रविवार, 29 जुलाई 2012

कुछ ख़री - खोटी बातें


दादा भारत के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए , उन्हें हम सर्वश्रेष्ठता के लिए बधाई देते हैं । बिसात कैसी भी बिछाई गयी हो, दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश का सबसे बड़ा चुनाव जीतना उतना ही बड़ा मायने भी रखता है । दिल्ली में अनशन पर बैठी अन्ना टीम ने पीछे मंच पर पंद्रह भ्रष्ट केंद्रीय मंत्रियो की फोटो टांग रखी थी । दादा ने राष्ट्रपति पद का शपथ ग्रहण किया - टीम को बात समझ में आयी और दादा की फोटो को किसी आवरण से ढक दिया । दादा शिष्टाचार युक्त हो गए। अन्ना टीम की ओर से आदर्श आचरण का यह नमूना, अधूरा ही सही, सराहनीय रहा । अन्ना समर्थको और सरकार को राहत मिलनी चाहिए को उनका प्रयास रंग ला रहा है । भ्रष्टाचार पंद्रह से चौदह हो गया, आगे भी घटता ही रहेगा  । 

जेहन में बात आई की गणित के कुछ सिद्धांत सीधे  एवं' उलटे दोनों प्रकार सत्य सिद्ध होते हैं जैसे दोनों बिन्दुओं को न्यूनतम दूरी से मिलाने वाली रेखा को सीधी  रेखा कहते हैं । इसके उलट सीधी रेखा से जुडी दो बिन्दुओं की उस रेखा पर दूरी न्यूनतम होती है अर्थात न्यूनतम दूरी से सीधी रेखा और सीधी रेखा से न्यूनतम दूरी । यह सिद्धांत देश काल से परे और प्रश्नातीत है । इसे अन्ना की टीम भी झुठला नहीं सकती । चूँकि  कोई भ्रष्ट नागरिक देश का राष्ट्रपति नहीं हो सकता इसलिए मानना ही होगा उस पद पर बैठा व्यक्ति भ्रष्ट नहीं है । फिर हमारे महामहिम का शिष्ट , सदगुणी , ईमानदार एवं शानदार होना सत्य ही सत्य है । आगे देखना होगा की समान गुणधर्मिता के  सिद्धांत शेष माननीयों पर कब और कैसे लागू होते हैं । जनता समय समय पर भौचक होती रहेगी । 

इधर मीडिया वाले उछाल  रहें हैं की अन्ना आन्दोलन की धार कुंद हो रही है क्योंकि भीड़ नहीं जुट रही है । सत्ताधारियों की बाछें खिल रहीं हैं की आन्दोलन दम तोड़ रहा है और उन्हें उनका  भविष्य फिर उज्ज्वल दिखने लगा है । विरोधी भी पूरे देश में, कहीं तुम - कहीं हम, खेल रहें हैं । उधर बाबा रामदेव की टीम पर सरकारी ब्रह्मास्त्र का प्रहार हो चुका  है । इन सबके बावजूद आम जनता एवं युवाओं का सच यह है उन्हें अन्ना हजारे एवं रामदेव में भारत का सुनहरा भविष्य दिखने लगा है । सभी लोग गौर से इन शांतिपूर्ण आंदोलनों पर माननीयों की प्रतिक्रिया का आकलन कर रहें हैं और उचित समय एवं मंच की प्रतीक्षा में हैं । किसी को भी नहीं भूलना चाहिए की भीड़ जुटाना अब कोई उद्देश्य नहीं है । उद्देश्य तो विदेशों से काला धन भारत में लाना और भारत को भ्रष्टाचार मुक्त कराना है ।

