पारदर्शिता है। पारदर्शिता इस बात की गारन्टी देती है कि पार्टी मन ,वाणी और कर्म से एक है और उसपर भरोसा किया जा सकता है। पारदर्शिता की कसौटी पर, जनता के लिए संघर्ष करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा  कुछ माह पहले गठित "आम आदमी पार्टी " ,सबसे आगे दीख रही है। इसी पारदर्शिता के बल पर आज "आप "ने दिल्ली प्रदेश के चुनाव को त्रिकोणीय बना दिया है। काँग्रेस और भाजपा के माथे पर दिल्ली के चुनाव को लेकर चिंता की लकीरें स्पष्ट हैं। जिस साफगोई से विभिन्न मुद्दों जैसे महँगाई , भ्रष्टाचार ,कालाधन ,जन लोकपाल ,नोटा ,पार्टी का आय -ब्यय विवरण ,बहुमत की स्थिति में सरकार के स्वरुप इत्यादि पर "आप "के लोग बोल रहे है ;वह आज की तारीख में जन भावना के बहुत नजदीक है। पारदर्शिता में धुंधलापन के कारण राष्ट्रीय स्तर भाजपा उस श्रेणी की आत्मीयता जनता के साथ नहीं बना पा रही है। इस दिशा में नरेन्द्र मोदी को विशेष ध्यान देना देना होगा। जनता को लगना चाहिए कि उनसे कुछ हाईड ( छिपाया )नहीं किया जा रहा है। तभी भाजपा काँग्रेस से बिल्कुल अलग दिखेगी  और जनता को अच्छा विकल्प दे सके गी।
Mangal-Veena.Blogspot.com                Date 22 October 2013
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अन्ततः
                             जब -जब हस्तिनापुर में गान्धारी की हित साधना में गान्धार के शकुनि जैसे लोग सक्रिय होंगे ,तब -तब महाभारत की पुनरावृत्ति होगी और परिणाम में गान्धारी एवं धृतराष्ट्र को केवल संताप हाथ लगेगा।                                                                   --मंगल -वीना
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गुरुवार, 10 अक्तूबर 2013

दशहरा का पूर्वानुमान

दशहरा अच्छा होगा
जा सकते हैं जेल,सांसदी छिन सकती है |
दुराचारियों बिना,भी संसद चल सकती है । 
नेता दिखते पस्त ,देश कुछ बेहतर होगा |
न्याय की होगइ जीत,दशहराअच्छा होगा |
——————–भ्रष्ट तंत्र से  नहीं ;न्याय से देश बचे  गा |
——————–मीडिया बन हनुमान,जानकी खोज करेगा |
——————–कुम्भकरण 
 के बा ,मेघ को मरना होगा |
——————–रावण होगा भस्म , दशहरा अच्छा होगा |
खूब हुई बरसात ,कि धरती तृप्त हो गई |
पेंग मारती फ़सल,उपज की आस बढ़ 
गई|
हँसता दिखा किसान,देशभर उत्सव होगा |
कुदरत की है कृपा ,दशहरा अच्छा होगा |
———————डीए बोनस मिला ,खरीदी जमकर होगी |
———————पकवानों की महक,घरों में महमह होगी |
———————पैसे से बाजार ,जरा मुस्काता होगा |
———————आमदनी में वढत, दशहरा अच्छा होगा |

रेवड़ी ,चूड़ा , धनुष ,वाण घर-घर में होगा |
मेला मेल-मिलाप ,मौज-मस्ती भी होगा |
महिषासुर का नाश,शस्त्र का पूजन होगा |
माँ दुर्गा की धूम ,दशहरा अच्छा होगा |
——————–जो हैं बेवश दीन ,सहारा देना होगा |
——————–अन्नाजैसे जन को,नायक बनना होगा|
——————–नोटा के अधिकार, से आगे जाना होगा|
——————–लोकतंत्र अवतरण ,दशहरा अच्छा होगा |
राम-लक्ष्मन काज ,हनू को लड़ना होगा|
आश्विनकी नवरात्रि,शक्ति का संचय होगा|
दसवें दिन रणभूमि,विजय का पर्व मनेगा |
ऐसा है अनुमान , दशहरा अच्छा होगा |

Mangal-veena.blogspot.com      Date 10.10.2013
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पूर्वानुमान केसाथ सभी सुधी पाठकों को विजय-दशमी की ढेर सारी शुभ कामनायें |
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शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

अरे ! मुजफ्फरनगर में यह क्या हो रहा है ?

                                 मुजफ्फरनगर के दंगों ने अंतर्मन को झकझोर दिया है और एक बार पुनः सोचने को मजबूर किया है कि सोसल मीडिया ,मोबाइल और इंटरनेट जैसे युगांतकारी सम्पर्क माध्यमों के आगमन के बाद भी क्या हमारी सोच में कोई ब्यापक परिवर्तन हुआ है । युवाओं से बड़ी उम्मीद है कि वे इन संसाधनों द्वारा समाज की कुरीतिओं को समूल नष्ट कर एक तर्कसंगत ,वैज्ञानिक ,विकसित एवं समभाव समाज बनाने में सफल होंगे परन्तु ऐसा कोई मधुर परिणाम अभी तक सामने नहीं आया है। जब सम्पर्क और संचार के त्वरित साधन नहीं थे तो  दंगे हो जाया करते थे और अब जबकि त्वरित साधन हैं तो भी दंगे हो रहे हैं । स्पष्ट है कि संचार क्रान्ति का समाज को सकारात्मक लाभ मिलना शेष है । उल्टे इस सन्दर्भ में उंगलियाँ सोसल मिडिया के नकारात्मक भूमिका की ओर उठ रही हैं । अतः आज की सभ्यता माँग करती है कि सोसल मीडिया  जैसे ,फेसबुक,आरकुट और ट्वीटर के उपयोगकर्ता एवं अन्य संचार माध्यम समाज के प्रति अपनी -अपनी जिम्मेदारियों की समीक्षा करें ।
                               दंगा के आयाम बढाने वाले छोटे -बड़े कई कारक हो सकते हैं परन्तु दंगा होने के स्पष्ट कारण तो सतर्कता ,कानून एवं ब्यवस्था की असफलता ही हैं । यह उत्तर प्रदेश सरकार को बिना किसी हीला -हवाली के विनम्र भाव से स्वीकार कर लेना चाहिए । रही बात कानून ब्यवस्था की तो अंग्रेजों के समय से अब तक हमारे देश में हजारों कानून बने हैं और क़ानूनी कारखानों में हर समय नये -नये कानून बन रहे हैं जो न आम आदमी के संज्ञान में हैं न संज्ञान में लाने की सरकार के पास् कोई इच्छा है ।इसके बिपरीत हजारों वर्षों के संस्कार से हमें जो तार्किक या अतार्किक समाजी नियम /कानून मिले हैं वे अटूट आस्था के साथ जैसे के तैसे चल रहे हैं और दृढ़ता से उनका पालन भी हो रहा है ।इन्ही विरोधाभाष ने उथल -पुथल मचा रखा है और समाज उसका कुपरिणाम भुगत रहा है । दंगे तो हो गए । क्या कोई बता सकता है कि जो लोग दंगे में मारे गए उन्होंने किस कानून का उलंघन किया था और जिन्होंने मारा वे किस कानून का पालन कर रहे थे ।जिन लोगों ने दंगा भड़काया वे समाज की कौन सी भलाई किये और जो इन दंगों को रोंक न सकी वह सरकार किस  लिए है ।
                           संपत्ति एवं सम्मान की रक्षा के लिए झगड़े एवं लडाइयां होती रही हैं ,हो रही हैं और होती रहेंगी । यह किसी भी प्रभावित ब्यक्ति के लिए न्यायोचित माना गया है और ऐसी लडाइयां लोगों के समझ में भी आती हैं । परन्तु बिभिन्न धर्म या मजहब के लोग आपस में धर्म -द्वेष के कारण लड़ें- यह अधार्मिक एवं अमानवीय है। साथ ही धर्म के नासमझी की पराकाष्ठा है ।सभी धर्मग्रन्थ कहते हैं कि धर्म मनुष्य की जीवन -शैली है ; धर्म जीवन है; धर्म मनुष्यता है और धर्म सद्भाव है ।फिर किसी एक धर्म या संप्रदाय के लोग दूसरे धर्म या सम्प्रदाय वाले भाई से ईर्ष्या भी क्यों करें ?जिस धर्म से जीवन अनुप्राणित हो ,उसी धर्म की मंशा के बिपरीत  कोई ब्यक्ति आचरण कैसे कर सकता है ?
                          हमारे देश में ऐसी घटनाएँ, दुर्भाग्यवश, यत्र -तत्र सर उठाने लगी हैं । समाज में असहिष्णुता बढ़ रही है । अतः सोसल नेटवर्किंग से जुड़े करोड़ों युवक एवं युवतियों से यह अनुरोध करना अति प्रासंगिक है कि वे  केवल किसी घटना के लिए सपाट दर्पण न बनें । वे एक स्वर से भाई चारे एवँ मुहब्बत का सन्देश भी  दें । उन्हें आज के भारत को बेहतर और कल के भारत को  वैभवशाली बनाना है । निश्चय ही युवाओं ने इस राह पर कई मील के पत्थर गाड़ा है परन्तु उन्हें अभी लम्बी यात्रा तय करनी है ।
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दिनाँक 12 सितम्बर 2013
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अंततः
सद्भावना विहीन व्यक्ति समाज को तोड़ता है और सद्भावी जोड़ता है ।इसी सद्भाव को फेविकोल कहते हैं ।
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मंगलवार, 27 अगस्त 2013

आम आदमी सदमे में

                     जन्माष्टमी के पावन पर्व पर श्री कृष्ण महाराज के चरणों में समर्पित एक कविता


महँगाई क़े  नए दौर में ,रूपया  लुढ़का  गड्ढे  में ।
विक्रेता  क्रेता से  बोले ,कीमत  लेंगे   डालर  में  ।
डालर यदि हो पास नहीं तो,प्याज चलेगा बदले में।
रूपया तेरे  दीन  दशा पर ,आम आदमी  सदमे में ।

---------------गाड़ी ,मोटर ,यात्रा  महँगी ,रुपये  की  बदहाली  में ।
---------------दाल उड़नछू,सब्जी गायब,कुछ न बचा अब थाली में।
---------------बत्तीस वाले धनी शहर के,भीख  माँगते मन्दिर  में ।
---------------या  ढाबे में बरतन  धोते , आम  आदमी  सदमे  में ।

