शुक्रवार, 24 अगस्त 2012

बंशीधर ! विजयी भव ।


                                 जिस समाज में बहनों की शादी, गाँव में पिता का दबदबा, कलवार और कसाई पर रौब, माता की रामेश्वर एवं जगन्नाथ यात्रा सब घूस की कमाई पर टिकी हो एवं  पंडित अलोपीदीन की  जाँची -परखी मान्यता हो कि न्याय और नीति लक्ष्मी के खिलौने हैं ; वहां एक ईमानदार बंशीधर का हश्र वही हो सकता है जो मुन्शी प्रेमचंद ने "नमक का दरोगा " कहानी में उकेरा है। सत्य, निष्ठा एवं ईमानदारी का निरा अकेला प्रतिनिधि बंशीधर तभी प्रासंगिक होता है जब भ्रष्टाचार, दातागंज के अलोपीदीन की स्वयं की ब्यवस्था के लिए ,खतरा बन जाता है। हमारे समाज में ब्याप्त  भ्रष्टाचार  का यह चित्रण अस्सी से सौ वर्ष पूर्व ब्रिटिश ज़माने का है। स्वाधीनता के बाद  भी ब्यवस्था में कोई सुखद परिवर्तन नही हुआ है।  पंडित अलोपीदीन अपना आकार और बढ़ा रहे हैं और उनकी विचारधारा टस से मस न होकर पुष्टतर होती जा रही है। ऐसे पिताओं की संख्या बढ रही है जो मानते हैं कि ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है । इसीलिए ऊपरी कमाई में बरकत होती है।
                               बंशीधर, जो आज के अन्ना हजारे, बाबा रामदेव, उनकी टीम और उनके समर्थकों का प्रतिनिधि है, के हाथ ईमानदार संघर्ष है और आशा है कि  भारत को, दूसरी एवं असली आजादी, अंग्रेजों द्वारा स्थापित एवं देशी सत्ताधारियों द्वारा निज हित में पोषित ब्यवस्था को उखाड़फेंकने के बाद मिलेगी। सत्ताधारियों की ललकार  स्वीकारते हुए अन्ना हजारे की टीम उन्हीं के मैदान में उनसे दो-दो हाथ करने आगे बढ़ रही है, वहीं बाबा ने अलोपीदीन रुपी सत्ता को अगले चुनाव तक उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया है।  भ्रष्टाचार का दंश झेलने वाले जानते हैं कि इस आन्दोलन को "मै समय हूँ " ने आगे बढ़ाया है और वही शंखनाद कर रहा है कि ब्यवस्था परिवर्तन के विरोधी सत्ताधारियों को उन्हीं के जंग-ए-मैदान में जन-नायक बंशीधरों के हाथ पराजित होना है । उनमे से कुछ को अलोपीदीन का चोला उतार मुन्शी बन्शीधर की धारा में शरणागत हो जाना है और तब उन्हें गर्व से कहना होगा कि संसद, सांसद, सत्ता, कार्यपालिका, न्यायपालिका यहाँ तक कि संविधान भारतीय जनता की सेवा और उनकी खुशहाली के लिए हैं। दस करोड़ जनमत पाए अनैतिक सत्ताधारी इस भ्रम में मदमस्त हैं कि वे सवा अरब भारतीयों के सेवक नहीं शासक हैं। वे जानकर भी अनजान हैं कि एक अरब पंद्रह करोड़ लोगों को  उनके भ्रष्ट कर्मो से घिन्न आता है।
                             चूंकि संसद में पहुँच  कर लड़ाई के लिए ललकारा जा रहा है इसलिए लड़ाई से पहले आन्दोलनकारियों को  लाजिस्टिक्स तैयार कर लेना चाहिए जैसे हर बंशीधर को अपने माँ, बाप, बहन, भाई एवं समाज को भ्रष्टाचार  के विरूद्ध उठ खड़ा होने का शपथ दिलाना चाहिए। बन्शीधरों की दिन दूनी रात चौगुनी संख्या बढाई जानी चाहिए। उन्हें याद होना चाहियें कि कुछ बरस पहले हमारे पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम ने स्कूल के बच्चों को कुछ ऐसा ही शपथ दिलाने का प्रयास किया था। यह एक बड़ा विजन था जो आज मिशन का काम कर सकता है। यह भी ध्यान रखा जाय कि कोई अलोपीदीन नकली बंशीधर बन कमांड सेंटर में घुसपैठ न कर जाए।