भीड़ का यदि पूर्वावलोकन करें तो पहली बार जब  अन्ना साहब अनशन पर बैठे , देश का आम आदमी सड़क पर उतर आया कि  अब हम जन लोकपाल ले कर लौटेंगे । आन्दोलन निर्णायक होने से पहले अन्ना टीम आश्वासन के झांसे में आ गयी । आम जनता हाथ मलते रह गयी ।  मुंबई में फिर  शीतकाल में अनशन ठान लिए । कब क्या और कैसे करना है - इसपर कोई स्पष्ट पुकार नहीं लगाई गयी । अब चतुर्मासा में टीम फिर अनशन पर आ गयी । अरविंद , मनीष  और गोपाल बैठे ही थे ,  वयोवृद्ध अन्ना भी ठान लिये । मुद्दा में जुड़ाव आया है की पंद्रह भ्रष्ट केंद्रीय मंत्रियों के रहते जन लोकपाल बिल पारित नहीं हो पा रहा है - यह जन जन को बताना है । अरे भाई ! हम भारतीय प्राचीन काल से मानते रहें हैं की चतुर्मासा में एक जगह ठहर कर समय बिता लेना चाहिए । ऐसे में लोग बरसात एवं वायरल झेलने से बच रहें हैं  । फिर भी यदि बाबा या अन्ना आवाज़ देते हैं तो भारत का हर त्रस्त नागरिक उनके साथ खड़ा मिलेगा । आवश्यकता है तो स्पष्ट निर्देश एवं सुगठित पुकार की । 

दूसरी ओर सरकार भी प्रयासरत है कि  एक सरकारी लोकपाल बिल पास हो जाए और काले धन पर हां-हूं होता रहे तो इन शोर- शराबा करने वालों से जान बचे । साँप मर जाए और लाठी भी न टूटे । परन्तु हो कैसे -- इसी  में  सारे  दल एवं नेता डूब-उतरा रहें हैं । भला ऐसा बिल क्यों पास करें जिसमे उनका कोई भविष्य नहीं । यदि सीबीआई जैसा ब्रह्मास्त्र पास में न हो तो सरकार की हनक कैसी । उससे बड़ी बात - यदि करोड़ों  में काली कमाई नहीं तो नेतागिरी क्यों । फिर काली कमाई विदेश में छिपाने की सुविधा भी नहीं तो माननीय कैसा।ये यक्ष प्रश्न बिल पास करने वालों को खाए जा रहें हैं ।

अंततः न सुनने वालो को अब कुछ खरी खोटी बातें सुना देनी चाहिए कि  नई पीढ़ी भ्रष्टाचार से नफरत करने लगी है और उसकी समझ भी बहुत कुशाग्र है  । वे  यह सुनकर बहुत गुनते हैं कि  लोक तंत्र में भी नेताओं के पास राज हैं और उन्हें छिपाने की उनमे प्रतिबद्धता भी । वे यह सुनकर भी चौंक जातें हैं -- जब कोई नेता - अभिनेता या कोई क्रिकेट सितारा कहता है कि  उसने अपना जीवन देश की सेवा में बिताया है । वे खूब समझते हैं कि  देश की सेवा हो रही है या देश से सेवा ली जा रही है । वे सर्वाधिक अचंभित यह जानकर हैं कि भारत का विदेश में जमा धन वापस लाने वाले  कानून और लोक पाल  बिल के विरोधी कौन और क्यों हैं । रात दिन अपने श्रम से भारत को विश्व शिखर पर पहुँचाने को उद्यत नयी पीढ़ी भारत को चीन या विश्व के किसी देश से पीछे देखने को राज़ी नहीं है । उनका स्पष्ट सन्देश है - 
                  हमें भ्रष्टाचार मिटाना है , कला धन वापस लाना है।
                  भावी इतिहास हमारा है , भारत को आगे जाना है ।।

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अन्ततः --
ज़रा सोचिये-- प्रधानमंत्री दंगाग्रस्त असाम  के दौरे पर बोले की यह दंगा भारत के चेहरे पर कलंक है परन्तु उनके कपड़े या चेहरे पर कलंक का कोई धब्बा नहीं दिखाई दिया |
दिनाँक 29.7.2012                                             mangal-veena.blogspot.com
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रविवार, 15 जुलाई 2012