पश्चिम पाकिस्तानी घूरें,ड्रैगन गरजे  उत्तर में ।
धैर्य रखें ,हम  बात  करेंगे,नेता बोलें  संसद  में ।
लुंज- पुंज  नेतृत्व  हमारा,साख  बचे कैसे  जग में ?
देश की चिंता कोइ न करता,आम आदमी सदमे में।

---------------भ्रष्टाचार से लड़ -थक अन्ना ,गए घूमने यू.एस में।
---------------शीर्ष कोर्ट  को धता  बताते,एकजुट नेता संसद में ।        
---------------देश को  सत्ताधारी  लूटें,रक्षक लग गए  भक्षण में ।
---------------कैसे हो कल्याण देश का ,आम  आदमी  सदमे  में ।

बालाओं का चीर हरण तो ,आम हो गया कलियुग में ।
अब तो उनका शील हरण भी ,नित्य हो रहा भारत में ।
कृष्ण जन्मदिन तुम्हें मुबारक,प्लीज पधारो मथुरा में।
सारे नाग  नथइया  कर  दो , आम  आदमी  सदमे में ।

--------------कृष्ण जन्मदिन तुम्हें मुबारक,प्लीज पधारो मथुरा में।
--------------सारे नाग  नथइया  कर  दो , आम  आदमी  सदमे में ।

दिनांक 28 .8 . 2013 कृष्ण जन्माष्टमी ।              Mangal-Veena.Blogspot.com
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1 डालर =66 रुपये =1 किलोग्राम प्याज
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अंततः
रूपया सही जगह पर आ जायगा । ---संसद में चिदाम्बरम जी का बयान ।
लगता है कि अभी कुछ बाकी है ?????????????????????????????
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सोमवार, 12 अगस्त 2013

मानसूनी मेनिफेस्टो

                             मानसूनी हवाएँ भारत में पानी बरसाती हैं और चुनाव में विजयी राजनीतिक  दल का मेनिफेस्टो या वादापत्र ,जनता के पैसे से जनता पर, विकास की घटिया सौगात बरसाता है। लगता है भारतीय लोकतंत्र में विभिन्न दलों द्वारा चुनाव से पहले जारी मेनिफेस्टो ,वादा या घोषणा पत्र बहुत कुछ पावस ऋतु के मानसून ,बादल एवं बरसात तुल्य चरित्र के होते हैं।वर्षा पूर्व मानसून कभी अरब सागर तो कभी बंगाल की खाड़ी में सक्रिय होते हैं ,फिर घटते -बढ़ते हवा के दबाव व दिशा के अनुसार कहीं फटने वाले बादल बन कर सैलाब लाते हैं ,कहीं जीवनदायी बरसात बन जाते हैं तो कहीं बिल्कुल कमजोर एवं निष्क्रिय होते हुए किसी क्षेत्र को सूखे से तवाह कर देते हैं । चुनाव से पहले सभी दलों द्वारा घोषित वादापत्र लगभग ऐसे ही होते हैं । जिस भी दल को जंग -ए -चुनाव की उठा -पटक में सफलता मिल जाती है, उसे वादारूपी बरसात करने की स्वच्छंदता मिल जाती है । वह विरोधियों को फटने वाला बादल बन डराता है,समर्थन देने वाले मतदाताओं पर कृपा की बरसात करता है और वोट न देने वाले क्षेत्र की जनता को सरकारी सुबिधाओं से वन्चित कर देता है । आम लोग इन दलों के नेताओं के ऐसे ब्यवहार के आदी हो चुके हैं परन्तु आश्चर्य तब होता है जब ये नेता जनता को समस्या एवं समाधान में उलझा समझ कर अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए ऐसे कारनामें कर जाते हैं कि इतिहास भी उन्हें माफ़ नहीं करे।
                         इस संदर्भ में यदि भारत में वादापत्रों के बरसाती ब्यवहार की बात करें तो सभी प्रदेश कड़ी प्रतिद्वंदिता में हैं । उत्तर प्रदेश को ही लेलीजिये -यहाँ अम्बेडकर ,कांशीराम ,लोहिया इत्यादि ख्यातिप्राप्त नामधारी सौगातों की बरसात मनचाहे भौगोलिक क्षेत्रों  एवं मतदाताओं पर उनकी या इनकी बारी से होती रहती है,वैसे ही जैसे मध्यान भोजन  की बरसात, बच्चों को उनके गरीबी एवं लाचारी का अहसास कराते हुए, स्कूलों द्वारा विभिन्न रूपों में देश के स्कूली बच्चों पर हो रही है ।और देखिये -कहीं टीवी बरस रही है तो कहीं लैपटाप । कहीं साईकिल या रिक्शा तो कहीं एक रूपया किलो अनाज । कहीं शादी कराने की ब्यवस्था तो कहीं शादी तुड़वाने में पूरा खर्च । आगे मोबाइल भी बरसने की बात हो रही है जो ब्यापक मानसून की तरह एक पार्टी पूरे देश में बरसा सकती है । अब तो ए वादापत्र रोजगार न देकर  बेरोजगारी भत्ता देना अपने हित में  बेहतर समझ रहे हैं ।  
                     इन मेनिफेस्टो को ध्यान से पढ़ने पर हमारे देश के नेताओं में छिपी महत्वाकान्छायें भी साफ झलकती हैं । इनकी महत्वाकांछा ने देश का बंटवारा किया ,फिर प्रदेशों को बांटना शुरू किया । यह दौर कहाँ रुकेगा - किसी को पता नहीं । कभी कोई दल एक प्रदेश को बांटने का वादा करता है तो दूसरा किसी और का । अवसर मिलते ही बिना सीधे जनमत के नेतालोग आन्दोलन एवं दंगों के बलपर विकास की दुहाई देकर प्रदेशों को बाँट रहे हैं । संविधान भी मूल भावना से नहीं बुद्धिविलक्षणता से विश्लेषित होने लगा है । फिर क्या ;राजा (जनता )को पता  नहीं मुसहर वन बाँट रहे हैं । ताजा उदहारण है आंध्र प्रदेश जो ऐसे ही एक वादा बरसात का झंझावत झेल रहा है । यह ठीक नहीं है । क्या बँटवारा को आगे बढ़ानेवाले बता सकते हैं कि इस प्रदेश के कितने प्रतिशत लोग ऐसा चाहते हैं ?
                   लोकतन्त्र में यदि जनता द्वारा चुनी हुई सरकारें जनता की सेवा  के निमित्त बनती हैं तो सेवा केलिए चुनाव में उतरने वाले दलों एवं उम्मीदवारों के वादापत्र सर्वजन हिताय के धरातल पर होने चाहिये और चुनाव के समय इस पर सर्वाधिक खुली बहस होनी चाहिए । इन्हें वर्ग ,वर्ण या मतदाता विशेष से भी परे होना चाहिए ।गाँधी के देश में यह सभी दलों को पता है कि जनता को क्या चाहिए । इसलिए वादापत्र बनाने वालों को उस समय की जनता बन कर इन्हें तैयार करना चाहिये ।परन्तु वस्तुस्थिति बेमेल है और नेतानीत दल जनता को वह देने का वादा करते हैं जिससे लगे कि वे राजा और जनता उनकी प्रजा है ;वे दाता हैं और जनता भिखारी है;; वे सर्व सुख भोग के अधिकारी हैं और कष्ट झेलती जनता बेवश कराहने की पात्र।ये दानवीर आधुनिक कर्ण कम्बल क्रय करने की क्षमता नहीं देंगे बल्कि जाड़े में सीधे घटिया कम्बल ही बाँट देंगे ।अतः  आज के भारत का लोकतंत्र  ब्यवहार में राजशाही का भ्रष्टतम रूप है जिसमें नेता केलिए सब जायज है और जनता क्या चाहती है के कोई मायने नहीं हैं।
                  स्वतंत्रता मिलने के छाछठ वर्षों बाद भी भारत के नागरिक उपलब्ध करायी गयी सुविधाओं से बेहद आहत है क्योंकि ये सुविधाएँ यथा अच्छी सड़कें ,चुस्त नागरिक सुरक्षा ,भरोसे योग्य एवं सुलभ स्वास्थ्य सुविधाएँ ,सस्ती शिक्षा ,भरपूर बिजली ,स्वच्छ पेय जल ,द्रुत न्याय ब्यवस्था तथा भ्रष्टाचार मुक्त शासन आज भी ये सरकारें सुनिश्चित नहीं कर पाई हैं । जनता केलिए जो सुविधाएँ बनाई या दी जा रही हैं वे ज्यादातर असुविधाजनक एवं कोसने को विवश करने वाली हैं । यदि शुद्ध जन सेवा की भावना होती तो ये राजनैतिक दल अपने वादापत्र में घोषणा करते कि यदि जनता ने उन्हें चुना तो पाँच वर्षों में बिजली का इतना उत्पादन बढ़ा देंगे कि जनता एवं उद्योगों को चौबीस घंटे भरपूर बिजली सुलभ रहे गी या कि जो भी सड़कें बनायें गे वे अंतर्राष्ट्रीय स्तर की होंगी या कि नागरिकों को वे राम राज्य जैसी सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे इत्यादि ।इनसे भी ऊपर उन्हें अपने पर विश्वास बहाली एवं राजस्व खर्च पारदर्शी ढंग से सर्व समाज हित में करने का वादा करना चाहिए । साथ ही वादा को पूरा करने का भी सच्चा वादा होना चाहिए।
                   पिछले दो -तीन वर्षों में अन्ना हजारे साहब एवं बाबा रामदेव के जन आंदोलनों से जहाँ एक ओर जनता जागृत हुई है वहीँ दूसरी ओर उच्चतम न्यायलय के कुछ प्रशंसनीय फैसलों से आशा की नई किरणें फूटी हैं । आगामी लोकसभा चुनाव में इन आंदोलनों एवं निर्णयों का प्रभाव स्पष्ट रूप में दिख सकता है । इसका श्रीगणेश राष्ट्रीय दलों जैसे भाजपा 'कांग्रेस ,वामदल के वादापत्रों से अपेक्षित है । ब्रह्म सूत्र मान कर चलें कि देश में अब भ्रष्टाचार ,विदेश में काला धन संचय तथा दागी प्रतिनिधित्व स्वीकार्य नहीं होगा ।
                  यदि इन संकेतकों को ध्यान में रख कर सर्व समाज केलिए ढाँचागत विकास आधारित वादापत्र बनें गे और जनता से स्वीकृत अर्थात विजयी होने पर दृढ़ता से क्रियान्वित होंगे तो देशवाशी स्वयं सहकारी प्रतिद्वंदिता द्वारा देश को दिन दूना रात चौगुना गति से आगे ले जांय गे । तभी भारत का विश्व शक्ति बनने का सपना साकार हो सके गा । भारतीयों को बेहतर मंच या लाँचिंग पैड चाहिए ,अवसर वे स्वयं तलाशने को उत्सुक हैं ।खासतौर पर भारत का युवावर्ग जैसा मानसून चाहता है वैसी स्थितियाँ लाई जांय अन्यथा लायी जांयगी ।
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अंततः
मां ,पिता और अभिभावकों को बच्चों में इतना भी संस्कार नहीं भर भर देना चाहिए कि समाज से मिलने वाले नए संस्कारों को ग्रहण न कर सकें;वरन सभ्यता के ठहर जाने का खतरा है ।
12  अगस्त 2013                                            Mangal-Veena.Blogspot.com
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सोमवार, 24 जून 2013

