रविवार, 25 मार्च 2012

नामी का नाम

***************समाज में यह आम मान्यता है कि यथा नाम तथा गुण।इसके चलते समाज में नवजात शिशुओं के सुंदरतम एवं मनभावन नाम रखने की होड़ रहती है ।अप्रतिम नामकरण के लिए लोग पुरोहितों  से लेकर इन्टरनेट एवं साहित्यकारों तक की मदद लेते हैं ।ऐसे- ऐसे अभिनव शब्दप्रयोग सामने आ जाते  हैं  कि भाषा -विज्ञानी भी वाह-वाह कर उठते हैं ।फिर भी यह तो बिडम्बना ही है कि नाम जैसा गुण विरले ही लोगों में देखने को मिलता है ।समाज बहुत सभ्य हो चुका  है ।कोई भी माँ -बाप अपने बेटे या बेटी का नाम रावण,कंस ,दुर्योधन ,सुर्पनखा,पूतना या विषकन्या नहीं रखता है फिर भी  इनके गुणों का  प्रतिनिधित्व करने वाले लोग हर काल मे कहीं न कहीं  से पनपते रहे हैं ।
***************मानना होगा कि शत प्रतिशत धनात्मक नाम रख कर भी ऋणात्मक प्रवित्तियों का फलना फूलना नहीं रोका जा सकता है ।यही कारण है कि गुण विशेष से स्थापित लोगों को समाज संस्कारी नाम से इतर ' यथा गुण तथा नाम ' से पुकारने एवं पहचानने लगता है।यह गुण एवँ कर्म से अलंकृत नामकरण ही ;ब्यक्तित्व का स्वाभाविक पर्याय लगता है यथा महात्मा गाँधी ,बापू ,नेता जी ,लौहपुरुष इत्यादि ।नामी का नाम होता है वरना नाम मे रखा ही क्या है ।इतिहास मे आम्रपाली ,चित्रलेखा , उमराव जान का नाम ले लें अथवा आज क़ी मुन्नी,शीला या जलेबी बाई का उदाहरण लें ;सबमें नामी का नाम है।
***************मेरे अग्रज श्री ,नाम मे कुछ नहीं रखा है ,पर कभी एक लघु कहानी सुनाया करते थे कि एक दम्पति ने अपने इकलौते बेटे का नाम बड़े लाड़-प्यार से ठंठपाल रखा ताकि बेटा बुरी नजरों से बचा रहे । सात आठ साल का होते होते बेटे को कुछ -कुछ दुनियादारी समझ में आने लगी। अब उसे अपना नाम भी खटकने लगा।जब उसे कोई ठंठपाल कह कर पुकारता तो उसे लगता कि किसी ने कंकड़ फेंक उसे ठन्न से मारा है। उसे अपने माँ  बाप पर गुस्सा आता कि उन्हें दुनियाँ में कोई अच्छा नाम नहीं सूझा।ठीक है ;यदि उन्हें नहीं सूझा तो किसी दोस्त ,पंडित से तो पूछ लेते। ऐसे ही समय बीतने लगा।
 ***************  बड़ा होने पर ठंठपाल को यह नाम और खलने लगा।  कहाँ मित्रों  के नाम कुबेर ,नरेश ,धनेश ,सुरेश ?कहाँ चचेरे भाइयों का नाम गोपाल ,रामपाल और कहाँ वह  ठंठपाल?एक दिन वह नाम एवं गुण का ताल -मेल और संबन्ध जानने गाँव से निकल पड़ा ।रास्ते पर बढ़ रहा था कि किनारे एक मेंड़ पर घास काटने वाली औरत दिख गई। उसने रुक कर पूछा ,"बहन !तुम्हारा नाम क्या है ?" धनपतिया। क्या बात है ?- उसने जवाब दिया।कोई बात नहीं कहते हुए वह आगे बढ़ गया। उसकी उलझन और बढ़ गई।  देखा कि एक खेत में एक फटेहाल हलवाहा कुछ गुनगुनाते हल चलाने में मगन था। ठंठपाल एक पेड़ की छाया में ठिठक गया तथा हलवाहे को नजदीक से गुजरने का इन्तजार किया।पास आते ही भैया के संबोधन से उसने उसका नाम पूछ लिया। "अरे भाई !