गुवाहाटी काण्ड या ईश्वर के अवतार का समय

गुवहाटी में बीते सोमवार की रात जीएस रोड पर एक लड़की के साथ कुछ कुसंस्कारी लोगों ने अभद्र, घृणित, एवं हमारे सभ्य समाज में वर्जित कुकृत्य किया। यूट्यूब ने जब से विडिओक्लिप द्वारा इस घटना को दुनियां के संज्ञान में लाया है और आसाम पब्लिक वर्क्स नाम की एक संस्था ने बिलबोर्ड के माध्यम से लोगो में हिदायत जारी किया है, चारों तरफ हंगामा हो गया है। क्योंकि हमारा भारतीय समाज इस घटना से पूरी दुनियां में कलंकित हुआ है, अब तक कार्यवाही, रिपोर्टिंग और प्रतिक्रिया का दौर दौड़ पड़ा है। स्थानीय पुलिस अधिकारी कहते हैं कि वे एटीएम मशीन नही हैं कि अपराध का विवरण डाला और अपराधी हाथ में। महिला आयोग की सदस्याएं अपनी पूरी प्रतिक्रियां उड़ेल रही हैं कि सम्बन्धित प्रशासन से रिपोर्ट माँगी है, दौरा करेंगे, दण्ड सुनिश्चित करेंगे इत्यादि। केंद्र सरकार के मंत्रीगण बहुत गंभीर हुए हैं और राज्य सरकार को कानून ब्यवस्था की याद दिला रहे है। राज्य सरकार भी गंभीर हुई है। धर-पकड़ तेज होंगी और सरकार  एक समस्याटालू आयोग का गठन भी कर सकती है। क्रमशः सारी औपचारिकतायें पूरी होंगी और समय के साथ मामला नेपथ्य में चला जायेगा। अंत में शर्मिंदगी,चिंता, पश्चाताप, खेद, नियति एवं अवसाद उस पीड़ित लड़की और उसके घरवालों के शेष जीवन को अभिशाप बनकर घेर लेंगे जिससे वे लोंग इस जन्म में शायद ही उबर सकें। कहानी फिर कहीं किसी और रूप में दोहराई जाती रहेंगी।
परन्तु हम साधारण लोग इस अभूतपूर्व दुर्घटना से बेचैन हैं।  हम भरतवंशियों को क्या हो गया है कि चालीस लोग एक साथ एक कुन्ठा से प्ररित हो एक लड़की की इज्जत लूटने के लिए उसपर टूट पड़े। और तो और ऐसी निंदनीय घटना उनके क्षेत्र में घटने पर प्रतिक्रिया देते समय स्थानीय पुलिस अधिकारियों के चेहरे पर ग्लानि, खेद एवं पश्चाताप का भाव नहीं था। समाज को शर्मसार करने वाली घटना कहते समय मीडिया से रिपोर्टिंग करने वाले चेहरे शर्मसार होते नही दिख पा रहे हैं। न उनके पास भर्त्सना के कठोर शब्द हैं न इस लड़ाई में कूदने का अपना कोई तरीका। मीडिया के माध्यम से घटना की निंदा करने वालोँ की मुखमुद्रा भी करुण से रौद्र रस की ओर बढ़ती नही दिख रही है। कोई ऐसा नायक नही है जो कह सके कि अबऔर गुवहाटी  बर्दाश्त नहीं। घटना की वीडियोग्राफी करते समय रिपोर्टर को भी यह याद नही आया कि रिपोर्टिंग से पहले मानव की मानवता के प्रति सर्वोपरि ड्यूटी बनती है।  