दशा बदलती है

                              श्री लाल कृष्ण आडवानी ने बीजेपी के इतिहास पुरुषों के साथ मिलकर विचारधारा का जो बाग लगाया ,सींचा ,पल्लवित एवं पुष्पित किया ;वह कुछ वर्षों से क्रमशः मुरझाया है ।परन्तु प्रसन्न करने वाली बात यह है कि इस दल में एक ऐसा ऊर्जावान माली आगे आया है जिससे बाग के लहलहाने एवं फलित होने की संभावना ही  नहीं बढ़ी है अपितु पूरे देश की खुशहाली एवं विकास की उम्मीद जगी है । अतः आडवानी जी को अब अपना पूरा अनुभव एवं सामर्थ्य इस परिणाम के लिए झोंक देना चाहिए । आडवानी सत्तापक्ष में नहीं हैं अतः वे भीष्म पितामह नहीं हो सकते । हाँ वे कर्मयोगी हैं और उन्हें वैसा ही बना रहना चाहिए । उनके योगदान को न बीजेपी भुला सकती है न देश; परन्तु सबका अपना समय होता है ।
                             पूर्वांचल में एक प्रचलित कहावत है -दस बरस में दशा बदलती ,पाँच कोस पर बोली । भले ही पुरनियों ने दशा को अपने परिवार ,उसकी आर्थिक स्थिति एवं समाज के संदर्भ में लिया होगा परन्तु आज भी यदि देश में हो रही राजनीति को इस दस वर्ष की कसौटी पर परखा जाय तो कहावत की सटीक पुष्टि होती है । बीजेपी नीत राजग को केंद्र की सत्ता से बाहर हुए और काँग्रेस नीत संप्रग को सत्ता पर बैठे हुए दस वर्ष पूरे होने वाले हैं । इस बीच काँग्रेस ने देश को भ्रष्टतम एवं अक्षम शासन ब्यवस्था देने का अपने ऊपर अमिट कलंक लगा लिया ,वहीँ बीजेपी केन्द्र की सत्ता बेदखली से अबतक हिमाँचल प्रदेश ,राजस्थान ,झारखंड ,उत्तराखंड और कर्नाटक से अपना पत्ता साफ कराते हुए बिहार से भी निर्वासित हो चुकी है ।परिवारवादी काँग्रेस में जहाँ राहुल को सर्वाधिक शक्तिशाली उत्तराधिकारी बनाया जा चुका है वहीँ आम लोग ,बीजेपी के जमीनी कार्यकर्ता एवं देश के युवा बीजेपी के नरेन्द्र मोदी  को अगला प्रधान मंत्री बनते देखना चाहते हैं ।इस दशा परिवर्तन ने बीजेपी के लिए एक अभूतपूर्व उत्साहजनक स्थिति उपलब्ध करा दी है । फलतः जनाकांछा के चलते मोदी नायक रूपमें बीजेपी के रंगमंच पर उभर रहे हैं और आडवानी नेपथ्य के पीछे जाने का संकेत पा रहे हैं । आडवानी आज भी एक आदरणीय नेता हैं किन्तु देश को चीन से प्रतिस्पर्धा करने वाला  गुजरात माडल विकास चाहिए जिसकी संभावना केवल मोदी में है ।
                            आगामी चुनाव में मतदाताओं को दो खुले विकल्प मिलने वाले हैं । पहला कि युवराज की ताजपोशी कर दी जाय  दूसरा कि विकास की राह पर बढ़ चलें । सारे भ्रष्टाचार एवं बुराइयों के बावजूद ताजपोशी रोकना एक कठिन कार्य है क्योंकि प्रदेशीय एवं अन्य परिवारवादी दल आपना हित साधने केलिए धर्मनिर्पेक्षता की माला जपते फिर वहीं शरणागत हो जांयगे । अतः ऐसे दलों पर जनता एवं बीजेपी के रणनीतिकारों को पैनी नजर रखनी होगी ।उलट दशा में यदि मतदाताओं में दूसरे विकल्प की लहर उठी तो विभिन्न प्रदेशों के छत्रप धर्मनिर्पेक्षता की परिभाषा बदलते इधर -उधर भागते मिलेंगे और उसी समय आडवानी एवँ बीजेपी के अन्य नेताओं के मार्गदर्शन एवं कूटनीतिक भूमिका की सर्वाधिक अपेक्षा होगी । अबतक हुए सारे सर्वेक्षण मोदी के पक्ष में ऐसी लहर बनने का संकेत दे रहे हैं । यहाँ तक कि चौराहों और गलियों की चाय -चर्चा में भी मोदी सर्वोपरि चल रहे हैं कारण कि वे पूरे भारत में गुजरात की तरह विकास और खुशहाली चाहते हैं ।इन्टरनेट ,फेसबुक ,ट्वीटर पर  तो वे सर्वाधिक लोकप्रिय हैं ही ।
                          इस मंथन में धर्मनिर्पेक्षता एक बड़ा प्रसंग है । सभी अनुभव करते हैं कि भारत में यह शब्द विभिन्न वर्ग के मतदाताओं को भ्रमित करने वाला शोर -मचाऊ हथियार बन चुका है जबकि सारे राजनैतिक दलों की शासन संस्कृति एक है । किसी भी पार्टी के शासन को परखा जाय तो दिखता यही है कि कुछ पेंच जो पूर्ववर्ती ने कसे थे ,उसे ढीला कर दिया गया और अन्य पेंच जो ढीले किये गए थे ,उन्हें कस दिया गया । जनता का धन या तो एक विश्वासपात्र मतदाता वर्ग पर खर्च कर दिया जाता है या अब्यवस्थित लूट खसोट हो जाती है -बस । इसमें भला धर्मनिरपेक्षता की क्या भूमिका हो सकती है ?परन्तु दुर्भाग्य से ऐसा है नहीं । सत्ता हथियाने या गँवाने में इसकी अहं भूमिका होती है । इसी छद्म हथियार ने आडवानी को पार्टी में हाशिया पर लाया और मोदी को केंद्र में । जैसे -जैसे वे पार्टी के बाहर ज्यादा धर्मनिर्पेक्ष और उदारवादी बनने का उपक्रम करते गए ,पार्टी की विचारधारा से अलग पड़ते गए और नरेन्द्र मोदी विचारधारा पर अटल रहकर चहेते बनते गए । मोदी उदय एवं आडवानी ढलान का यह भी एक बड़ा कारण रहा है ।
                         रही बात भारतीय जनता पार्टी की तो जदयू से गठबंधन टूटने के बाद उसे कुछ और खोना शेष नहीं है । आगे जदयू केलिए सबकुछ खोने की बारी होगी और बीजेपी केलिए पाने की । कुछ राज्यों में होने वाले चुनाव इसका संकेत देंगे और लोकसभा चुनाव के परिणाम इसपर मुहर लगा सकते हैं । चुनाव  से पूर्व बीजेपी को यह सोचना ही नहीं चाहिए कि उनके साथ गठबंधन में और कौन से दल जुड़ें गे । क्या पूर्व में अटल जी के नेतृत्व में बीजेपी गठबंधन बना कर चुनाव लड़ी थी ?पार्टी को जनाकांछा एवं युवाओं की सोच के अनुसार मोदी में अटल विश्वास रख चुनाव की दुन्दुभी बजानी होगी । एकता ,अच्छे प्रत्याशियों का चयन ,युद्ध स्तर का जनसंपर्क और काँग्रेस की सत्य कथाएँ आगामी लोकसभा चुनाव में वांछित बदलाव की नींव भरें गी बशर्ते पूरी पार्टी भीतर -बाहर ,अर्श से फर्श तक मन .कर्म और वाणी से एक रहे और वैसा ही दिखे । यह कौतुहल भरी प्रतीक्षा होगी कि तेज़ी से बदलती परिस्थितियाँ एवं देश के युवाओं की चाहत क्या मोदी को आगामी चुनाव के माध्यम से भारत का अगला प्रधान मंत्री बना पाती हैं । देश निर्णायक मोड़ पर है कि कौन सी सोच भारत को आगे बढ़ाती है ।
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अंततः
Think over it :--
Love and hatred are the two opposite poles of an axis of relation.
One can"t ride both ends at the same time.
24.06.2013                                      Mangal-Veena.Blogspot.com
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बुधवार, 29 मई 2013

