मंगलवार, 13 मार्च 2012

आईना

                       प्रायः लोगों को कहते सुना है की आईना झूठ नही बोलता। बात तो यह है कि  आईना बोलता नही है बल्कि यथार्थ को दिखाता है बशर्ते वह घिसा-पिटा या विषम न हो। आज कल लोग ऐसा आईना पसंद करने लगे हैं जो  वांछित यथार्थ को उन्हें खूब बढ़ा-चढ़ा कर दिखाए । यदि दर्पण या आईना का मानवीकरण करें तो सामने आलोचक आता है। इस प्रकार,आईना का आलोचक, समतल आईना का समालोचक एवं विषमतल का निंदक, प्रंशसक , चाटुकार या चिन्तक जैसा पर्याय बनता है। मेरा अभिप्राय आपको बोर करना या ऊबाना नहीं है बरन उत्तर प्रदेश में राजनैतिक दलों को समतल  आईना दिखाना  है । हम जितनी सहजता से अपने  यथार्थ को देखेंगे,स्वीकारेंगे, उतनी ही प्रतिबद्धता से सफलता को चूमेंगे।
                      इसी सन्दर्भ में यदि वर्ष २०१२ में संपन्न हुए उत्तर प्रदेश जनादेश की चर्चा करें और चुनाव के केंद्र में रहे चार दलों का चेहरा उनके आईना में देंखे तो कुछ ऐसा यथार्थ सामने आता है।
                      कांग्रेस- पीढियों से पुराने और घिसे-पिटे दर्पण में अब भी झांक रही है  जिसमे महंगाई,भ्रष्टाचार,     कुटिलता   एवं संवेदन शून्यता की घिनौनी चौकड़ी से घिरा उनका म्लान आभामंडल उसे दिखता  ही नहीं। हठात अपने को भारतीयों का भाग्य-विधाता बनाये रखने पर तुली है ।
                     भाजपा- पार्टी विथ डिफरेंस की क्या बात है? आईना ही घुमाकर उल्टा पकड़ रखे हैं। अरे भाई! आईना सीधा करो,झाकों फिर सारे डिफरेंस साफ़ नजर आँयेंगे। मन,वाणी,कर्म में डिफरेंस ही डिफरेंस(अंतर) है।
                     बसपा- कांग्रेस सी  सूरते-हालत। वे ही सत्य,वे ही शिव, वे ही सर्वोत्तम सुंदर और वैसा ही दिखाने वाला विषम आईना। समतल आईना को किनारे रख दिया परन्तु उन्हें क्या पता कि उनकी कारगुजरियां तिरछी ही सही जनता को साफ़ नजर आती हैं।
                    और सपा- आईना सामने और उनका रंग गाँव-गाँव, शहर-शहर जनमन के संग घुला-मिला सर्वत्र नजर आ रहा है।भोरी जनता को लगा है कि सपा उनकों प्रतिबिंबित कर सकती है । दर्पण में उनका चुनाव घोषणा- पत्र  भी साफ़ दिख रहा है। सावधान!
                    होली,थोड़ी देर के लिए ही सही,अपना चेहरा छिपाने का सर्वोत्तम त्योहार है। रंग,गुलाल,वार्निश,कीचड़ कुछ भी लगा लो,फिर मज़ा ही मज़ा है। थोडा आगे, भांग भी पीलो फिर अर्थ के मायने अनर्थ बताओ और बजट-वजट का खेल खेलों। होली पूर्वानुमान के अनुसार रही। आगे बजट का डर और हम भारतीय भगवान भरोसे।
अंततः-
                   ऊंचाइयों पर पहुँचना है तो आप झुककर चढ़ना सींखे। गुरुत्व या परिस्थितियों के विरोध को भला-भला कह सामंजस्य बैठाएं। विरोध बिंदु पर ठहर जाना तो उद्द्येश्य हो ही नहीं  सकता।



       


  

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