इस बीच मनोरंजन जगत एवं सामाजिक सरोकारियों से कुछ बहुत ही मार्मिक,सार्थक,सापेक्ष एवं संवेदनशील टिप्पड़ियां अवश्य आई हैं जो हम सभी को आईना दिखाने के लिए पर्याप्त हैं। क्या आज चालीस दु:शासनों द्वारा द्रौपदी के चीर हरण को हस्तिनापुर ऐसे ही देखती रहेगी। कहाँ गयी संवेदना। बस बहुत हो चुका। इस घटना पर हर भारतीय को लज्जित होना चाहिये और इसका कठोरतम से भी कठोर प्रतिकार होना चाहिए।
दूसरी ओर मेरा तो गाँधीवादी आग्रह है कि जिन भारीभरकम लोगो ने प्रतिक्रिया दिया है, कार्यवाही का भरोसा दिया है या कार्यवाही करने के लिए जिम्मेदार हैं - उनमे से कोई एक, अनेक या सबलोगों का एकगिल्ड आदर्श भारतीय बने  और उस लड़की एवं उसके परिवार को शतप्रतिशत अंगीकार(Adopt) कर ले। उनकी आर्थिक, सामाजिक, संस्कृतिक, कानूनी - सभी तरह की सुरक्षा की जिम्मेदारी वे लोंग उठाएँ और उन्हें न्याय दिलायें।  अस्वस्थ चल रहे अभिनेता राजेश खन्ना द्वारा अभिनीत हिंदी सिनेमा "दुश्मन" इस सन्दर्भ में अनुकरणीय उदाहरण हो सकता है। अच्छा होगा की जब यह पीड़ित लड़की बालिग हो जाय तो इसे महिला आयोग का सदस्या या अध्यक्षा बनाया जाय ताकि ऐसी परिस्थिति में उसकी सटीक प्रतिक्रिया हो सके।
न जाने क्यों यह घटना बार बार सोचने की ज़िद कर रही है कि एक, दो, पांच नही बल्कि बीस या उससे अधिक चालीस लोग एक साथ एक कुविचार से कैसे प्रेरित हो गये। उनमे से किसी की मानवता ने उसे विरोध का स्वर क्यों नही दिया?  कहीं ऐसा तो नही कि  कुछ लोगों ने बाकी को अंधेरे में रखते हुए ऐसा कुकृत्य रच डाला। आश्चर्य आकाशीय बिजली की भांति चौधियां रही है। ऐसी क्या खराबी हमारे लोकतंत्र में आ गई कि  इस तरह की प्रवित्तियाँ समाज में तेजी से उभर रहीं हैं और रिकार्ड दर रिकार्ड बना रही है।  जिज्ञासा को शांत  के लिए सरकार से निवेदन है कि वह गैर सरकारी विशेषज्ञों की एक समिति बनाये जो सामाजिक अध्ययन एवं विश्लेषण कर बताये कि हममे कहाँ और किस प्रकार के सुधार की आवश्यकता है। भय है कि यदि लोग अपनी सामाजिक संरचना भूल जायें और बड़ी संख्या में शासन और ब्यवस्था से बेख़ौफ़ हो जायें तो भारतीयता को कौन बचाएगा ? क्या भारत भूमि पर ईश्वर के अवतार का समय सन्निकट है?
अंततः 
जब पूरी दुनियाँ की निगाहें लन्दन में आयोजित हो रही ओलम्पिक खेलो पर टिकी हैं और किस देश के युवक-युवतियां कितने मेडल बटोर सकेंगे-पर बहस हो रही है, हम देशवासी  कुकृत्यों पर बहस में उलझे हैं।