भ्रष्ट्राचार की स्वीकृति

                           उम्मीदवारों में यदि समान गुण एवं योग्यता हों तो उन्हें चुनावी मुद्दा नहीं बनाया जा सकता है ।चुनाव होते ही इसलिए हैं कि तुलना के आधार पर बेहतर नीतियों ,योग्यता ,शुचिता एवं सेवा की संभावनाओं से भरे ब्यक्ति को किसी चुनाव आधारित पद पर बैठाया जा सके । दुर्भाग्यवश हमारे देश में ये सारे मापदंड अर्थहीन होते जा रहे हैं । जुगाड़ या अर्थबल द्वारा जिस राजनैतिक दल से टिकट मिल जाय उस समय उस दल की नीति ही उम्मीदवार की नीतिक आस्था है ; उम्मीदवारी के लिए शैक्षणिक योग्यता या दक्षता नाम की कोई चीज इस देश में है नहीं ; शुचिता गंगा -यमुना की भाँति मैली हो चुकी है और सेवाभाव अब स्वसेवा बन चुकी है ।फिर जनता बेहतर उम्मीदवार का निर्णय कैसे करे जबकि भ्रष्टाचार तो न अछूत रहा न निंदनीय । इसे तो समाज से लगभग स्वीकृति ही मिल गयी है ।
                            मुद्दे समय सापेक्ष होते हैं । यह आवश्यक नहीं है कि जो मुद्दे कलतक समाज केलिए अहम् रहे हों आज भी प्रासंगिक हों । उदाहरण केलिए उपनिवेशवाद के दौर में श्वेत और अश्वेत का मुद्दा इतना प्रबल हुआ करता था कि चुनाव की स्थिति में अन्य मुद्दे गौण हो जाया करते थे । परन्तु आज ऐसा कुछ नहीं है । बराक ओबामा  अमेरिका जैसे देश में वहाँ का राष्ट्रपति पद चुनाव बिना इस मुद्दा के उछले जीते हैं ।भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष से स्वतंत्र होने के कुछ वर्षों बाद तक नेताओं में आचरण की सभ्यता सबसे बड़ी कसौटी थी ।अंग्रेजों के भ्रष्टाचार के विरूद्ध हमारे नेताओं के पास शिष्टाचार ही था कि पूरे भारतवासी उनके पीछे खड़े थे ।   
                             स्वतंत्रता केसाथ हमें नौकरशाही में प्रचलित भ्रष्टाचार एवं अंग्रेजी शिक्षा पद्धति विरासत में मिले । शास्त्री युग केबाद भ्रष्टाचार के आकार -प्रकार एवं विविधता में नए -नए आयाम तेजी से जुड़ने लगे । फिर अंतर्राष्ट्रीय उपभोक्तावादी संस्कृति ने आग में घी का काम किया। फ़लतः समाज के हर क्षेत्र -शिक्षा ,स्वास्थ्य ,न्याय ,अभियंत्रण ,कानून ब्यवस्था ,सरकारी सेवा ,यहाँ तक कि समाज सेवा पर भ्रष्टाचार का चटक रंग चढ़ता चला गया । इस होड़ में भ्रष्टाचार जनित त्वरित एवं आशातीत उपलब्धियों ने नेताओं को सर्वाधिक प्रभावित किया क्योंकि जो नेतागिरी से इतर कुछ करने योग्य न थे वे लाभ की संभावना से ओत -प्रोत दिखने लगे ।आज स्थिति यह है कि नेताओं की सम्पत्ति उद्योगपतिओं से भी तीब्र गति से बढ़ रही है । इनमें से कुछ तो धरती ,आकाश और पाताल तक डकार जाने केबाद भी शालीन ,शिष्ट एवं माननीय हैं ।भ्रष्टाचार से पैसा ,पैसे से साधन सम्पन्नता ,साधन से पद और पद से प्रतिष्ठा सबकुछ राजनीति में सुलभ है । यह पूछना ही निरर्थक है कि पैसे शिष्टाचार से कमाया कि भ्रष्टाचार से । रही बात मतदाताओं की तो उन्हें सब पता है क्योंकि उन्हें और उनके परिवार को भी आये दिन भ्रष्टाचार मद में खर्च या आमदनी का जुगाड़ करना पड़ता है ।हमाम में सब नंगे । तात्पर्य कि सर्व ब्यापकता के कारण अब यह कोई मुद्दा नहीं है ।
                            हाल ही में बीजेपी कर्नाटक एवं हिमांचल में चुनाव हार गयी । जीतने वाली पार्टी ने शोर मचाया कि उसने भ्रष्टाचारी सत्ता दल को उखाड़ फेंका । परन्तु वहाँ की जनता की सोच रही कि जब वहाँ की पूरी सत्ता भ्रष्ट थी तो मुख्य मंत्री मात्र को बलि चढ़ा देने से पूरी की पूरी ब्यवस्था ईमानदार कैसे हो गई । जनता बेईमानी भुगतती रही , लूट देखती रही और सत्ताधारियों की ईमानदार होने की धौंस भी सुनती रही -समय आने पर निर्णय सुना दिया । कुछ ऐसे ही निर्णय की बड़े चुनाव में भी संभावना है । उसमें भी भ्रष्टाचार नहीं बल्कि उससे आगे की बातें मुद्दा बनेंगी ।
                            परन्तु देश हित में है कि भ्रष्टाचार मुद्दा बना रहे । नीतियाँ भी चुनाव की शर्त बनी रहें क्योंकि शिष्टाचार केसाथ नीतियाँ सदैव अर्थ रूप में जुड़ी होती हैं । यदि भारत को बचाना है तो अन्ना हजारे समय की माँग हैं और उन्हें तथा उनकी माँगों को नकारना आत्मछलावा है ।सचमुच यदि भ्रष्टाचार को चुवावी मुद्दा बनाना है तो मतपत्र में "कोई भी पसन्द नहीं "का एक विकल्प दिया जाय । बदलाव की बयार बहने लगेगी ।
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अंततःएक पैराडाक्स --
भ्रष्ट सरकार के एक भ्रष्ट मंत्री ने बयान दिया कि भ्रष्टाचारियों को बक्शा नहीं जाय गा
 और उन्हें कठोर से कठोर सजा दी जायगी ।
29 May2013                                                   Mangal-Veena.Blogspot.com
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बुधवार, 15 मई 2013

A reminiscence-on 1st PunyaTithi+ of Late Dr Kesar

Kesar was nearly three and a half years younger to me.We almost all barefoot students with little clothings were getting our early education in a nearby Basic Primary School at Siristi Varanasi.This door and window free kachcha/pucca school was having four rooms to accomodate students of five classes but was gifted with good open space ,ambience and a pucca well for the reason that ,earlier,it was an Indigo processing cum collection centre during British period.An event of those schooling days is still fresh in my memory.In 1960-61,I was in 5th and Kesar in 2nd standard.Kesar was doing exceptionally well in studies.
Like other years Autumn came with message of seriousness towards our studies.Our extra curriculum activities were to ensure beautiful flower plantaton on boundaries and dividers with regular watering and attractive up-keep of the premises for which groups were formed in rotation.One day evening when students were taking Hindi dictation,our Head Master Late Sri Markandey Maurya noticed that Kesar was absent from the class.When searched he was found watering the plants alone.Teacher called him to attend the class but at that moment Kesar was not having a Deshi pen ready to write.So he rushed to my classroom and asked for a knife and started to sharpen his stick(Sarpat grass)in order to give its edge a nib shape .The knife slipped and made a deep cut on his right thigh with rush of blood.I became badly afraid with the happening and helpless about what to do .Before others could rush to help ,Kesar took my gamchha(thin towel),banded wounds and asked me to drop at home .The class activities were halted and the Head Master arranged a bicycle to take Kesar home.I remember well ,all the students of my village followed that bicycle running all the way.A Hakim from neighbour bazar was called to provide medical aid.In days when Kesar was recovering the H.M.visited my village with me to see Kesar.While chatting with my father and Kesar he asked,"Kesar!when all students were supposed to be in class,why were you busy in watering the plants and flowers?---Munshijee!actually the asignee team  was not honest on that day in watering the plants and I doubted their survival for want of water so I dared ----was his reply.
The wounds healed. Every thing resumed but the cut mark existed on his thighs for ever.So was the nature loving early life of a simple scientist.What to say of memory?
Date.16.5.2013                                                         Mangala Singh and family
Ashok Vihar Varanasi
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N B:+=Death Anniversary
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सोमवार, 13 मई 2013

शहीद की अवधारणा

                          बहुत हो -हल्ला और मीडियाबाजी के बावजूद एक भारतीय नागरिक स्व श्री सरबजीत को न तो सरकार पाकिस्तान की जेल से आजाद करा पाई न जेल में ही घायल किये जाने पर उसे इलाज केलिए जीवित अपने देश ला सकी । अंत में उसका पार्थिव शरीर देश लौटा और देश की माटी में विलीन हुआ । जो कुछ हुआ ,उससे हर भारतीय को बड़ी ही पीड़ा हुई ।जीते जी जो कुछ दिनों केलिए ही सही अपने गाँव व देश न लाया जा सका ;मरने पर अतिसक्रिय केंद्र और राज्य सरकारें श्रद्धासुमन से शुरुआत कर उनके परिवार पर लक्ष्मी की बरसात करते हुए उनके बच्चों को नौकरी देने में दत्तचित्त हो गयीं । यह सब तो ठीक था ।  असामान्य एवं चौकाने वाली बात तो तब हुई जब सरबजीत को बहादुर लाल और शहीद तक घोषित कर दिया गया ।
                          शहीद की बात आई तो शहीदी क्षेत्र के सपूतों की याद आई कि क्या स्व सरबजीत शहीद भगत सिंह ,चन्द्र शेखर आजाद की श्रेणी का आत्मबलिदानी था । कदाचित नहीं । लगता है हमारे देश मेंशहीदनामकसम्मानपरिभाषित है ही नहीं ।सच यह है कि शहीद एक  अवधारणा है जिसका दायरा पूर्णरूपेण अस्पष्ट है या बनाया जा रहा है । शब्दकोष की मानें तो देश और समाज केलिए आत्मबलिदान करने वालों को शहीद कहते हैं ।फिर इसी परिपेक्ष्य में या तो इशारे को समझा जाय या मान लिया जाय कि सरकार केपास शहीद घोषित करने केलिए न मानक योग्यता शर्तें हैं न इस सम्मान केलिए कार्य क्षेत्र परिभाषित हैं । तभी तो जिसे मन में आया शहीद कह दिया।ऐसे सम्मानसूचक विशेषण और भी हैं जो मात्र अवधारणा रूप में रह गए हैं जैसे महात्मा ,बापू ,नेताजी ,महामना,लौहपुरुष ,लोकनायक इत्यादि जिन्हें आजकल चाटुकारिता केलिए प्रयोग में लाया जाता है। देश में खिलाड़ियों ,साहित्यकारों ,संगीतकारों ,फिल्मकारों इत्यादि केलिए उनके क्षेत्र से जुड़े परिभाषित सम्मान हैं जो मानकों के आधार पर उनके विशेष योगदान केलिए उन्हें दिए जाते हैं परन्तु जिन नायकों के त्याग और बलिदान से हम हैं ,हमारा राष्ट्र है और हमारे राष्ट्र का गौरव है ;उनके साथ लगे सम्मानसूचक शब्द मात्र अवधारणा हैं या यूँ कहें कि अब्यक्त ,अपरिभाषित एवम अनारक्षित हैं ।
                         किसी देश की कोई भी सरकार एक ब्यक्त ब्यवस्था होती है फिर वह अवधारणा पर कैसे काम कर सकती है । सरकार का प्रथम कर्तब्य है कि वह विशेष सम्मानसूचक शब्दों को जाने ,उनका दुरुपयोग रोके और आवश्यकता पड़ने पर उनकी पेटेंटिंग कराए । सरकार से अब यह तत्काल अपेक्षा है कि वह शहीद शब्द  की भी लिखित ब्याख्या दे और स्पष्ट करे कि शहीद किसको कहा जायगा । फिर उसके प्रति क्या सम्मान एवं जिम्मेदारियाँ होंगी । हमारे अतीत के राष्ट्र नायकों एवं शहीदों की श्रेणी में किसी की घोषणा से पूर्व सरकार को चाहिए कि सारे मानकों पर हर केस का गहन परीक्षण करे अन्यथा सच्चे सपूतों के साथ हमलोग कृतघ्नता के दोषी होंगे ।
                         मानकों पर खरा उतरने की बात ही क्या हो जब हम भारतीयों का एक बड़ा वर्ग अभी भी नहीं जान पाया है कि यह सरबजीत वस्तुतः कौन था ,वह क्या करता था और कैसे पाकिस्तान पहुँच गया !या तो वह स्वयं सीमा लाँघ कर पाकिस्तान पहुँचा होगा या सीमा लंघा कर उसे पाकिस्तान पहुँचाया या खींच लिया गया होगा । इन तीनों स्थितियों में किसी न किसी का कोई मन्तब्य रहा होगा ।पाकिस्तान कहता रहा है कि वह दहशतगर्द था जो पाकिस्तान में  दहशत फ़ैलाने आया था । हमलोग सुनते हैं कि वह भूलवश सीमा लाँघ गया था । सब मिलाकर ऐसा लगता है कि सीमा लाँघने और लंघाने का काम बार्डर पर होता रहता है । फिर तो पाकिस्तान की जेलों में ऐसे बहुत सारे सरबजीत होंगे । मन नहीं मानता ,कहीं आंधी -तूफान और चक्रवाती हवाएँ इन सीमावर्ती वासिन्दों को सीमापार फेंक तो नहीं देती हैं ;फिर दोनों ही सरकारें सारे काम -काज छोड़ ऐसे बदनसीबों के पीछे पिल पड़ती हैं ताकि अन्य बातों से जनता का ध्यान हटाया जा सके । अब सरबजीत मामले में सबकुछ ख़त्म होने के बाद सरकार को उनकी एक रीयल स्टोरी जारी कर देनी चाहिए ताकि शंका निर्मूल होसके और शहीद की अवधारणा प्रश्न चिन्हित न हो ।
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अंततः
अर्जुन ने अपना विचार व्यक्त किया
                          चंचलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बल्वददृढं ।
                          तस्याहं  निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करं ।६ /३ ४
श्री भगवान ने समाधान बताया --
                          असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलं ।
                          अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते । ६ /३ ५
(मनकी चंचलता निरंतर अभ्यास एवं वैराग्य से ही मिटाई जा सकती है)
13 May 2013                                                         Mangal-Veena.Blogspot.com
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मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

