गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

भ्रष्टाचार की आत्मब्यथा

                     एक वर्ष से अधिक हो गया ,हम दो राष्ट्रीय मुद्दों ;भ्रष्ट्राचार एवं विदेशों में जमा काला धन ;के बीच जी रहे हैं ।हम इन्हें सुन ,धुन एवं गुन रहे हैं ।इन मुद्दों के साथ ही देश के छितिज पर अन्ना हजारे  एवं बाबा रामदेव के रूप में दो महानायक अपनी टीमों के साथ उभरे हैं ।हमारी वर्तमान भ्रष्टतंत्र टीम एवं दूसरी तरफ अन्ना एंड बाबा टीम के बीच  लगातार क्रिकेट का खेल हो रहा है ।बालिंग एवं फील्डिंग सजाने की हर संभव पहल हो रही है ,किन्तु हमारी भ्रष्टतंत्र की टीम है कि इसके खिलाडी चौके -छक्के लगाना और तेज कर दिए हैं ,आउट होने का नाम ही नहीं ले रहे हैं ।देश की जनता पवेलियन से ठगी-ठगी यह मैच देख रही है और अंतर्मन से भारत -भाग्य -विधाता  से प्रार्थना भी कर रही है कि हे विधाता !हमारे राष्ट्र नायकों की टीम को अब तो जिता दो ।फिर भी निराशा पर निराशा ।
जनता के कानो तक कमेंट्री पहुँच रही है ।
                    भ्रष्टाचारी टीम का प्रबंधक कहते हुये सुना जा रहा है कि यह मैच २०-२० ओवर ,एक  दिवसीय  या पांच दिवसीय नहीं है ।यह तो वरसों -वर्ष चलेगा ।हम आउट होंगे तब न दूसरी टीम बैटिंग करेगी ।क्या जनता को पता नहीं कि ग्राउंड हमारा है ,खेल के नियम हम बनाते हैं  ,अम्पायर हमारे हैं ,अपील भी हमारे यहाँ आती है ,निर्णय भी हम करते हैं और कानून व्यवस्था भी हमीं सुनश्चित करते हैं ।यह तो भोली -भाली जनता का मन रखना है सो हम खेल भी रहे हैं ,नहीं तो अन्ना व बाबा की टीम को न जाने कब इंडियन क्रिकेट लीग बना दिये होते ।उन अगुवा भुक्तभोगियों से पूछो कि हम क्या हैं ।ये सटटा -बट्टा भी तो हमारे ही टूल्स हैं जो आवश्यकता पड़ने पर कसे नट्स  को अन्बोल्ट करने के काम  आते हैं ।
                     जनता तो भोली है ।ये आन्दोलन चलाने वाले भी चतुर नहीं हैं ,इतिहास की ओर नहीं झांकते । अरे भाई !तुममे कोई गुरु वशिष्ठ तो है नहीं जो राम जैसा चरित्र निर्माण करे और देश में रामराज्य आये।चाणक्य भी नहीं कि चन्द्रगुप्त का निर्माण कर सके और नन्द वंश का नाश हो ।तुम्हारे पास तच्छशिला या नालंदा जैसे गुरुकुल भी नहीं हैं ।कितने संस्थान हैं तुम्हारे पास जहाँ सदाचार में शोध ,मास्टर या स्नातक कि डिग्री दी जाती है ?तुमको क्या पता कि हम  भ्रष्टाचारी भी भ्रष्टाचार से ब्यथित हैं ।चाह कर भी हम अपने से बाहर न निकलने को विवश हैं ।यदि गौतम सामने आ जाएँ और हमारा ह्रदय परिवर्तन हो जाय तो क्या तथागत मार्ग पर चलने का अवसर एवं परिवेश हमें मिलेगा ? आन्दोलन के नायक कब समझेंगे कि हम उनसे भी ज्यादा आहत हैं और दिन -रात कोसते हैं कि देश में फैले भ्रष्टाचार ने हमें भ्रष्टाचारी बना दिया ।खुदा गवाह है  कि हम जन्मजात भ्रष्ट नहीं थे ।भले ही अच्छा न लगे परन्तु हमारे भ्रष्ट उपासकों को भारतीय होने पर उतना ही गर्व है जितना किसी अन्य को ।
                        अक्लमंदे इशारा काफी ।संकेत समझने का प्रयास करो ।यदि तुम विश्वामित्र ,चाणक्य ,द्रोण या कृप जैसे गुरुजन खोज सको ,नालंदा या तच्छाशिला जैसे गुरुकुल बना सको तो सदाचार में निष्णात राष्ट्रप्रेमी युवक एवं युवतियों का एक बड़ा वर्ग समाज में अवतरित होने लगेगा ।फिर क्या हम और क्या हमारी ब्यथा -दोनों स्वतः समाप्त हो जांयगी और जन लोकपाल  की अभिलाषा रखने वाला भारत अपने स्वर्णयुग  में पुनः प्रवेश कर रहा होगा ।चलते -चलते तुम्हे सारांश  बता दूं कि दिल  से हम  पितामह एवं गांधारी की तरह तुम  पांडवों की विजय  कामना करते हैं परन्तु कर्म  से अपनी दुर्योधनी अविजित  सत्ता के लिए कृतसंकल्प हैं ।आज  हमारा है ,कल  तुम्हारा हो तो हमें अच्छा लगेगा । क्रमशः ध्वनि कोलाहल  में खो जाती है और मानवीकृत भ्रष्टाचार कि ब्यथा कथा यहीं विराम लेती है ।
अंततः 
                         प्रतिदिन, कर्मक्षेत्र से खाली होने पर ,विश्राम के समय थोड़ा सोचिये कि पूरी दिनचर्या में आप ने कौन सा काम अन्य शेष कार्यों से अच्छा किया ।उसे याद आते ही आप आनंदित होंगे ।आगे आप द्वारा प्रतिदिन उससे भी बेहतर कार्य  सम्पादित होने लगेंगे ।फिर जीवन सरस एवं सार्थक लगने लगेगा ।   

शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

मौज मनाते चलो

     पूर्वजों ने सानंद जीवन के लिए हम भारतीयों को अनेकानेक सर्वप्रिय संस्कारों एवं त्योहारों का उपहार दिया है। ऊपर से कोई चाही हुई कामना पूरी होने पर या मनोवांछित वस्तु मिल जाने पर हमें तत्कालिक आनंदोत्सव सुलभ हो जाते हैं। परन्तु इस कल-युग में स्थिति यह है कि उम्र जैसे-जैसे बढती है, ये अवसर हमे कमतर गुदगुदाते हैं। यदि एक समय घर में बच्चे को सुन्दर खिलौना, युवक को उसका पसंदीदा परिधान एवं बृद्ध को उसके आँख पावर का चश्मा उपहार में दिया जाय और उनके आनंदित होने की पूर्णता व प्रतिक्रिया आँकी जाय तो उनमें आनंद का स्तर स्पष्टतः अलग-अलग मिलेगा। कारण है बालपन आनंद की स्थिति या घटना से निर्दोष व भोलेपन के साथ  शतप्रतिशत जुड़ता है जबकि बढते वय  का जुड़ाव क्रमशः घटता जाता है। यहाँ तक कि अपने को भद्र मानने वाले लोग तो चाहते हुए भी हँसने और आनंदित होने की स्वाभाविक क्रिया को भी छिपा ले जाने का स्वांग  करते हैं। फिर जिन्दगी के टंट-घंट इस  तरह उनको घेर लेते हैं कि मूल आदमी ही गायब हो जाता है। वैसे भी एक ही विषय या वस्तु जब किसी को आनंद से सराबोर करती है, उसी क्षण  अन्य को दुःख की दरिया में हिचकोलें भी करा सकती है।
     आनंदित जीवन की माँग है कि आदमी जब जिस काम में लगे, उसके साथ अधिकाधिक धनात्मकता से जुड़े,उसमे अपनी प्रबल उपस्थिति दे और हर लमहे को जीवंत जिए। कुछ ऐसी ही व्यवस्था वाराणसी, काशी या बनारस  ने सदियों से कर रखा है कि इस ज्ञान के केंद्र में जीवन कभी बोझिल न हो। बनारसी संस्कृति इसीलिए तीन लोकों से न्यारी मानी गयी है। यहाँ यदि आपको गंगा तीरे दीपावली के बाद देव दीपावली, होली बाद बुढवा मंगल का हास्य सम्मेलन और मूर्ख-दिवस  पर महामूर्ख  सम्मेलन  देखने व सुनने का अवसर मिले तो यकीन कर लेंगे कि आबालबृद्ध  समाज को हर्ष एवं उमंग से भरने एवं उससे जुड़ने  के लिए ये बनारसी क्या कुछ  करते हैं। इस जतन में वे अनुपम  छटा बिखेरने तथा मूर्ख  बनने एवं बनाने से भी परहेज नही करते। इस आनंद के लिए यहाँ ज्ञानी एवं तपस्वी भी साधना के दौर में कुछ  समय के लिए पागल बाबा बन जाया करते हैं। साधना की शीर्ष स्थिति भी तो परम आनंद ही है। बनारसी मंसा है कि मौज मनाते चलो।
     अभी एक अप्रैल को पुण्य सलिला तट पर महामूर्ख सम्मेलन हुआ। निःसंदेह इसका आयोजन चतुर लोगों ने किया था और आशय  था-कृतिम मूर्खता कर जन मानस को प्रफुल्लित करना। कार्यक्रम हल्का एवं अच्छा रहा रियल मूर्खों का तो इससे कोई लेना देना था नहीं।  किरदारों एवं आयोजको ने सुर्खियाँ बटोर लीं। कुछ  की कमाई तो कुछ  की धमाई हो गयी। इक्के- दुक्के दूर खड़े रियल मूर्ख  यह सब देख जोर-जोर से हँसते हुए बात कर रहे थे कि कौन किसको मूर्ख  बना रहा है। वास्तविकता रही कि रियल और आर्टिफिसियल  दोनों प्रकार के मूर्ख  आनंदित हुए। एक  अँगुली उठाने वाली(विद्या  में उत्तम ) विद्योत्तमा को दो अँगुलियाँ उठाकर मात देने वाले(विद्या विहीन ) मूर्ख  कालिदास को नकारा नहीं जा सकता है।
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 अंततः
 यदि आप हर्षित नहीं रहना चाहते हैं और हर्ष  की पूँजी भी नही है तो भी दुनियाँ रुकने वाली नहीं है।
               " सुख  दुख  में उठता गिरता,संसार तिरोहित होगा।
                मुड़कर न कभी देखेगा, किसका हित अनहित होगा।"                    - जयशंकर प्रसाद
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दिनाँक 6.4.2012                                       mangal-veena.blogspot.com
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