शुक्रवार, 6 जुलाई 2012

सारी बीच नारी

आज भारत के शहरों एवं गाँवों में जिनके पास खाली समय है ज्यादा से ज्यादा टी.वी. देखने में ब्यतीत करते हैं। कारण  भी सीधा-सपाट है कि  समाचार, मनोरंजन, खेल-कूद, ब्यवसाय एवं भक्तिजगत की जानकारी सिंगल विंडो सिस्टम (एकल खिड़की ब्यवस्था ) से होती रहती है बशर्ते बिजली आती हो और चैनेल वाले विज्ञापन प्रसारण से खाली हों। आज से साढ़े पाँच हज़ार वर्ष पहले मिस्टर संजय के पास आँखो देखा हाल( टी.वी ) प्रसारण का लाइसेंस था और वे महाराज धृतराष्ट्र के लिए प्रसारण का कार्य करते थे । क्यों कि  महाराज अंधे थे, वे महाराज के सारथी का दायित्व भी संभालते थे । संजय ने महाभारत का आँखों देखा हाल इतना सटीक प्रसारित किया था कि पूरी दुनिया आज भी पवित्र श्री मदभगवदगीता को सर्वश्रेष्ठ जीवन दर्शन मानती है । इस प्रसारण की मुख्य बात यह थी कि इसमें ब्रेक या अल्पविराम नही था और विज्ञापन का भी कहीं उल्लेख नहीं मिलता है । तब से हजारों वर्ष निकल चुके हैं और कलयुग अपनी पराकाष्ठा पर है । जमाना अपभ्रंश का हो चुका है अतः टी.वी  प्रसारण शुद्ध होने की  अपेक्षा करना भी बेमानी है । प्रतिद्वन्दिता, अस्तित्व एवं ब्यवसाय हित के लिए इलेक्ट्रोनिक मीडिया के प्रसारण में विज्ञापन दूध के साथ पानी की भूमिका में आ गये हैं । जिसको जितना पानी मिल रहा है, मिला रहा है। बहुत सारे दर्शक रिमोट के बटन दबाते-दबाते एलर्जी के शिकार हो रहे हैं या असहाय होकर समाचार या मनोरंजन की चाह में विज्ञापन झेलते रहते हैं  ।
मैं भी समाचार चैनलों का विज्ञापन झेलते-झेलते कभी इतना थक जाता हूँ कि ऐसा लगता है मानो मैं चैनल ही विज्ञापन के लिए लगा रखा हूँ । फिर जब समाचार की झलक मिलती है तो त्वरित प्रतिक्रिया होती है कि  यह क्या आने लगा । हाल ही में जब यह समाचार पढा,देखा और सुना कि सरकार के प्रयास से चैनलों पर विज्ञापन के समय सीमित किये जायेंगे-अच्छा लगा । परन्तु कैसे? तत्काल समझ न सका । थोड़ी देर चिंतन-मनन के बाद बात समझ में आई कि  शायद अब टी.वी. वाले समाचार,मनोरंजन या अन्य कार्यक्रमों  में  विज्ञापन दिखायेंगे न कि विज्ञापन में ये कार्यक्रम। परन्तु यह संभव  कैसे होगा? आज सभी प्रसारण विज्ञापन प्रवृत्ति से संक्रमित है । विज्ञापन से भी प्रसारण के विषय बन रहे हैं और विषयबस्तु विज्ञापन के लिए प्रसारित किये जा रहे है  ।  कौन  करेगा नीर-छीर या  सारी-नारी विभेद? संशय ही संशय है ।
--------सारी बीच  नारी  है  कि नारी बीच सारी है।
--------सारी की ही नारी है,या नारी की ही सारी है।
ज्यादा माथा पच्ची न करते हुए विज्ञापन का समय कम करने के लिए मेरा सुझाव है कि विज्ञापनदाताओं एव चैनेल चलाने वालों को कीमत बढाओ-कीमत घटाओ क्लब ज्योइन कर लेना चाहिए । ऐसा करने पर चैनेल वाले विज्ञापन का समय  घटाकर विज्ञापन दरें बढ़ा सकते है, फिर कुछ प्रतिशत छुट देकर विज्ञापन दाताओं  को खुश कर सकते है । इसी प्रकार जब कंपनियाँ एक बार विज्ञापन पर कुछ प्रतिशत खर्च बढ़ाएंगी तो उपभोक्ता  वस्तुएं महँगी होंगी । आम जनता कराहेंगी तो कम्पनियाँ कुछ से कम प्रतिशत कटौती कर उनको रहत दे देंगी, फिर जनता कहेंगी की कम्पनी के जय हों । ज्यादा जानकारी कीमत बढाओ-कीमत घटाओ क्लब के सीनियर सदस्यों जैसे इंडियन आयल, भारतीय रेल, बिजली, पानी, डायरेक्ट-इनडायरेक्ट टैक्स, शिक्षा कर,  सेवा कर विभागों से ली जा सकती है । जनता को भी कमर टूटने एवं कराहने में विविधता का अनुभव होगा । हमे चरितार्थ भी तो करना है कि मारो कहीं-लगे वहीँ । लोकतंत्र में जनता का पैसा, जनता के द्वारा,जनता के नाम पर संग्रह करना ही चाहिए ताकि नंगी भूखी आवाम कृतज्ञता भरी नज़रों से जय-जयकार करती रहे ।
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अंततः 
 ------------ आषाढ़ का महीना बीत गया। किसी तरह आज उत्तर भारत में मानसून आया और आकाश में मेघदूत दिखे।
------------ कालिदास द्वारा छठी शताब्ती में रचित मेघदूत में वर्णन है कि षाढ़ माह के पहले दिन ही हिमालय से उज्जैयनी तक, अवनी से अम्बर तक मेघदूत सक्रिय हो जाते थे और बरसात के साथ काब्यकल्पना में नायक- नायिका के सन्देश भी बड़े मनोहारी ढंग से उनतक पहुँचाया करते थे । संस्कृत भाषा कालिदास जैसे कवियों की  कल्पना के उडान को लालित्यपूर्ण एवं मनोहारी अभिब्यक्ति प्रदान किया करती थी ।
------------ अब न  छठी शताब्दी का प्राकृतिक सौन्दर्य रहा, न कालिदास जैसा रचनाधर्मी।आइए ;चलें- इस विलंबित मेघदूत का हार्दिक स्वागत करें।
दिनाँक 6.7.2012                                         mangal-veena.blogspot.com
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मंगलवार, 3 जुलाई 2012