बीजेपी !सावधान

        लोकसभा चुनाव की रणभेरी अभी बजी भी नहीं कि धर्मनिरपेक्षता के नामपर भाजपा का एक सहयोगी दल उसके चरित्र और चेहरे पर ग्रहण लगाने पर तुल गया । आम आदमी जदयू के इस शतरंजी चाल से नहीं बल्कि भाजपा के इस मौकेपर अनिर्णय की स्थिति पर अचंभित है । बीजेपी की वैशाखी सहारे खड़ा बिहार का मुख्यमंत्री जब  बीजेपी के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता एवं गुजरात के मुख्यमंत्री को नान - सेक्यूलर कहतेहुये उसके विकास माडल को ख़ारिज किया ,तत्काल बीजेपी को इस मारेसि मोहिं कुठाँव का मुंहतोड़ प्रतिकार गठबन्धन तोड़कर करना चाहिए था,परन्तु ऐसा नहीं हुआ । फिर देश के दूसरे सबसे बड़े राजनीतिक दल को ऐसे लांछन सहने का कोई बडा लाभकारी कारण होना चाहिए जिसे आम आदमी नहीं समझ पा रहा है । जहाँ नरेन्द्र मोदी की लोक प्रियता के आधार पर आगामी चुनाव में बीजेपी केलिए दोसौ का आंकड़ा पार होने की संभावना है,वहां बीस के आसपास खेलने वाला टंगड़ी मार रहा है ।
        भारतीययुवा मतदाता की सोच है कि अब चुनाव विकास ,बेहतरी एवं भ्रष्टाचार मुक्ति जैसे मुद्दों पर लड़े और जीते जांय जबकि अधिकांश दल और नेता जाति एवं धर्म के नाम पर समाज को तोड़कर चुनाव लड़ने में दक्ष हैं । ऐसे लोग अपने कुटिल चाल में सफल भी होते रहे हैं ।चाल फिर चल दिया गया है ।इसलिए सावधान बीजेपी । मुद्दे से  भटकना  आत्मघाती हो सकता है । पूरा देश कांग्रेस के अधिनायकवाद, भ्रष्टाचार, कुशासन एवं संवेदनशून्यता से त्रस्त है। सभी चाहते हैं कि बीजेपी जैसा राष्ट्रीय दल देश को चलाने एवं कांग्रेस को राजनीतिक टक्कर देने की स्थिति में बना रहे । यह हमारे लोकतंत्रऔर विकास केलिए आवश्यक  है ।इस अपेक्षा पर भी बीजेपी को खरा उतरना है ।
        गुजरात में  सामने दिखता विकास एवं इसके प्रतीक नरेद्र मोदी आज ऐसे दो कारण हैं जिनसे प्रेरित होभाजपा का खोया जनाधार वापस भाजपा की ओर मुड़ने की सोच रहा है ।देश के हर नुक्कड़-चौराहे पर, विविध मंचों पर, समाचारपत्रों एवं सोशल मिडिया में मोदी का देश का सर्वाधिक लोकप्रिय नेता
होना स्वीकृत एवंचर्चित विषय है । विभिन्न विचारधाराएँ भी चाहती हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव भाजपा से नरेन्द्र मोदी एवं कांग्रेस से राहुल गाँधी के भावी प्रधान मंत्री पद की दावेदारी मुद्दे पर हो । अतः सामने कांग्रेस को देखते हुए तत्कालभाजपा को अपनी पार्टी की ओर से नरेन्द्र मोदी को भावी प्रधान मंत्री पद का दावेदार घोषित करना चाहिए और पूरी पार्टी को एक जुट होकर आडवानी जी के दिशा निदेशन में चुनाव में कूद पड़ना चाहिए । यदि दोसौ का आंकड़ा बीजेपी छू लेती है तो सरकार बीजेपी नेतृत्व वाली गठबंधन ही बनाये गी और जदयू इधर -उधर झांकती दिखेगी । इसके बिपरीत लक्ष्य से पिछड़ने पर कोई गठजोड़ काम नहीं बना सके गा । फिर रणभूमि में उतरने से पहले अर्जुन की भांति मोह क्यों ?
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अंततः
जबतक हमारे देश में प्रधान मंत्री और मुख्य मंत्रियों का चुनाव सीधे मतदाताओं के मतदान से होने की संवैधानिक ब्यवस्था नहीं होगी ,भ्रष्टाचार मिटाने का कोई निर्णायक प्रयास नहीं होगा ,सीबीई जैसी संस्थाएं स्वायत्त नहीं होंगी और बिना आमदनी बढ़े महंगाई बढती रहे गी ;आम आदमी असहाय मतदाता बना रहेगा ।
16 April 2013                                            Mangal-Veena.Blogspot.com
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रविवार, 7 अप्रैल 2013

युवाओं के प्यार से जुड़ा यौन अपराध

            यदि प्यार शब्द LOVE का समानार्थी है तो जी हाँ, युवाओं का प्यार यौन अपराधों को बढ़ावा देता है। पहले भी यह शब्द भारतीय समाज में था, परन्तु इतना ब्यापक नहीं था जितना पश्चिमी सभ्यता के भौतिकवाद में। राधा-कृष्ण, नल-दमयन्ती, दुष्यंत-शकुंतला जैसे शालीन एवं अनुकरणीय उदाहरण हमारे अपने भारत के हैं जिनकी तुलना आज के युवाओं के प्यार से करना न ही उचित है न संभव। आज हम जिस प्यार की बात करते हैं, वह शब्द और संस्कृति पश्चिमवालों ने बड़े प्रयास से विदेशी शिक्षा एवं भारतीय सिनेमा के माध्यम से भारत में स्थापित किया और अब वेलेन्टाइन डे की स्वीकृति के साथ उस प्यार का पूर्ण प्रदार्पण हो चुका है।
            आज भारत में बनने वाले अधिकांश फार्मूला चलचित्रों के विषयवस्तु प्यार एवं अपराध के प्रेरक ही तो हैं। जो सिनेमा में होता है, वह कालेज और विश्वविद्यालयों में अनुकरण होकर, समाज में जहर की तरह फैलता है। आज के युवक एवं युवतियां जब प्यार की उम्र में पहुचते हैं तो तो इनके दो छोर बनते है, पहला सुन्दर काया  और सम्पन्नता वाला छोर, दूसरा इससे आंशिक या पूर्ण वंचित छोर। कोई रिझने में मुग्ध तो कोई रिझाने में और कोई असफल होने पर यौन अपराधों में लीन। अपराध का सम्बन्ध सदैव भूख से रहा है और यदि प्यार के कारण यौन अपराध हो रहा है तो निश्चय ही यह प्यार एवं इसमे ब्यवधान भी किसी अन्य शारीरिक भूख के कारण हैं और कुछ नहीं। फिर अपराध तो अपराध है और इसमें कमी लाने के लिए इस प्यार की संस्कृति में बदलाव लाना भी सभ्यता की पुकार है।
            हाल ही में एक अंग्रेजी समाचार पत्र के सम्पादकीय पृष्ठ पर एक दृष्टिकोण छपा था कि फ़िल्में हमें वह देती हैं जो हम चाहते है। बड़ी अजीब बात है कि मनोरंजन से जुडी इंडस्ट्री का उद्देश्य मनोरंजन से अलग क्यों होना चाहिए। यह इंडस्ट्री आज अधिकांशतः लव,सेक्स,हिंसा,यौन अपराध, रेप को उकसाती(induce) है, नकि कुछ देती है। यह उद्योग लोगों से मनोरंजन के नाम पर पैसा लेकर उन्हें गलतियों की ओर प्रेरित कर रहा है। इन्हें अपराध एवं प्यार के नायाब तरीके बताने एवं उकसाने का दायित्व किसने सौपा है?सिर्फ पैसा ने या सामाजिक दायित्व ने- एक दिन इसका सभी को उत्तर देना होगा। युवाओं का प्यार जिस रास्ते पर जा रहा है वह रास्ता विषम एवं विनष्टकारी है। समाज जितना जल्दी चेत जाय, हमारी सभ्यता के लिए उतना के लिए उतना ही अच्छा होगा क्योंकि प्यार करना सबका हक़ है और उससे वंचित होने पर अपराध बढ़ने की सदैव संभावना रहेगी।
            अच्छी बात है कि युवाओं एवं उनमें प्यार को धनात्मक दिशा देने के भी अभिनव प्रयास हो रहे हैं ।अभिभावक वर्ग भी चौकन्ना हो गया है । सेक्स एजुकेशन के लिए गंभीर प्रयास हो रहे हैं । बहुत सारी फ़िल्में स्वस्थ मनोरंजन या प्यार को केंद्र में रख कर सही दिशा में बन रही हैं ।  अतः भविष्य में यौन अपराधों में कमी की आशा भी की जा सकती है ।
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अंततः
Films give us what we want.-----------------------------------------------------NO.                                                      
Films give us what pays them crores even at the cost of let society go to hell .
7 April 2013                                                               Mangal-Veena.Blogspot.com
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शनिवार, 6 अप्रैल 2013