मेरा नाम तो धनपाल है " कहते हुए वह भाँवर में आगे बढ़ गया।विराधाभास से वह बेचैन हो गया। सोचा कि आगे बाजार में एक पान खा कर लौट पड़ते हैं । आगे की सुध लिया तो दूर से आता कुछ कोलाहल सुनाई दिया। धीरे धीरे आवाज साफ और जोर से सुनाई देने लगी। यह किसी की शवयात्रा थी।नतमस्तक हुआ पथ किनारे यात्रा गुजर जाने की प्रतीक्षा करने लगा। अंत में चल रहे एक ब्यक्ति से बरबस ही पूछ बैठा ,"किसका अंतकाल हुआ है ,भाई।"  अमरदेव ;बहुत अच्छे इंसान थे -कहते हुए वह शव यात्री भी बढ़ गया।ठंठपाल चौंक गया कि क्या अमरदेव भी मर सकता है ।
***************ठंठपाल गहरी साँस लिया और थोड़ी देर के लिए निःचेष्ट हो गया ......फिर सँभला और कुछ डग भरते बाजार बीच पान की दुकान पर दाखिल हो गया। पान खाया और जैसे -जैसे उसकी मिठास मुँह में घुलती गई उसका मन प्रसन्न होता गया। अपने नाम के प्रति उसकी कड़वाहट न जाने कहाँ गायब थी। ठंठपाल यह जान कर मुस्करा रहा था कि नाम में क्या रखा है। नाम का गुण से कोई संबंध नहीं है तभी तो  धनपतिया (धन की स्वामिनी )एक गरीब घास काटने वाली है ,हलवाही करने वाले मजदूर का नाम धनपाल (धनवान )है और जो मर गया था उसका नाम अमरदेव (जो मरता ही  नहीं )था।उसकी कुंठा जाती रही।माता -पिता में उसकी श्रद्धा उमड़ने लगी ,मिठाई के दुकान से उनके लिए पेड़े ख़रीदा और उछलते- कूदते घर लौटा।बदला हुआ ठंठपाल माँ -बाप के चरणों में लोट गया। माँ  बाप ठंठपाल के एकाएक बदले ब्यवहार से हैरान थे। तुरत फुरत में उनका लाड़ला उन्हें मिठाई खिला कर अपनी ख़ुशी साझा किया और कारण पूछने पर आप बीती कुछ यूँ सुनाया --
                                        "घास करत धनपतिया देखा ,हल  जोतत    धनपाल ।
                                         टिकठी पर अमरदेव को देखा ,सबसे  भला   ठंठपाल।"
सच तो यह है कि जिसने अपने गुण से नाम कमाया उसी नामी का नाम है अन्यथा नाम तो मात्र एक पहचान है। सामान्यतया नाम तो मात्र पहचान शब्द है ?---------------------------------- मंगलवीणा
वाराणसी ;दिनाँक 25 मार्च 2012
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अंततः --
***************यदि सीता(मन ) शोकाकुल हों ,तो अशोक जैसे वृक्ष(भाई ) का सानिध्य मिले ताकि सीता अपनी ब्यथा तो ब्यक्त कर सकें कि "सुनहु विनय मम विटप अशोका ,सत्य नाम कर हरु मम शोका।"(धरती से उत्पन्न होने के कारण सीता और अशोक भाई -बहन जैसे हैं ।) सीता की अशोक से यथा नाम तथा गुण की अभिलाषा है ।होता भी अनुकूल है कि तत्क्षण ही पवनपुत्र, प्रभु राम का सन्देश लेकर, उस अशोक बाटिका में पहुँच जाते हैं।  परन्तु ऐसी दैवी स्थितियाँ हमारे समाज में दुर्लभ  होती हैं।-------- मंगलवीणा
वाराणसी ;दिनाँक 25 मार्च 2012 -----mangal-veena.blogspot.com@gmail.com
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