तस्मै श्री गुरवे नमः

-------------------------------------  गुरु पूर्णिमा पर गुरु को समर्पित एक लेख -----------------                                                  -------------------- भारतीय संस्कृति की गुरु शिष्य परंपरा में गुरुपूर्णिमा गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने ,  उन्हें सादर स्मरण करने ,उनके चरणों में सविनय शीश झुकाने और अपनी श्रद्धारूपी पुष्पावलि अर्पित करने का पर्व है।भारत में प्रति विक्रमी वर्ष की आषाढ़ी पूर्णिमा को यह पर्व मनाया जाता है।  याद करें तो  गुरु   को  आचार्य,गुरु,अध्यापक,मास्टर,टीचर,फादर,उस्ताद,मौलवी,पंडित,भंते और न जाने किन-किन श्रेष्ठ नामों से विभूषित किया गया है और वह हर रूप में मानवता का सबसे पथ प्रदर्शक, सद्विचारो का वितरक, सत्य का  प्रवक्ता एवं रहस्य का समर्थ वक्ता रहा है। हर ब्यक्ति के जीवन में गुरु की कोई न कोई अनुकरणीय भूमिका किसी न किसी रूप में होती है जिससे उपकृत हो वह श्रद्धा से गुरु के सामने नतमस्तक होता है।पर्याय में जाएँ तो गुरु का सबसे प्राचीन अलंकरण 'गुरु' शब्द ही है जिसका उल्लेख वेदों एवं पुराणों मे बहुतायत से हुआ है । ध्यान दें तो यह शब्द नहीं बल्कि गुरु के व्यक्तित्व एवं ओज का सम्पूर्ण प्रतिनिधि है । वस्तुतः, गुरु की परिभाषा भी  'गुरु' शब्द से ही बनती है अर्थात, जो हमें अन्धकार(अज्ञान ) से प्रकाश (ज्ञान) की ओर उन्मुख करे, वह गुरु है । बाद के क्रम में उपजे सभी नामकरण समय एवं आवश्यकता के अनुरूप पर्याय बनते गये।