धन्यवाद होली ,स्वागत नवरात्रि 2013

                       विषम परिस्थितियों में बेहतरीन प्रदर्शन केलिए बीती होली को धन्यवाद । इस त्योहार की लोकप्रियता का ही कमाल है कि  स्थापना दिवस (वसंत पंचमी) से मुख्य उत्सव होते हुए बुडवा मंगल तक हुडदंगियों को संविधान से कई गुना अधिक बोलने एवं मनमानी की स्वतन्त्रता मिल जाती है।यहाँ तक कि संविधान के रखवाले भी यही बडबडाने लगते हैं कि बुरा ना मानो होली है। मंहगाई, पश्चिमी विक्षोभ एवं पूर्वी दबाव को दरनिकार करते हुए यह होली जवान एवं मदमस्त होकर भारतीयों पर छाई और छाई रही।
                      होरियार एवं हुड्दंगी, टोली में अपनी स्वतंत्रता का एहसास करते हुए, राहगीरों से जबरदस्ती चन्दा उगाही किये। फिर दारू, मुर्गा एवं भंग उड़ाते हुए लाऊड स्पीकरों से कान फाडू अश्लील गाने बजा- बजा कर ध्वनि नियंत्रण की माँ बहन करते रहे। नतीजन अभद्रता के चलते अपनी ही बहू - बेटियां घरों में कैद रहीं।
                      दूसरी ओर घुसहे विभाग के कर्मचारी दनादन फाइलों को आगे बढा कर अपनी शाही होली की व्यवस्था किये तो सूखे विभाग वाले आश्वासन एवं झूठ- झाठ का सहारा  ले अपना जुगाड़ बैठाये। व्यवसायी मिलावट, घट- तौली और जिंसो की मनमानी कीमत से पैसा बनाये तो मजदूर बिचारे पूरे परिवार को मजदूरी पर झोंककर या उधारी मांगकर जुगाड़ किये । अमीर सबपर भारी तो किसान लहलहाती फसल के बल पर उत्साहित हुआ । सब मिलाकर क्रूर महँगाई से मोर्चा लेते हुए सभीलोग अपने -अपने ढंग से रिकार्डतोड़ होली खेलने में रम गए ।
                      फिर क्या था ,असली -नकली खोया भी खूब बिका ;गुझिया ,पापड़ और पकवान भी खूब बने । रंग ,गुलाल ,पिचकारी एवं टोपियों के नए -नए चीनी संस्करण भी धूम मचाये । ब्रांडेड जीन्स ,शर्ट्स ,टॉप्स एवं जूतों -चप्पलों की हर घर में क्रेज रही । चूँकि किसी न किसी ढंग से लक्ष्मी सबके पास पहुंची थी ,पूरे जोश केसाथ होली जलाई गई ,एकसेएक बढ़कर हुड्दंग हुए ,रंग कुरंग भी खूब बरसे और जोरा -जोरियाँ भी हुईं । संत (आशाराम बापू )से श्रोता तक,सधवा से विधवा(मथुरा ) तक,दिगम्बरियों से अम्बरधारियों तक और क्या कहें होरियारों से पुलिस तक सभी मर्यादा से बगावत करते दिखे । महंगाई,कुब्यवस्था एवं परेशानियों की बारहोमासी पिचकारी मारनेवाले नेताओं ने भी जनता को होली का मुबारकवाद देकर खूब चिकोटी काटा ।यही तो एक त्यौहार है जब हास्यकवियों के पौ बारह होते हैं । उल्लू ,गधा ,भैंस,सांड ,ऊंट केरूप में उन्हें लोटपोट सुना और सराहा गया । होली के गीत भी अवध एवं ब्रज परंपरा से आगे बढ़ते हुए फिल्मों को लाँघ कर ठेठ देशी फूहड़पनतक पहुँच गए । असहनीय अश्लीलता केसाथ एक और विशेष बात रही कि घर -घर में चीन को होली खेलते पाया गया।
                    कुल मिलाकर ऐसा लगा कि भाँग ,दारू ,बेहयाई एवं अश्लीलता के साथ अब होली जवान हो गई है और नई पीढ़ी चाहती है कि यह होली बारहोमासी हो जाय ।बुढ़वा मंगल भी उल्टे जवान होता गया जैसे -जैसे चालाक  मूर्ख बनते गये।होली का दौर समाप्त हुआ तो रेल ,सड़क और जहाज पर रेलम -पेल है क्योंकि अब लोग कार्यक्षेत्र की होली खेलने भाग रहे हैं । सारांशतः सबने पाया कि बीती होली मोटा -मोटी शानदार ,जानदार एवं शांतिपूर्ण रही ।
                    आगे स्वागत है चैत्र का जब जनसैलाब अगले पर्व -पड़ाव अर्थात नवरात्रि की ओर अग्रसर होगा । यही है पारम्परिक तीज -त्योहारों के रूप में उमंगों का झोँका जो भारतीयों को तरोताजा बनाये रखता है । इस पवित्र माह को ,मर्यादा पुरुषोत्तम राम का जन्मदिन मनाने ,शक्ति के नव रूपों के दर्शन -पूजन करने एवं ग्रीष्म जनित  बीमारियों से बचाव केलिए मां शीतला को पूजने का स्वावसर प्राप्त है । इस माह का अनुभव करना है तो प्रातः किसी मदमाते महुए केपास से निकलें या चैती गुलाब की बगिया से अन्यथा अमरावती ही सही । कहीं न कहीं अपनी सुमधुर ध्वनि से ऋतुराज का स्वागत करती कोयल सुनाई दे जायगी । ऐसी सुखद परम्परा केलिए पूर्वजों को साधुवाद ।
दिनाँक 6 अप्रैल 2013 संवत 2070 -                         Mangal-Veena.Blogspot.com
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गुरुवार, 14 मार्च 2013

आधुनिकायें और मासूमों केसाथ बीभत्स यौनाचार

                             हम प्रगतिशील भारतवासी अपनेलिए स्वयं अस्वस्थ समाज का निर्माण कर उससे उत्पन्न अनेक भ्रष्टाचरणों से जूझ रहे हैं । पूरा देश चाहता है कि इन भ्रष्ट आचरणों पर रोक लगे फिर भी उन्हें बढ़ाने वाले साजो -सामान रात -दिन तैयार हो रहे हैं । यह ऐसी कोई गूढ़ बात नहीं है -जो लोगों के समझ में नहीं आ रही है । गाँधीजी के तीन आधुनिक बन्दर सार्थक हो रहे हैं । देखते हुए लोग कह रहे हैं कि ऐसा कुछ दिखाई नहीं देता । सुनते हुए कह रहे हैं कि ऐसा कुछ सुनाई नहीं देता और बोल कर भी कह देते हैं कि ऐसा कुछ कहा नहीं । आधुनिकाओं पर चर्चा भी कुछ इसी तरह चल रही है । चूँकि यौनाचार में महिला एवं पुरुष एक दूसरे से जुड़े (संपृक्त )हैं अतः इससे जुड़े दुराचरण केलिए तथाकथित आधुनिक महिलाएं भी जिम्मेदार हैं परन्तु मात्र वे ही जिम्मेदार नहीं हैं ।अधुनिकता के नाम पर मर्यादा की सीमा तोड़ने वाली महिलाएं यौन -अपराध केलिए कारणरूप में जिम्मेदार हैं परन्तु सम्पूर्ण आधुनिक महिला समाज बिल्कुल नहीं । मानव विकास के हर काल में तत्कालीन आधुनिकता ने उन्हें सभ्य से सभ्यतर बनाया परन्तु आज की आधुनिकता हमें असभ्यता की ओर लिए जा रही है । यह दुर्भाग्य की बात है और इसी में एक है मासूमों केसाथ हो रहा यौन -अपराध ।
                            बीते दिनों राजधानी दिल्ली एवं देश के अन्य भागों में मासूम बच्चिओं के साथ जो यौन अपराध हुए -उससे केवल मानवता ही शर्मशार नहीं हुई ,कुछ गंभीर मुद्दे भी सोच को विवश किये हैं जैसे क्या इन अधम अपराधियों केलिए प्रथम पसंद लक्ष्य (टारगेट )ये बच्चियां ही थीं ?क्या उन्हें देशतंत्र एवं कानून ब्यवस्था का खौफ नहीं था ?और क्या उनपर लोक -लाज और इन बच्चिओं से उम्र के सापेक्ष बनने वाले संबंधों (चाचा ,पापा ,ताऊ ,दादा ,नाना )का अहसास नहीं था ?इन प्रश्नों के उत्तर मनोविज्ञान में चाहे जिधर झुकते हों पर इतना तो तय है ऐसे अपराधी सनक के उस बिंदु पर अवश्य पहुंचे होंगे जहाँ से अपने को नियंत्रित करने एवं अपराध न करने की कोई संभावना उनमें नहीं बची  होगी । फिर यह भी तय है कि ऐसी सनक के उत्प्रेरकों में उनकी स्वयं की अशिष्टता एवं असंयम केसाथ उन्हें ऐसा बनाने वाले संदर्भित कारण भी हैं। 
                            उत्प्रेरकों की चर्चा में यदि खरी -खरी कहें तो आज यौनाचार से जुड़े अपराध केलिए युवा वर्ग का उन्मुक्त ब्यवहार जिम्मेदार हो रहा है।यह वर्ग अपनी स्वेच्छाचारिता को लोकाचार की तुलना में अधिक महत्व देता है और अपनी स्वतंत्रता एवं स्वछंदता के सामने दूसरों की स्वतंत्रता एवं स्वछंदता का तनिक भी ख्याल नहीं रखता है। अपने को आधुनिक दिखाने एवं कहलाने की ललक में यह वर्ग सामाजिक शिष्टता का हाथ मरोड़ कर यौन अपराध एवं हिंसा का जाने -अनजाने प्रेरक बन रहा है । दूसरा बड़ा कारण है-आज के परिवेश में हर क्रिया-कलाप का यौनाचार पर फोकस (केन्द्रित )होना । बड़े परदे से छोटे परदे तक ,समाचार से विज्ञापन तक ,भक्ति प्रसारणों से पारिवारिक धारावाहिकों तक ,साहित्य से संगीत तक ,संवाद से इशारे तक ,शारीरिक भाव -भंगिमा से पहनावे तक सारी गतिवधियां दर्शकों एवं श्रोताओं को सेक्स का ध्यान कराती रहती हैं। आगे सभी जानते हैं कि हम जिस विषय को अधिक सुनेंगे ,चिंतन -मनन करेंगे और अपने आसपास  देखेंगे ;उससे प्रभावित होंगे । बात बचती है केवल नीर-क्षीर विवेक की ,जो सबको संस्कार के अनुसार कम या ज्यादा मिलती है । वे दुर्भाग्यशाली हैं जिन्हें पर्याप्त संस्कार या शिष्टाचार नहीं मिला और कुंठावश बच्चिओं केसाथ घृणित अपराध कर बैठते हैं। वस्तुतः वे कुकृत्य तो किसी और केसाथ करना चाहते हैं पर वांछित लक्ष्य न मिलने पर मासूमों को शिकार बना लेते हैं । वैसे भी यौनाचार एक जैविक आवश्यकता है जो पूरी न होने पर अशिष्ट एवं असंयमी पुरुष या नारी को विकल्पित अपराध की ओर ले जाती है ।
                          अंतिम और उतना ही बड़ा कारण देश की फेल हो चुकी कानून एवं पुलिस ब्यवस्था है । आज इनमें न अपराध रोकने की दक्षता है न अपराध हो जाने पर अपराधी को तुरत -फुरत सजा दिलाने की क्षमता । कभी -कभी तो लगता है कि अपनी कर्तब्य निष्ठा से दूर यह शासन- प्रशासन भी तथाकथित आधुनिकता की गिरफ्त में है । किसी को ध्यान नहीं है कि मौजूद तंत्र सवा सौ करोड़ जनसँख्या केलिए नाकाफी एवं  कालातीत है ।
                          सामयिक होगा कि अश्लील आधुनिकता की रोकथाम केलिए पारदर्शी कदम उठायें जांय और अपराधिओं पर त्वरित कार्यवाही कर उनमें खौफ पैदा किया जाय । इसके लिए एक ऐसी संस्कृति स्थापित हो जिसमें सभीलोग अश्लील आचरण के बिरुद्ध आवाज उठाने केलिए शपथबद्ध हों । इस कड़ी में अबभी क्या फ़िल्म सेंसर बोर्ड बिना लाग -लपेट के स्वीकार करेगा कि समाज में तेजी से फ़ैल रही अशिष्ठता ,अश्लीलता ,विकृत यौनाचार एवं हिंसा केलिए जिम्मेदार भारतीय सिनेमा पर अंकुश लगाने में वह फेल रहा है।इस बोर्ड को छठे ,सातवें या आठवें दशक की फिल्मों एवं आजकी फिल्मों में अंतर तो दिखता और सुनाई देता होगा ।   आधुनिक महिलाओं को मासूमों के साथ यौन -अपराध केलिए जिम्मेदार ठहराने से पहले यह जिम्मेदारी भी तय की जानी चाहिए कि उन्हें ऐसी आधुनिकता किसने मुहैया कराई ।
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अंततः -
             यदि कुछ सुन्दर है तो उससे जुड़ें , शर्त यह कि वह कल्याणकारी हो ।
             यदि कल्याणकारी है तो उसपर समर्पित हों, शर्त यह कि वह सत्य हो।
             परन्तु वह कुछ सत्य है कि नहीं, इसका निर्णय केवल सन्दर्भ करते हैं ।
14 March 2013                                                            Mangal-Veena.Blogspot.com
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रविवार, 10 फ़रवरी 2013