फिर अन्ना हैं, बाबा हैं, और सवा अरब लोंगो की आकांक्षा है जिनकी पीड़ा से उपजा यह आन्दोलन है। सत्य के लिए सत्य है कि बंशीधर विजयी होगा और भारत अपने स्वर्ण युग की ओर बढ़ता चला जायेगा। बीता कल याद दिलाता है कि  पंडित रावन जब राक्षस रावन बना तो अपनी लंका की रनभूमि पर मारा गया। युवराज कंस जब आतताई राजा बना तो अपनी रणभूमि मथुरा में मारा गया और जर्मनी का शासक हिटलर जब नाजी तानाशाह बन दुनियाँ पर विश्वयुद्ध थोपा तो उसकी निर्णायक पराजय बर्लिन में ही हुई। अब संसद में सत्ताधारियों की पराजय की बारी है।
                          यद्यपि  भ्रष्टाचार  का जन्म आदिकाल में शिष्टाचार के साथ ही हुआ होगा,  परन्तु पूरे समाज का इस पर प्रबल एवं विजयी दवाव बना रहता था। एक ओर जहाँ सामाजिक बहिष्कार एवं घृणा थी दूसरी ओर कठोरतम दंड थे। समय के साथ आक्रमणकारी एवं लुटेरे सत्ताशीन होकर शिष्टाचार की नींव हिलाने लगे और समाज का चारित्रिक क्षरण होता गया। वर्तमान भेषधारी भ्रष्टाचार अंग्रेजी शासन की देन है। सन सैंतालिस में देशी शासकों ने सत्ता ग्रहण करते समय बड़े ही निर्विकार रूप से भ्रष्टाचार को ग्रहण कर लिया। अंग्रेजों को यह हमेशा याद था कि  वे परदेशी थे और कभी न कभी देश छोड़ना था। इस कारण भ्रष्टाचार को विविध आयाम न दे सके थे ।जब भारतीयों ने सत्ता संभाली तो वे भारतीयता के मामले में निश्चिन्त थे। वे थोडा आगे बढे और तय किये कि  घूमने और मौज मस्ती के लिए विदेश जांय; जमकर भारतीय संसाधनों को लूटें और काले धन को  विदेश में सुरक्षित करें। इस प्रकार भ्रष्टाचार की बेल-बल्लरियां जितनी फैलेंगी उसकी छाँव में बैठ ये लोग उतना ही जनता को लाचार बनाते रहेंगे। यथार्थवादी कहानीकार मुंशी प्रेमचंद के समय से अब तक भारत में भ्रष्टाचार की कुछ ऐसी ही यात्रा रही है। आज जब बढ़ते भारत के दोनों क़दमों में भ्रष्टाचार  और काला धन बेड़ियों की तरह रुकावट बन रहे हैं तो इन्हें तोड़ने के लिए हर प्रबुद्ध एवं पीड़ित नागरिक अन्ना एवं रामदेव रुपी आन्दोलन बन रहा है। हाल ही में इन्फोसिस के संस्थापक श्री नारायणमूर्ति ने जमशेदपुर में दैनिक जागरण  समाचार पत्र से बातचीत में कहा था कि  हम सभी अन्ना हजारें बनें। क्या बात है, यह एक मार्मिक अपील थी । बर्तमान चरण में सबको चिंता है कि कहीं फरियाई ऊरद झेंगरा में (भोजपुरी कहावत) न चली जाय। इसका समाधान तर्क नही संकल्प है और यह सत्य संकल्प कहता है कि  उसका ही नाम विजय या बंशीधर है। अतः बंशीधर आगे बढ़ो और विजयी भव् ।
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दिनाँक 24 अगस्त 2012                                          mangal -veena . blogspot . com
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