-----------------------------------  हमारे विचारकों ,कवि और लेखकों ने समय -समय पर गुरु के विषय पर बहुत ही मानक मन्तब्य दिए हैं। यथा - निर्गुणियाँ कबीर कहते हैं कि सद्गुरू की महिमा अनंत है। उन्होंने हम पर अनंत उपकार किये हैं । आँखों में ऐसी अनंत ज्योति उत्पन्न कर दी कि मैंने अनंत (निर्गुण ब्रहम ) को देख लिया । तभी तो ऐसे गुरु को पाने के लिए कबीर साहब काशी नगरी में  ब्रह्म मुहूर्त के समय गंगा घाट की सीढियों पर लेट गये ताकि गुरु का चरण उन पर पड़ जाये । फिर इसी उपकार से ऋणी कबीर के समक्ष जब गुरु और गोविन्द एक साथ आ जाते हैं, तो पहले गुरु के चरणों में पड़ते हैं,फिर गोविन्दमय  हो जाते हैं ।कारण बताते हैं कि गुरु की ही बलिहारी है; जिसने गोविन्द से साक्षात्कार कराया ।पद्मावत में मलिक मुहम्मद जायसी कहते हैं कि इस संसार में बिना गुरु के निर्गुण ब्रह्म को नहीं पाया जा सकता । जायसी जैसे पंथी को पंथ बताने वाला एक तोता ही था --
----------------------------गुरु सुवा जेहि पंथ देखावा ।
----------------------------बिन गुरु जगत को निर्गुण पावा ।
-------------------------------------- गोस्वामी जी तो सद्गुरु के समक्ष ऐसे नतमस्तक होते हैं कि चरणों के ऊपर उनकी आँखें उठती ही नहीं । वे भगवान राम के विमल यश का वर्णन करने के लिए अपने मन रुपी दर्पण की शुचिता श्री गुरु चरणों की धूल से सुनिश्चित करते हैं और कहते हैं :- 
----------------------------श्री गुरु चरण सरोज-रज, निज मन मुकुर सुधारि।
----------------------------बरनउं रघुवर विमल यश, जो दायक फल चारि 
इनके अनुसार मानव के चार परम उद्द्येश्यों का मार्ग श्री गुरु चरणों से होकर ही निकलता है। अपनी कालजयी रामचरित मानस की रचना करते समय वे शंकर रूप श्री गुरु की प्रार्थना निम्न पंक्तियों में करते हैं:-
-----------------------------बंदउं गुरु पद कंज, कृपा सिन्धु नररूप हरि ।
-----------------------------महामोह तमपुन्ज, जासु वचन रविकर निकर ।।
इस महाकाव्य में तो गुरु के ब्यक्तित्व का विविध रूपों में निरूपण हुआ है और इसकी अप्रतिम छटा भगवान् शंकर से काकभुसुंडि तक बिखरी पड़ी है।
--------------------------------------- वर्तमान में आतें हैं तो प्रख्यात दार्शनिक डॉ. राधाकृष्णन  गुरु  को आचार्य रूप में देखना चाहते हैं, ताकि उनके आचरण की अनुकरणीयता हो । पूज्य जैन मुनि तुलसी का कहना है कि शिक्षक गुरु बने ; जबकि पंडित मालवीय ने शिक्षक को पिता रूप में देखना चाहा। निष्कर्षतः सभी पर्याय व विशेषण गुरु में ही आकर समाहित हो जाती हैं। उनकी अनुभूति एवं उपस्थिति भी यत्र-तत्र सर्वत्र है । आज भी हम मंदिर जाएँ और हरिचर्चा सुनें; गुरुद्वारा जाएँ और गुरुबानी सुने ; मस्जिद