मिशन 2014 या मिशन मोदी?

देश के सारे राष्ट्रीय एवं प्रान्तीय राजनैतिक दल सन 2014 के आम लोक सभा चुनावी युद्ध में उतरने के लिए    अपनी वाणी, बाणसंधान एवं बागडोर को तराश रहे हैं। यह लगभग तय है कि इस युद्ध में या तो संप्रग गठबंधन पुनः राजग गठबंधन को पटखनी देकर इसके भावी अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगा देगा या राजग गठबंधन सत्तारूढ़ संप्रग को अहंकारी रथ से विरथ कर उसे आम जनता के आक्रोश रुपी सरशैय्या पर लिटा देगा। संप्रग का सबसे बड़ा घटक दल कांग्रेस है और उसने जयपुर में संपन्न हुए चिंतन शिविर तक यह शंखनाद कर दिया है कि मिशन 2014 के लिए चुनाव बागडोर राहुल गाँधी के हाथ होगी, बाणी उनकी होगी और बाण भी उनकी तरकश से निकलेंगे। कांग्रेस एक ऐसा राजनीतिक दल है जिसका अध्यक्ष पद या विजय की स्थिति में प्रधानमंत्री पद ऐसे लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई का हो जाता है जिसमे केवल नेहरू/ गाँधी परिवार ही फिट बैठता है या यह परिवार किसी भी अपने विश्वाश पात्र को उसमे फिट कर देता है।
     इसके विपरीत राजग के प्रमुख घटक दल भाजपा के साथ सबसे ज्वलंत प्रश्न बागडोर का है। अटल-आडवानी युग ढलान पर है और इस दल में परिवारशाही भी नहीं है। वाणी एवं वाणसंधान से अति संपन्न यह पार्टी योद्धाओं से कंगाल है। जिनका पौरुष रथपति भर का नहीं है , वह महारथी बने घूम रहा है और जो थोड़े से महारथी हैं, उन्हें बागडोर पकड़ाने में पार्टी के भीतर अत्यन्त घबराहट है।गडकरी की नैया भँवर में फँसने पर  रातोरात जब राजनाथ सिंह को इस दल का दुबारा अध्यक्ष घोषित किया गया होगा तो निर्णायक मंडल के ध्यान में राजनाथ सिंह की प्रबंधन दक्षता, सामूहिक नेतृत्व, संयोजन कुशलता एवं पूरे दल में इनकी स्वीकार्यता जैसी बातें अवश्य आई होगीं, परन्तु इनके अलावा उम्मीद की जाती है कि निर्णय करने वाले लोग राजनाथ सिंह का राजनैतिक क्रेडिट एकाउंट भी मिशन 2014 के सन्दर्भ में खँगाले होंगे, जैसे कि आम लोगो में इनका ब्यक्तिगत आकर्षण, समाज सेवा के क्षेत्र में इतिहास, चुनावसंचालन व विजय दिलाने की कोई पूर्व उपलब्धि, लोकप्रियता पर कोई सर्वे रिपोर्ट, गृह जनपद चंदौली एवं सुदूर राज्यों में इनकी लोकप्रियता इत्यादि। परन्तु उपर्युक्त मापदंडों पर आम आकलन में राजनाथ सिंह कहीं से भी सर्वोत्तम फिट केस नहीं लगते हैं। फिर भी इन मानकों से समझौता करते हुए भाजपा अध्यक्ष पद की आज की आवश्यक लम्बाई-चौड़ाई एवं ऊँचाई में इन्हें फिट कर दिया गया।यदि राजनाथ सिंह नए अवतार में सामने नहीं आते हैं तो ऐसे निर्णय से यथास्थिति बरकरार रखा जा सकता है, अप्रत्याशित उछाल नहीं पाया जा सकता है।
     सन् 2014 का मिशन राजनाथ सिंह से पूरा नहीं होगा यह पूरा होगा जनता के प्रबल समर्थन, महारथियों के  सही चयन एवं विलक्षण चुनाव संचालन से। आज कांग्रेस से वामदल तक, देश से विदेश तक, आम से खास  तक, शिक्षार्थी से शिक्षक तक तथा समाचार से मीडिया तक के लोग इस चर्चा में केन्द्रित हो गये हैं कि भारत का अगला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी या राहुल गाँधी। ये वह नरेन्द्र भाई मोदी हैं जो विकास के पर्याय एवं भारतीयता के प्रखर वक्ता के रूप में प्रतिष्ठित है। वह आज  सबसे लोकप्रिय नेता हैं साथही उनमे महारथियों के चयन का सफलतम अनुभव एवं चुनाव सञ्चालन की अद्भुत क्षमता है। फिर भी उन्हें उनके दल के लोग ही एक स्वर से भावी प्रधान मंत्री पद के दावेदार रूपमें स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं । राजग में आज कोई ऐसा दल नही है जो भाजपा के लिए नरेन्द्र मोदी को किनारे करने पर उनकी क्षतिपूर्ति कर सके। जदयू जैसे दल भाजपा से अलग हो बिहार के किस कोने में लग जायेगें ये वहाँ के आम लोग खूब जानते हैं। ऐसी स्थिति में भाजपा एवं इसके अध्यक्ष राजनाथ सिंह यदि मिशन 2014 को फतह करना चाहते हैं तो बिना विलम्ब के भाजपा की ओर से नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित कर देना चाहिए। फिर सभी शीर्ष नेताओ के साथ सलाह एवं स्वीकृति से सांसद प्रत्याशियों का चयन कर लेना चाहिए और जमीन पर उतरकर चुनाव अभियान में अभी से लग जाना चाहिए।चुनावी मुद्दे सर्वविदित हैं । प्रत्याशियों का आम विशेष होना और उसे आम लोगो तक जोड़ना जरूरी है।
     बीते कल में राजनाथ सिंह एक अति साधारण अध्यक्ष बन कर रह गये थे, इतिहास सफल होना नही सिखाता है परन्तु किसी भी सूरत में असफल नही होना अवश्य सिखाता है। समय है कि राजनाथ सिंह मिशन 2014 को मिशन मोदी घोषित करें एवं पूरा दल उनकी अगुआई में मोदी लाओ देश बचाओ अभियान में लग जाय। बड़ी संभावना होगी कि राजग के अन्य घटक दल व प्रांतीय छोटी-छोटी पार्टियाँ चुनाव बाद गुलदस्ते के साथ भाजपा खेमे में स्वयं पहुचें।  आम भारतवासी के समझ में अब जो प्रधान मंत्री पद की लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई है उसमे आज की परिस्थिति में भाजपा से केवल और केवल नरेन्द्र मोदी ही फिट बैठते हैं ।
        यदि नरेन्द्र भाई मोदी फिट हो जाते हैं तो राजनाथ सिंह भी हिट होगें और उन्हें इस विजय का सेहरा भी बधेंगा। दूसरी स्थिति में यदि राजनाथ सिंह प्रधानमंत्री के चयन की बात चुनाव की बाद की स्थिति पर छोड़ते हैं तो इसका शुद्ध घाटा भाजपा को होगा तथा शुद्ध मुनाफा तथाकथित महारथियों को कुर्सी-कुर्सी खेल खेलने में मिलेगा। ऐसे हालात में राजनाथ सिंह के योगदान का आकलन बहुत ही नकारात्मक हो सकता है।
     जहाँ तक आम आदमी की बात है कई सर्वे रिपोर्ट आई हैं और उनके रुझान का संकेत दी हैं। यदि भाजपा आतंरिक कलह से जन आकांक्षा पर खरी नही उतरती है तो खास पार्टी से आम पार्टी बन चुकी भाजपा के  बकवास को कोई नही सुनने वाला है, इस पार्टी को जल्दी ही बताना होगा कि वह नरेन्द्र भाई मोदी को 2014 के चुनाव से पहले प्रधानमंत्री पद का दावेदार धोषित करेगी या चुनाव के बाद जोड़ तोड़ के लिए इसी प्रकार टाल-मटोल करती रहेगी। सच पूछिए तो पार्टी अध्यक्ष में जनता की कोई रूचि नही है। रुचि है तो मिशन 2014 अर्थात मिशन मोदी में।
10 February 2013                                                 Mangal-Veena.Blogspot.com
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रविवार, 3 फ़रवरी 2013

भारतीय रेल कोहिनूरी ......

       एक यात्री को भारत में रेलयात्रा के दौरान हर कदम भारतीयता के दर्शन का अवसर मिलता है ।जब ट्रेन किसी नदीसेतु ,गुफा ,पहाड़ ,पठार ,जंगल ,घाटी या विशाल कृषि मैदान से गुजरती है तो देश की प्राकृतिक समृद्धि हर यात्री का मन मोह लेती है। स्टेशन दर स्टेशन विभिन्न वेशभूषा एवं बदलती बोली में संवाद करते लोग उतरते- चढ़ते चटक भारतीय संस्कृति का रंग विखेरते रहते हैं।भारतीय रेल का यह एक परिचय है ।परन्तु जब ब्यवस्था ,सुविधा एवं समयवद्धता से सामना होता है ;यात्री खीझ उठता है और फिर विदेशी रेल सेवाओं की शान में कुछ बोलकर अपनी भड़ास उतारता है ।
        सोचने की बात है कि ज्यादातर रेलयात्री; तीर्थयात्री ,देशाटनी,भ्रमणार्थी ,शिक्षार्थी ,पेशेवर ,ब्यवसायी ,रोगी एवं नौकरी से जुड़े लोग; होते हैं।रेल से इनकी अपेक्षा होती है -सुरक्षा,संरक्षा ,सफाई ,समयवद्धता ,साफसुथरा खानपान एवं मित्रवत ब्यवहार। इसके लिए इन्हें सममूल्य कीमत चुकाने में कोई संकोच नहीं हैं ।याद कीजिए एक यात्री अपनी जेब के अनुसार टिकट की श्रेणी बदल लेता है, लेकिन कम मूल्य पर अपने लिए टिकट नही माँगता है। यात्री को खाने की चीजों की कीमत कम करने की बहस करते नहीं देखा जाता, लेकिन खान-पान की गुणवत्ता पर हर यात्री कोसता रहता है। यात्री कभी  रेलवे से यह नहीं कहता कि गाड़ी तेज चला कर उसे जल्दी गन्तब्य तक पहुँचाओ, परन्तु वह इतना चाहता है कि कम से कम अपने सुनिश्चित समय पर ट्रेन अवश्य गन्तब्य पर पहुँचे। यात्री यह नहीं चाहता है कि यात्रा के दौरान उसे स्वास्थ्यलाभ  हो,परन्तु वह यह भी नहीं चाहता है कि उसे स्वास्थ्यहानि  जैसे बीमारी, खटमल, खसरा, चूहा प्रताड़न इत्यादि हो। आज के भारत का यात्री वर्ग आर्थिक रूप से इतना कमजोर नहीं है कि उसे खस्ताहाल रेल से डरावनी एवं तनावग्रस्त यात्रा करनी पड़े। फिर रेल उनकी माँग पर पर खरी क्यों नही उतर रही है? भारतीय रेल वाजिब किराया और वाजिब सेवा पर काम क्यों नही कर पाती है? यदि रेल सुनिश्चित करे कि  उसकी आमदनी का तर्कसंगत खर्च हो रहा है और वह सेवा से कम है तो यात्री को बढ़ा किराया देने में कोई विरोध  नहीं है। हाँ उपभोक्ता के रूप में वह इतना तो चाहेगा कि सेवा केलिए (वादा)कथनी और करनी में अंतर न हो।
        आज अहं सवाल एक दो या दर्जन भर ट्रेनों को 200 कि.मी./घंटा रफ्तार देने, कुछ विश्व स्तरीय स्टेशन बनाने अथवा ऐसे कोरिडोर का विकास  नहीं है, बल्कि चाहत है कि आज तक किये गये वादे को पहले जमीन पर उतरा जाय। आज भी भारतीय रेल की औसत गति पचास  कि.मी./घंटा से कम है।  लेट लतीफी की बात तो घंटो से आगे अब आधे दिन, पौने दिन या पूरे दिन में होने लगी है। स्टेशनों का तो कहना ही क्या - उजड़े सरायों से बुरे हाल हैं। क्या रेल  इतनी भी गारंटी नहीं दे सकती है कि वह अपनी समयसारिणी केलिए प्रतिबद्ध है और निश्चित समय पर गन्तब्य तक न पहुँचने  पर वह देर के लिए यात्री को किराये का कुछ प्रतिशत वापस करेगी ? क्या रेल अपने यात्रियों को सादा - स्वच्छ भोजन व  जलपान उचित मूल्य पर देने की प्रतिज्ञा पूरी नहीं कर सकती है? ये समस्याएँ कोई क्रायोजनिक इंजन बनाने जैसी तकनीकी तो नहीं है कि रेल समाधान में असहाय है।
        जब कभी भारत सरकार  के नवरत्न  कम्पनियों जैसे भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड, इंडियन आयल, नैवेली लिग्नाइट इत्यादि की बात होती है तो सोच उभरती है कि भारतीय रेल भारतीय कोहिनूरी रेल क्यों नही हो सकती है । ऐसा क्यों नहीं हो सकता कि हर भारतीय की  ललक हो  कि  चलो रेल यात्रा का आनन्द उठायें और फिर तरो ताजा  हो काम पर लग जांय। सभी अनुभव करते हैं कि जब हम साइकिल, रिक्शा या टैक्सी से चलते हैं तो स्थानीयता का अनुभव करते है, बसों से चलते हैं तो प्रान्तीयता और जब रेल से यात्रा करते हैं  तो हमें भारतीयता की अनन्दानुभूति होती है। हो भी क्यों न- भारतीय रेल की परम्परा डेढ़ सौ वर्षो से अधिक पुरानी हो रही है और इसमे आवश्यक आवश्यकता से मनोरंजक आवश्यकता पूर्ति तक सारे संसाधन उपलब्ध हैं । ऐसे में हमारे देश के यात्री को न फ्रांस की रेल चाहिए न चीन की, उसे तो सम्पूर्ण अर्थो में भारतीय रेल चाहिए जो आधुनिक भारत में कोहिनूर की तरह चमकती दमकती हो।
        हर कमी को दूर करते हुए भारत सरकार और रेलवे बोर्ड को चाहिए कि वे भारतीय रेल को अपना यू यसपी(USP) बनायें । इसके लिए आज नवाचारी सोच एवं प्लानिंग केसाथ क्रियान्वयन समरूपता की सर्वोपरि आवश्यकता है । भारतीय रेल किसी राजनैतिक दल को खुश करने केलिए गिफ्ट पैक नही है, बल्कि  यह यात्रियों को खुश करने के लिए इस देश की सबसे बड़ी यातायात ब्यवस्था अर्थात भारतीय रेल सेवा है।ट्रेनों को निर्धारित स्पीड पर तथा रेलप्रबंधन सुधार को सुपर स्पीड में चलाने की आवश्यकता है। यात्री चाहता है कि उसे वाजिब किराये पर वाजिब सेवा मिले। उसे भाड़े में राहत नहीं , सेवा में सुधार चाहिए।। रेल बजट प्रस्ताव का समय निकट है । भारत सरकार व रेलवे बोर्ड को ईमानदार प्रस्ताव के साथ देशवाशियो के सामने आना चाहिए कि वे भारतीय रेल को कोहिनूरी भारतीय रेल बनाने केलिए क्या करने जा रहे हैं।यदि सरकार कुछ बड़ा सपना देखे तो हम भरतवासी कोहिनूरी सपने को सच करने का सामर्थ्य भी रखते हैं ।  
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एक यात्रा संस्मरण 
        दिनांक 27 अप्रैल 2012 को मुझे संघमित्रा की वातानुकूलित द्वितीय श्रेणी शयनयान में नागपुर से वाराणसी की यात्रा का अवसर मिला। जब भी इस यात्रा की याद आती है मै सिहर उठता हूँ। गंदे ट्वायलेट, गंदे डिब्बे, बदबूदार कम्बल और घटिया खाना तो रेल यात्रा के दौरान आदत में शामिल हो गये है परन्तु रात होते ही खटमलों और चूहों का ऐसा आक्रमण पूरे डिब्बे के यात्रियों पर हुआ कि हाहाकार मच गया। आगे पीछे सभी लोग उठकर बैठ गये। कोई बेडरोल फेक रहा था तो कोई हाथ, जूते या चप्पल से खटमल मार रहा था। कोई बर्थ के नीचे झोले चेक कर रहा था कि कहीं चूहे काट तो नही रहे हैं। चूहे उत्पात एवं खटमल आतंक  से पूरे बोगी में भगदड़ मच रही थी। खटमल पहनावे के अन्दर तक जा घुसे थे। भारतीय रेल का एक भयावह सच सामने था। किसी तरह डिब्बे के अन्दर टहलते, खुजलाते, खटमल मारते सबकी  रात बीती।
        28 अप्रैल 2012 को सुबह जब मै मुगलसराय स्टेशन पर उतरा तो लगा कि जेल से सश्रम सजा काट कर छूटा हूँ। घर पहुँच कर आवाज दिया कि  मुझे घर के बाहर ही पानी, साबुन और कपड़े दे दो, ताकि कपड़े धो कर नहाने के बाद घर में अन्दर आ सकूँ । श्रीमती जी ने पूछा- क्या हुआ? फिर मामला समझ कर उन्होंने तत्काल आवाज दिया कि रास्ते के सारे कपड़े धूप में ही छोड़ दीजिये नही तो घर में खटमलो का अभयारण्य हो जायेगा।
        यह है हमारी भारतीय रेल एवं इसकी प्रबंधन ब्यवस्था की एक झलक ।जय हो ....
3 February  2013                                                        Mangal-Veena.Blogspot.com
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