जाएँ और क़ुरान-शरीफ़ की आयतें सुनें ;गिरिजाघर जाएँ जहाँ बाइबिल की पवित्र बातें हों ; पाठशाला जाएँ जहाँ बच्चे संस्कार के सांचे में ढल रहे हों या  कारखानों में चलते बड़े-बड़े संयंत्रो का सञ्चालन रहस्य देंखे । सबके सूत्रधार तो गुरु ही दिखते हैं । फिर ऐसे सूत्रधार  की खोज किसे नही होंगी ? निश्चय  ही वह सौभाग्यशाली है जिसे गुरु सद्गुरू रूप में मिलें और इसके विपरीत उस शिष्य के कर्म एवं संस्कार में कोई खोट है जिन्हे जीवन में एक अक्षम गुरु मिले क्योकि एक अंधा (अज्ञानी ) गुरु दूसरे अंधा (अज्ञानी) को भवकूप में गिरने से कैसे बचा सकता है ?
----------------------------------------शंकराचार्य प्रश्नोत्तरी में तो प्रश्न आया है कि  इस संसार में दुर्लभ क्या है। उत्तर है कि  इस संसार में सद्गुरु का मिलना दुर्लभ है क्योंकि जिसका मस्तक श्रुति हो, चेहरा स्मृति हो, दोनों हाथ नीति और रीति के  पर्याय हों, दोनों पांव गति एवं स्थिति स्वरुप हों, ह्रदय प्रेम या प्रीति का पर्याय हो अर्थात संत हो और जिसकी आत्मा ज्योति हो, वह गुरु है । इसमें भी गुरु का संत-ह्रदय होना एक बड़ा ही पारदर्शी लक्षण है, जिसका निरूपण गोस्वामी जी ने कुछ ऐसे किया है -
----------------------संत ह्रदय नवनीत समाना, कहा कबिन पर कहइ न जाना ।
----------------------निज परिताप द्रवहि नवनीता, पर दुःख-दुखी सो संत पुनीता ।
ऐसी अप्रतिम दयालुता तो एक सद्गुरु में ही हो सकती है । फिर इन सन्निवेशो से निर्मित गुरु का ब्यक्तित्व कृपा का सागर एवं साक्षात् प्रभु का रूप ही है । श्री मद्भगवदगीता में जब अर्जुन को श्री कृष्ण का विराटरूप  दर्शन मिलता है तो वे स्तुति करते हुए कहते हैं, "त्वमस्य पूज्यश्च गुरुर्गरीयान" (आप ही गुरुओं के गुरु हो ) । यहाँ ईश्वर की स्वीकृति हो जाती है कि स्वयं ईश्वर भी गुरु रूप ही हैं ।और अब इससे अधिक महिमा का क्या स्मरण किया जाय कि गुरु ही ,ब्रह्मा ,विष्णु , महेश्वर और साक्षात परब्रह्म हैं ।   
------------------------------------------अथ जिस सत्य के कारण जगत सत्य दिखाई देता है, जिसकी सत्ता से जगत की सत्ता प्रकाशित होती है, जिसके आनंद से जगत में आनंद फैलता है, उस सच्चिदानंद सद्गुरु को  नमन है और प्रार्थना है कि वे सद्गुरु समाज को सत्य , प्रकाश एवँ विकास की ओर उन्मुख करें।  
-----------यत्सत्येन जगत्सत्यम, तत्प्रकाशेन भाति तत ।
----------यदानन्देन नन्दन्ति, तस्मै श्री गुरुवे नमः ।। पञ्चदेवानाम परिक्रमा (3)----मंगल वीणा 
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वाराणसी ;;गुरूपूर्णिमा  संवत 2069                        mangal -veena . blogspot .com 
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